जब मांगो हाथ मदद का तब छिपने के स्थान बहुत हैं
बातों में, घातों में, शूरवीर, बलशाली, बलवान, बहुत हैं
जब मांगो हाथ मदद का, तब छिपने के स्थान बहुत हैं
कैसे जाना, कितना जाना, किसको माना था अपना,
क्या बतलाएं, कैसे बतलाएं, वैसे लेने को तो नाम बहुत है
नाप-तोल के माप बदल गये
नाप-तोल के माप बदल गये, सवा सेर अब रहे नहीं
किसको नापें किसको तोलें, यह समझ तो रही नहीं
मील पत्थर सब टूट गये, तभी तो राहों से भटक रहे
किसको परखें किसको छोड़ें, अपना ही जब पता नहीं
मन से अब भी बच्चे हैं
हाव-भाव भी अच्छे हैं
मन के भी हम सच्चे हैं
सूरत पर तो जाना मत
मन से अब भी बच्चे हैं
वादों की फुलवारी
यादों का झुरमुट, वादों की फुलवारी
जीवन की बगिया , मुस्कानों की क्यारी
सुधि लेते रहना मेरी पल-पल, हर पल
मैं तुझ पर, तू मुझ पर हर पल बलिहारी
प्यार का रस घोला होता
दिल में झांक कर देखा होता तो आज यह हाल न होता
काट कर रख दिये सारे अरमान जग यह बेहाल न होता
यह मिठास तो चुक जायेगी मौसम बदलने के साथ ही
प्यार का रस घोला होता तो आज यह हाल न होता
माणिक मोती ढलते हैं
सीपी में गिरती हैं बूंदे तब माणिक मोती ढलते हैं
नयनों से बहती हैं तब भावों के सागर बनते हैं
अदा इनकी मुस्कानों के संग निराली होती है
भीतर-भीतर रिसती हैं तब गहरे घाव पनपते हैं
कहना सबका काम है कहने दो
लोक लाज के भय से करो न कोई काम
जितनी चादर अपनी, उतने पसारो पांव
कहना सबका काम है कहने दो कुछ भी
जो जो मन को भाये वही करो तुम काम
आशा अब नहीं रहती
औरों की क्या बात करें, अब तो अपनी खोज-खबर नहीं रहती,
इतनी उम्र बीत गई, क्या कर गई, क्या करना है सोचती रहती,
किसने साथ दिया था जीवन में, कौन छोड़ गया था मझधार में
रिश्ते बिगड़े,आघात हुए, पर लौटेंगे शायद, आशा अब नहीं रहती
आई आंधी टूटे पल्लव पल भर में सब अनजाने
जीवन बीत गया बुनने में रिश्तों के ताने बाने।
दिल बहला था सबके सब हैं अपने जाने पहचाने।
पलट गए कब सारे पन्ने और मिट गए सारे लेख
आई आंधी, टूटे पल्लव,पल भर में सब अनजाने !!
