प्यार के बाज़ार
प्यार के बाज़ार में अपनापन ढूॅंढने निकले थे
सबकी कीमत थी वहाॅं, मॅंहगे-मॅंहगे बिकते थे
चेहरों पर कृत्रिम मुस्कान लिए सब बैठे थे
जाकर देखा तो प्यार के झूठे वादे पलते थे
हादसे
हादसे
ज़िन्दगी के नहीं होते
ज़िन्दगी ही कभी-कभी
हादसा बनकर रह जाती है।
सारे दर्शन, फ़लसफ़े, उपदेश
धरे के धरे रह जाते हैं
और ज़िन्दगी
पता नहीं
कहाॅं की कहाॅं निकल जाती है।
कोई मील-पत्थर
कोई दिशा-निर्देश काम नहीं आते
यूॅं ही
लुढ़कते, उबरते,
गिरते-उठते
ज़िन्दगी निकल जाती है।
जाने कौन कह गया
ज़िन्दगी हसीन है
ज़िन्दगी ख्वाब है
ज़िन्दगी प्यार है।
प्यारे, सच बोलें तो
ज़िन्दगी हादसों का सफ़र है।
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इस मौसम में
इस मौसम में कहाॅं चली तू ऐसे छोरी।
देख मौसम कैसा काला-काला होरी
पुल लचीला, रात अॅंधेरी
जल गहरा है, गिर न जाईयो छोरी।
बहकी-बहकी-सी चल रही
लिए लालटेन हाथ।
बरसात आई, बिजली कड़की,
ले लेती किसी को साथ।
दूर से देखे तुझे कोई
तो डर जायेगा छोरी।
फिर घर की बत्ती भी न बंद की
बिल आयेगा बहुत, कौन भरेगा गोरी।
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बादल राजा
बादल राजा अब तो आओ
गर्मी को तुम जल्द भगाओ
सूरज दादा थक गये देखो
उनको कुछ आराम कराओ
सम्बन्ध एक पुल होते हैं
सम्बन्ध
एक पुल होते हैं
अपनों के साथ
अपनों के बीच।
लेकिन
केवल सम्बन्धों के पुल
बना लेने से ही
राहें सुगम नहीं हो जातीं।
दिन-प्रति-दिन मरम्मत
भी करवानी पड़ती है
और देखभाल भी करनी पड़ती है।
अतिक्रमण भी हटाना पड़ता है
और स्पीड-ब्रेकर,
बैरीकेड भी लगाने पड़ते हैं।
है तो मंहगा सौदा
पर निभ जाये तो
जीवन बन जाता है।
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नये भाव देती है ज़िन्दगी
भॅंवर-भॅंवर घूमती है ज़िन्दगी
जल में ही नहीं
हवाओं में भी परखती है ज़िन्दगी।
चक्र घूमता है,
चक्रव्यूह रोकता है
हर दिन नये भाव देती है ज़िन्दगी।
शांत जल में बह रही नाव
कब भॅंवर में फंसेगी
कहाॅं बता पाती है ज़िन्दगी।
रंग भी बदलते हैं,
ढंग भी बदलते हैं
हवाओं के रुख भी बदलते हैं।
नहीं सम्हाल पाता है खेवट
जब भावनाओं के भॅंवर में
फ़ंसती है ज़िन्दगी।
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रोटी, कपड़ा और मकान Food, Clothing, Shelter
रोटी, कपड़ा और मकान
चाहिए तो बोलो
हर-हर भगवान।
न मेहनत कर, न बीज बो
बस किसी के चरणों में
सिर टिका दे
और बोलता रह हरदम
हे भगवान, हे भगवान।
भगवान नहीं हैं वे
पर तू मानकर चलना
चरण-वन्दन करते रहना
नाम की मत देखना
आन की मत देखना
दान देखना, रहने का ठौर देखना
बस ढूॅंढ ले कोई नया दर
उस पर सर टिकान।
समय-समय पर बदलते रहना
किसी एक के पीछे मत लगे रहना।
नज़दीकियाॅं, दूरियों की समझ रखना।
एक छूटे, दूसरा ले ले,
सबसे बनाये रखना,
दीन-ईमान न परखना
बस अपनी झोली का
भार परखना।
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लक्ष्य कहीं पीछे छूट गये
लक्ष्य कहीं पीछे छूट गये
राहें हम कब की भूल गये
मंजिल का अब पता नहीं
अपने ही अपनों को लूट गये
सच कड़वा है
उपदेशों से डरने लगी हूॅं जीवन जीने के लिए मरने लगी हूॅं
दुनियाा बड़ी मनमोहिनी, इच्छाओं को पूरा करने में लगी हूॅं
पता है मुझे खाली हाथ आये थे, खाली हाथ ही जायेंगे
सच कड़वा है, सबके साथ मैं भी मुट्ठियाॅं भरने में लगी हूॅं।
मौसम भी दगा दे रहा
चाय के प्याले रीत गये
मनमीत कहीं छूट गये
मौसम भी दगा दे रहा
दिन तो यूॅं ही बीत गये
कैसे होगा ज्ञान वर्द्धन
हम तो ठहरे मूरख प्राणी, कैसे होगा ज्ञान वर्द्धन
ताक-झांक कर-करके ही मिलता है ज्ञान सघन
