चेहरे बदल लें

चलो आज चेहरे बदल लें।

बहुत दिन बीत गये।

लोग अब

हमारी

असलियत

पहचानने लगे हैं

हमें

बहुत अच्छे से

जानने लगे हैं।

 

खरपतवार

वही फ़सल काटते हैं

जो हम बोते हैं,

ऐसा नहीं होता यारो।

जीवन में

खरपतवार का भी

कोई महत्व है

या नहीं।

नहले पे दहला
तू 

नहले पे दहला

लगाना सीख ले

नहीं तो

गुलाम

बनकर

रह जायेगा

 

ज़िन्दगी जीने के तरीके

ज़िन्दगी जीने के

तरीके

यूॅं तो मुझे

ज़िन्दगी जीने के

तरीके बहुत आते हैं

किन्तु क्या करुॅं मैं

उदाहरण और उलाहने

बहुत सताते हैं।

 

दिल  या दिमाग

मित्र कहते हैं,

बात पसन्द न आये

तो एक कान से सुनो,

दूसरे से निकाल दो।

किन्तु मैं क्या करूॅं।

मेरे दोनों कानों के बीच

रास्ता नहीं है।

या तो

दिल को जाकर लगती है

या दिमाग भन्नाती है।

 

झूठ-सच Lia

झूठ-सच के अर्थ बदल गये

फूलों से ज़्यादा कांटे बसर गये

 

रिश्ते
समय की मार में

जो बदल जायें

वे रिश्ते नहीं होते।

रिश्ते क्या होते है

तब ही समझ पाते हैं

जब वे

बदल जाते हैं।

***

अफ़सोस 

कि हम 

बदलते रिश्तों की सूरत

समझ नहीं पाते

और  आजीवन

बिखरे रिश्तों को

ढोते रहते हैं।

**

समय की चोट

रिश्तों को

बार&बार

नया नाम दे देती है

और हम नासमझ

पुराने नामों के साथ ही

उन्हें

आजीवन ढोते रहते हैं।

 ***

टूटे]

रिश्तों को

छोड़ने की

हिम्मत नहीं करते

इस कारण

रोज़]

हर रोज़ मरते हैं।

**-*

 

उड़ान

दिल से भरें

उड़ान

चाहतों की

तो पर्वतों को चीर

रंगीनियों में

छू लेगें आकाश।

 

बस आस मत छोड़ना

कौन कहता है

कि टूटने से

जीवन समाप्त हो जाता है।

टूटकर धरा में मिलेंगे,

नवीन कोंपल से

फिर उठ खड़े होंगे

फिर पनपेंगे,

फूलेंगे, फलेंगे

बस आस मत छोड़ना।

 

मिलन की घड़ियाॅं

चुभती हैं

मिलन की घड़ियाॅं,

जो यूॅं ही बीत जाती हैं,

कुछ चुप्पी में,

अनबोले भावों में,

कुछ कही-अनकही

शिकायतों में,

बातों की छुअन

वादों की कसम

घुटता है मन

और मिलन की घड़ियाॅं

बीत जाती हैं।

 

शब्द लड़खड़ा रहे

रात भीगी-भीगी

पत्तों पर बूंदें

सिहरी-सिहरी

चांद-तारे सुप्त-से

बादलों में रोशनी घिरी

खिड़कियों पर कोहरा

मन पर शीत का पहरा

 शब्द लड़खड़ा रहे

बातें मन में दबीं।

 

बसन्त के फूल खिलें
फूलों के बसन्त की 

प्रतीक्षा नहीं करती मैं

मन में बसन्त के फूल खिलें

बस इतना ही चाहती हूं मैं

जीवन की राहों में

कदम-ताल करते चलें

मन में उमंग

भावों में तरंग

बगिया में हर रंग

और तुम संग

सुनहरे रंगों की लकीर

आप ही खिंच जाती है

ज़िन्दगी में

तो और क्या चाहिए भला।

 

सलवटें
कपड़ों पर पड़ी सलवटें
कोशिश करते रहने से
कभी छूट भी जाती हैं,
किन्तु मन पर पड़ी
अदृश्य सलवटों का क्या करें,
जिन्हें निकालने की कोशिश में
आंखें 
नम हो जाती हैं,
वाणी बिखर जाती हैं,
कपड़ों पर घूमती अंगुलियों में
खरोंच आ जाती है।
कपड़े 
तह-दर-तह 
सिमटते रहते हैं
और मैं बिखरती रहती हूॅं।
  
दो हाईकु

उदासी तो है

चेहरे पे मुस्कान

कुछ समझे

-

उदासी का क्या

कब देखी तुमने

झूठी  मुस्कान

 

भाव

हाइकु

=======

मन में आस

कैसे करें विश्वास

चेहरे बोलें

-

मन में भाव

आशा और निराशा

आँखें बरसें।

-

मन तरसे

कैसे कहें किसी से

कौन अपना

-

 

आंसुओं का क्या

भीग जाने दो आज

चेहरे को आंसुओं से,

भीतर जमी गर्द

धुल जायेगी।

नहीं चाहती मैं

कोई

उस गर्द को

छूने की कोशिश करे,

कोई पढ़े

उसके धुंधले हो चुके शब्द।

नहीं चाहती मैं

कोई कहानियां लिखे।

आंसुओं का क्या

वे तो

सुख-दुख दोनों में

बहते हैं

कौन समझता है

उनका अर्थ यहां।

 