बस बातों का यह युग है
हाथ में लतवार लेकर अमन की बात करते हैं
प्रगति के नाम पर विज्ञापनों में बात करते हैं
आश्वासनों, वादों, इरादों, हादसों का यह युग है
हवा-हवाई में नियमित मन की बात करते हैं
पता नहीं क्या क्या मन करता है आजकल
रजाई खींच कर, देर तक सोने का बहुत मन करता है रे ! आजकल।
बना-बनाया भोजन परस जाये थाली में बहुत मन करता है आजकल।
एक मेरी जान के दुश्मन ये चिकित्सक, कह दिया रक्तचाप अधिक है
सैर के लिए जाना ज़रूरी है, संध्या समय घर से निकाल देते हैं आजकल
प्रात कोई चाय पिला दे, देर तक सोते रहें, यही मन करता है आजकल
अधिकारों की बात करें
अधिकारों की बात करें, कर्त्तव्यों का बोध नहीं
झूठ का पलड़ा भारी है, सत्य का है बोध नहीं
औरों के कंधे पर रख बन्दूक चलानी आती है
संस्कारों की बात करें, व्यवहारों का बोध नहीं
जीवन है मेरा राहें हैं मेरी सपने हैं अपने हैं
साहस है मेरा, इच्छा है मेरी, पर क्यों लोग हस्तक्षेप करने चले आते हैं
जीवन है मेरा, राहें हैं मेरी, पर क्यों लोग “कंधा” देने चले आते हैं
अपने हैं, सपने हैं, कुछ जुड़ते हैं बनते हैं, कुछ मिटते हैं, तुमको क्या
जीती हूं अपनी शर्तों पर, पर पता नहीं क्यों लोग आग लगाने चले आते हैं
तुम अपने होते
तुम अपने होते तो मेरे क्रोध में भी प्यार की तलाश करते
तुम अपने होते तो मेरे मौन में भी एहसास की बात करते
मन की दूरियां मिटाने के लिए साथ होना कोई ज़रूरी नहीं
तुम अपने होते तो मेरे रूठने में भी अपनेपन की पहचान करते
क्रोध कोई विकार नहीं
अनैतिकता, अन्याय, अनाचार पर क्या क्रोध नहीं आता, जो बोलते नहीं
केवल विनम्रता, दया, विलाप से यह दुनिया चलती नहीं, क्यों सोचते नहीं
नवरसों में क्रोध कोई विकार नहीं मन की सहज सरल अभिव्यक्ति है
एक सुखद परिवर्तन के लिए खुलकर बोलिए, अपने आप को रोकिए नहीं
कभी-कभी वजह-बेवजह क्रोध करना भी ज़रूरी है
विनम्रता से दुनिया अब नहीं चलती, असहिष्णुता भी ज़रूरी है।
समझौतों से बात अब नहीं बनती, अस्त्र उठाना भी ज़रूरी है।
ऐसा अब होता है जब हम रोते हैं जग हंसता है ताने कसता है
सरलता छोड़, कभी-कभी वजह-बेवजह क्रोध करना भी ज़रूरी है
मानव-मन की थाह कहां पाई
राग-द्वेष ! भाव भिन्न, अर्थ भिन्न, जीवन भर क्यों कर साथ-साथ चलें
मानव-मन की थाह कहां पाई जिससे प्रेम करें उसकी ही सफ़लता खले
हंस-बोलकर जी लें, सबसे हिल-मिल लें, क्या रखा है हेर-फ़ेर में, सोच तू
क्यों बात-बात पर सम्बन्धों की चिता सजायें, ले सबको साथ-साथ चलें
धूप-छांव तो आनी-जानी है हर पल
सोचती कुछ और हूं, समझती कुछ और हूं, लिखती कुछ और हूं
बहकते हैं मन के उद्गार, भीगते हैं नमय, तब बोलती कुछ और हूं
जानती हूं धूप-छांव तो आनी-जानी है हर पल, हर दिन जीवन में
देखती कुछ और हूं, दिखाती कुछ और हूं, अनुभव करती कुछ और हूं
आवरण है जब तक आसानियां बहुत हैं
परेशानियां बहुत हैं, हैरानियां बहुत हैं
कमज़ोरियां बहुत हैं, खामियां बहुत हैं
न अपना-सा है यहां कोई, न पराया
आवरण है जब तक आसानियां बहुत हैं
अपने विरूद्ध अपनी मौत का सामान लिए
