मेरे पास बहुत सी उम्मीदें हैं

मेरे पास बहुत सी उम्मीदें हैं

जिन्हें रखने–सहेजने के लिए,

मैं बार बार पर्स खरीदती हूं–

बहुत सी जेबों वाले

चेन, बटन, खुले मुंह

और ताले वाले।

फिर अलग अलग जेबों में

अलग अलग उम्मीदों को

सम्हालकर रख देती हूं।

और चिट लगा देती हूं

कि कहीं

किसी उम्मीद को भुनाते समय

कोई और उम्मीद न निकल जाये।

पर पता नहीं, कब

सब उम्मीदें गड्ड मड्ड हो जाती हैं।

कभी कहीं कोई उम्मीद गिर जाती है

तो कभी बिखर जाती है।

चिट लगी रहने के बावजूद,

ताला और चेन जड़े रहने के बावजूद,

उम्मीदों का रंग बदल जाता है,

तो कभी चिट पर लिखा नाम ही

और कभी उसका स्थान।

फिर पर्स में कहीं कोई छिद्र भी नहीं

फिर भी सिलती हूं, टांकती हूं, बदलती हूं।

पर उम्मीद है कि टिकती नहीं

पर मुझे

अभी भी उम्मीद है

कि एक दिन हर उम्मीद पूरी होगी।