शाम

हाइकु

शाम सुहानी

चंद्रमा की चांदनी

मन बहका

-

शाम सुहानी

पुष्प महक उठे

रंग बिखरे

-

किससे कहूं

रंगीन हुआ मन

शाम सुहानी

-

शाम की बात

सूरज डूब रहा

मन में तारे

 

शरद

हाइकु

शरद ऋतु

मीठी मीठी बयार

मन मुदित

-

कण बरसें

शरद की चांदनी

मन हुलसे

-

शरद ऋतु

चंदा की चांदनी

मन हुलसा

-

ओस के कण

पत्तों पर बहकते

भाव बिखरे

 

जीवन संघर्ष  का दूसरा नाम है

कहते हैं

जीवन संघर्ष  का

दूसरा नाम है।

किन्तु जीवन

बस

संघर्ष ही बना रहे

कभी समर या

संग्राम बनने दें।

कहने को तो

पर्यायवाची शब्द हैं

किन्तु जब

जीवन में उतरते हैं

तब

सबका अर्थ बदल जाता है

इसलिए सावधान रहें।

 

अनचाही दस्तक

श्रवण-शक्ति

तो ठीक है मेरी

किन्तु नहीं सुनती मैं

अनचाही दस्तक।

खड़काते रहो तुम

मेरे मन को

जितना चाहे,

नहीं सुनना मुझे

यदि किसी को,

तो नहीं सुनना।

अपने मन से

जीने की

मेरी कोशिश को

तुम्हारी अनचाही दस्तक

तोड़ नहीं सकती।

 

जीवन के वे पल

जीवन के वे पल

बड़े

सुखद होते हैं जब

पलभर की पहचान से

अनजाने

अपने हो जाते हैं,

किन्तु

कहीं एक चुभन-सी

रह जाती है

जब महसूस होता है

कि जिनके साथ

सालों से जी रहे थे

कभी

समझ ही न पाये

कि वे

अपने थे या अनजाने।

 

दिल घायल

लोग कहते हैं

किसी की बात गलत हो

तो

एक कान से सुनो

दूसरे से निकाल दो।

किन्तु क्या करें

हमारे

दोनों कानों के बीच में

कोई सुंरग नहीं है

बात या तो

सीधी दिमाग़ में लगती है

अथवा

दिल घायल कर जाती है

अथवा

दोनों को तोड़ जाती है।

 

बेटियाँ धरा पर

माता-पिता तो

देना चाहते हैं

आकाश

अपनी बेटियों को

किन्तु वे

स्वयं ही

नहीं जान पाते

कब

उन्होंने

अपनी बेटियों के

सपनों को

आकाश में ही

छोड़ दिया

और उन्हें

उतार लाये

धरा पर

 

ये दो दिन

कहते हैं

दुनिया

दो दिन का मेला,

कहाँ लगा

कबसे लगा,

मिला नहीं।

-

वैसे भी

69 वर्ष हो गये

ये दो दिन

बीत ही नहीं रहे।

 

हाथ जब भरोसे के जुड़ते हैं

हाथ

जब भरोसे के

जुड़ते हैं

तब धरा, आकाश

जल-थल

सब साथ देते हैं

परछाईयाँ भी

संग-संग चलती हैं

जल किलोल करता है

कदम थिरकने लगते हैं

सूरज राह दिखाता है

जीवन रंगीनियों से

सराबोर हो जाता है,

नितान्त निस्पृह

अपने-आप में खो जाता है।

 

 

 

यादें बिखर जाती हैं

पन्ने खुल जाते हैं

शब्द मिट जाते हैं

फूल झर जाते हैं

सुगंध उड़ जाती है

यादें बिखर जाती हैं

लुटे भाव रह जाते हैं

मन में बजे सरगम
मस्ती में मनमौजी मन

पायल बजती छन-छनछन

पैरों की अनबन

बूँदों की थिरकन

हाथों से छल-छल

जल में

बनते भंवर-भंवर

हल्की-हल्की छुअन

बूँदों की रागिनी

मन में बजती सरगम।

अपने मन की सुन

अपने-आपको

अपनी नज़र से

देखना-परखना

अपने सौन्दर्य पर

आप ही मोहित होना

कभी केवल

अपने लिए सजना-संवरना

दर्पण से बात करना

अपनी मुस्कुराहट से

आनन्दित होना

फूलों-सा महकना

रंगों की रंगीनियों में बहकना

चूड़ियों का खनकना

हार का लहकना

झुमकों की खनखन

पल्लू की थिरकन

मन में गुनगुन

बस अपने मन की सुन।

 

एक ज्योति

रातें

सदैव काली ही होती हैं

किन्तु उनके पीछे

प्रकाशमान होती है

एक ज्योति

राहें आलोकित करती

पथ प्रदर्शित करती

उभरती हैं किरणें

धीरे-धीरे

एक चक्र तैयार करतीं

हमारे हृदय में

दिव्य आभा का संचार करतीं

जीवनामृत प्रदान करतीं।

स्त्री की बात

जब कोई यूं ही

स्त्री की बात करता है

मैं समझ नहीं पाती

कि यह राहत की बात है

अथवा चिन्ता की