उदार-अनुदार, सहिष्णुता-असहिष्णुता जैसे शब्दों का अब कोई अर्थ नहीं मिलता
हिंसा-अहिंसा, दया-दान, अपनत्व, धर्म, जैसे शब्दों को अब कोई भाव नहीं मिलता
जैसे सब अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े हैं अपने ही विरूद्ध अपनी ही मौत का सामान लिए
घोटाले, झूठ, छल, फ़रेब, अपराध, लूट, करने वालों को अब तिरस्कार नहीं मिलता
स्वाभिमान हमारा सम्बल है
आत्मविश्वास की डोर लिए चलते हैं यह अभिमान नहीं है।
स्वाभिमान हमारा सम्बल है यह दर्प का आधार नहीं है।
साहस दिखलाया आत्मनिर्भरता का, मार्ग यह सुगम नहीं,
अस्तित्व बनाकर अपना, जीते हैं, यह अंहकार नहीं है।
कौन देता है आज मान
सादगी, सच्चाई, सीधेपन को कौन देता है आज मान
झूठी चमक, बनावट के पीछे भागे जग, यह ले मान
इस आपा धापी से बचकर रहना रे मन, सुख पायेगा
अमावस हो या ग्रहण लगे, तू ले, सुर में, लम्बी तान
साहस दिखा रास्ते बहुत हैं
घृणा, द्वेष, हिंसा, अपराध, लोभ, भ्रष्टाचार, साम्प्रदायिकता के रावण बहुत हैं।
और हम हाथ जोड़े, बस राम राम पुकारते, दायित्व से भागते, सयाने बहुत हैं।
न आयेंगे अब सतयुग के राम तुम्हारी सहायता के लिए इन का संधान करने।
अपने भीतर तलाश कर, अस्त्र उठा, संधान कर, साहस दिखा, रास्ते बहुत हैं।
जीने का एक नाम भी है साहित्य
मात्र धनार्जन, सम्मान कुछ पदकों का मोहताज नहीं है साहित्य
एक पूरी संस्कृति का संचालक, परिचायक, संवाहक है साहित्य
कुछ गीत, कविताएं, लिख लेने से कोई साहित्यकार नहीं बन जाता
ज़मीनी सच्चाईयों से जुड़कर जीने का एक नाम भी है साहित्य
वक्त कब कहां मिटा देगा
वक्त कब क्यों बदलेगा कौन जाने
वक्त कब बदला लेगा कौन जाने
संभल संभल कर कदम रखना ज़रा
वक्त कब कहां मिटा देगा कौन जाने
अंधविश्वासों में जीते हम
अंधविश्वासों में जीते हम अपने को प्रगतिशील जानते हैं
छींक मारने पर सामने वाले को अच्छे से डांटते हैं
और अगर कहीं रास्ता काट जाये बिल्ली, हमारा तो
न जाने कौन-कौन से टोने-टोटके करके ही मानते हैं
उतरना होगा ज़मीनी सच्चाईयों पर
कभी था समय जब जनता जागती थी साहित्य की ललकार से
आज कहां समय किसी के पास जो जुड़े किसी की पुकार से
मात्र कलम से नहीं बदलने वाली अब समाज की ये दुश्वारियां
उतरना होगा ज़मीनी सच्चाईयों पर आम आदमी की पुकार से
असम्भव कुछ नहीं होता ‘गर ठान ली हो मन में
कहो तो आसमां के चांद तारे तोड़ लाउं तुम्हारे लिए
कहो तो सागर की धारा को मोड़ लाउं तुम्हारे लिए
असम्भव कुछ भी नहीं होता ‘गर ठान ली हो मन में
शब्द भाव समझ लो तो जीवन समर्पित है तुम्हारे लिए
हर किसी में खोट ढूंढने में लगे हैं हम
अच्छाईयों से भी अब डरने लगे हैं हम
हर किसी में खोट ढूंढने में लगे हैं हम
अपने भीतर झांकने की तो आदत नहीं
औरों के पांव के नीचे से चादर खींचने में लगे हैं हम
सीधे-सादे भोले-भाले लोगों की खिल्ली उड़ती है
सीधे-सादे भोले-भाले लोगों की अब खिल्ली देखो उड़ती है
चतुर सुजान लोगों के नामों से अब यह दुनिया चलती है
अच्छे-अच्छे लोगों के अब नाम नहीं जाने कोई यहां पर
कपटी, चोर-उचक्कों के डर से कानूनों की धज्जियां उड़ती हैं