गूगल में क्या रखा है, अपडेट रहने के लिए
दीवारों की दरारों से सिर टिका करने बैठे हैं मनन
अनिर्वचनीय सौन्दर्य
सूरज की किरणों से तप रही धरा
बादलों ने आकर सुनहरा रूप धरा
सुन्दर आकृतियों से आवृत नभ से
अनिर्वचनीय सौन्दर्य से सजी धरा
बोतलों में बन्द पानी
बोतलों में बन्द पानी पीकर प्यास बुझा रहे
स्वच्छ पानी के लिए कीमत भारी चुका रहे
नहीं जानते बोतलों में क्या भरा, किसने भरा
बोतलों पर एक्सपायरी देख हम चकरा रहे
जल-प्रपात सूख रहे हैं
जल-प्रपात सूख रहे हैं, बादल हमसे रूठ रहे हैं
धरती प्यासी, मन भी प्यासा, प्रेम-रस हम ढूॅंढ रहे हैं
कहीं जल-प्लावन होगा, कहीं धरा सूखे से उलझ रही
आॅंधी-पानी कुछ भी बरसे, नदियों के तट टूट रहे हैं
मर्यादाओं की बात करें
मर्यादाओं की बात करें, मर्यादा का ज्ञान नहीं
बात करें भगवानों की, धर्म-कर्म का भान नहीं
भाषा सुनकर मानों कानों में गर्म तेल ढलता है
झूठे ठाट-बाट दिखलाते, अपनों का ही मान नहीं
कड़वाहट भी अच्छी
बोल-चाल वैसी ही जैसे मन में भाव
देख-देख औरों को चढ़े हमें है ताव
नीम-करेले की कड़वाहट भी अच्छी
तुम्हीं बताओ कौन करे तुमसे लगाव
झूठी तेरी वाणाी
बोल-अबोल कुछ भी बोल, मन की कड़ियाॅं खोल
आज तो तेरे साथ करें हम वार्ता खोलें तेरी पोल
देखें तो कितनी सच्ची, कितनी झूठी तेरी वाणाी
बोल-चाल से भाग लिए पर लगेगा अब तो मोल
अप्रत्यक्ष कर
प्रत्यक्ष करों की क्या बात करें, परोक्ष करों की यहाॅं मार है
हर वस्तु के पीछे छिपे अनगिन कितने टैक्सों की भरमार है
कभी अपने बिल की जांच करना और देखना वस्तु का मूल्य
मूल्य से अधिक खा जाते हैं कर, यही हमारे जीवन का सार है।
प्रत्यक्ष कर
वेतन मिलता कम है, कट जाता ज़्यादा है
आधा वेतन तो प्रत्यक्ष कर ही खा जाता है
हर वर्ष बढ़ता जा रहा है करों का दायरा
हम ही जानते हैं घर कैसे चल पाता है।
रंग-बिरंगी ये लहरें
क्यों पाषाणों का आभास देती रंग-बिरंगी ये लहरें
क्यों रक्त-रंजित होने का आभास दे रहीं ये लहरें
एक तूलिका की छुअन से सब बदल देने की आस
भावों के उत्पात को सहज ही समझा रही ये लहरें
रिश्ते भी मौसम से हो गये हैं
रिश्ते भी
मौसम से हो गये हैं,
कभी तपती धूप-से जलते हैं
और जब सावन-से
बरसते हैं
तो नदी-नाले-से उफ़न पड़ते हैं
और सब तहस-नहस कर जाते हैं।
पीढ़ियों से संवारी ज़िन्दगी
टूट-बिखर जाती है।
हो सकता है
कुछ वृक्ष मैंने भी काटे हों
कुछ टहनियों से
फल मैंने भी लूटे हों,
हिसाब बराबर करने को
कोई पीछे नहीं रहता।
किसे दोष दूॅं,
किसे परखूॅं, किसे समझूॅं।
ढहाये गये वृक्ष
कभी खड़े नहीं हो पाते दोबारा
चाहे जड़ें कितनी भी गहरी हों।
कितना भी बच लें
परिणाम तो
सबको ही भुगतना पड़ेगा।
सावन के दिन
सावन के दिन आ गये मन डर रहा न जाने क्या होगा
बीते वर्षों की यादें कह रहीं अब क्या नया प्रलय होगा
बड़े-बड़े भवन ढह गये थे, शहर-शहर डूब रहेे थे,
सड़कों पर नाव चली थी, पर्वत मिट्टी बन बह गये थे
घर-घर पानी था पर पीने के पानी को तरस रहेे थे
गली-गली भराव होगा, सड़कों पर फिर से जाम होगा
बिजली जब-तब गुल रहेगी, जाने कैसे काम होगा
गढ्ढों में गाडियॉं फ़ंसेंगी, जाने कितना नुकसान होगा
निगम के कान ही नहीं तो जूॅं कैसे रेंगेगी वहॉं
वे तो घर बैठे चारों प्रहर उनका तो इंतज़ाम होगा
विप्लव की चिन्ता मत करना
धीरज की भी
सीमाएँ होती हैं,
बांधकर रखना।
पर इतनी ही
बांध कर रखना
कि दूसरे
तुम्हारी सीमाओं को
लांघ न पायें।
और
तुम जब चाहो
अपनी सीमाओं के
बांध तोड़ सको।
फिर
विप्लव की चिन्ता मत करना।
जिजीविषा
आम के आम
गुठलियों के दाम मिलें
और आम से आम मिलें
तो और क्या चाहिए जीवन में।
.
जीवन-अंकुरण
प्रकृति का स्व-नियम है।
प्रकृति नियम बनाती है
किन्तु जब चाहे
अपने मन से
बदल भी देती है।
नई राहें
आप ही ढूॅंढती है प्रकृति।
जिजीविषा, न जाने
किसके भीतर कहां तक है,
हमें समझाती है प्रकृति।
आशाओं का आकाश बड़ा है
जीवन का आधार बड़ा है
हमें बताती है प्रकृति।
डर मत
यहाॅं नहीं तो वहाॅं
कहीं न कहीं तो
जीवन का उल्लास
दिखा ही देती है प्रकृति,
जीवन में मिठास
भर ही देती है प्रकृति।
शायद कुछ बदले
इधर ग्रीष्म से उद्वेलित थे
उधर धूल ने चादर तान दी
हवाएं कहीं घुट रहीं
यूं तो दिन की बात थी
पर सूरज ने आंख मूंद ली
मन धुंआ-धुंआ-सा हो रहा
न पता दे कोई
कि घटाएं हैं जो बरसेंगी
या सांस रोकेगा धुंआ।
मन में कुछ घुटा-घुटा।
फिर तेज़ आंधी ने
सन्नाटा तोड़ा
धूम-धड़ाका, बिजली कौंधी,
कहीं बादल बरसे,
कहीं धूल उड़ी, कहीं धूल अटी
पर प्रात में, हर बात में
धूल अटी थी,
झाड़-झाड़ कर हार गये।
फिर बरसेगा पानी
तब शायद कुछ बदले।
ज़िन्दगी देती सबक है
सुना है
ज़िन्दगी देती सबक है
मुझे कुछ ज़्यादा ही दे दिया।
मांगा कुछ था
भेज कुछ और दिया।
न जाने किस-किससे
मेरा पार्सल बदल दिया।
कीमत वसूलने में
ज़रा भी ढील नहीं की
सामान बहुत हल्का भेज दिया।
दाना-दाना बिखर गया
न समेट सकी
शिकायत कक्ष भी
बन्द कर दिया,
उल्टे मुझे ही कटघरे में
खड़ा कर दिया।
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
कुछ समस्याओं पर
बात करने से कतराते हैं हम
समझ नहीं पाते
कहाॅं से शुरु करें
और कहाॅं खतम।
जिन्हें बात करनी चाहिए
वे पूल में ठण्डक ले रहे हैं
सुबह-शाम
तरह-तरह के पेय से
गला तर कर रहे हैं।
वादों की, बातों की
उड़ाने भर रहे हैं।
सुरक्षा कवच इतना बड़ा है
कि इन बाल्टियों की खनक
उनके कानों तक पहुंचती नहीं।
बूॅंद-बूॅंद पानी की कमी
उन्हें खलती नहीं।
उनकी योजनाओं में
बड़े-बड़े बांध हैं,
पर्यटन के लिए
लबालब झीलें हैं।
वे नहीं जानते
प्यास क्या होती है
पानी कैसे भरा जाता है
बाल्टियाॅं, पतीले, बर्तन
क्या होते हैं।
भीड़ का अर्थ नहीं जानते वे।
घूॅंट-घूॅंट पानी की कीमत
नहीं समझते वे।
वैसे भी
हर साल आती हैं ये समस्याएॅं
कभी आगे, कभी पीछे
चलती हैं ये समस्याएॅं
मौसम बदलता है
लोग भूल जाते हैं।
फिर कोई नई समस्या आती है
और लोग
फिर वहीं आकर खड़े हो जाते हैं।
सिलसिला चला रहता है
कोई फ़र्क नहीं पड़ता
कौन जीता है
कौन मरता है।
मतदान
मतदान करने चले, नाम प्रत्याशी का ज्ञात नहीं।
किसको चुनना, क्यों चुनना, चर्चा की तो बात नहीं।
कोई आये, कोई जाये, हमें तो बस रोना ही आता है
अधिकारों का उपयोग करें, इतनी हममें सामर्थ्य नहीं।
सत्य सदा ही कड़वा होता
कहते हैं जिह्वा देह में सबसे कोमल होती है
किन्तु कड़वे बोल बोलने में भी प्रथम होती है
सत्य सदा ही कड़वा होता है मित्र जान लो
तीक्ष्ण दन्त-पंक्ति के बीच तभी सुरक्षित होती है।
दुनिया चमक की दीवानी है
हीरे की कठोरता जग जानी है
मूल्य में उसका न कोई सानी है
टेढ़ापन रहे तो भी मोह न छूटे
दुनिया चमक की ही दीवानी है