भ्रष्टाचार मुक्त समाज की परिकल्पना

सेनानियों की वीरता को हम सदा नमन करते हैं

पर अपना कर्तव्य भी वहन करें यह बात करते हैं

भ्रष्टाचार मुक्त समाज की परिकल्पना को सत्य करें

इस तरह राष्ट्र् के सम्मान की हम बात करते हैं

कोई हमें आंख दिखाये  सह नहीं सकते

त्याग, अहिंसा, शांति के नाम पर आज हम पीछे हट नहीं सकते

शक्ति-प्रदर्शन चाहिए, किसी की चेतावनियों से डर नहीं सकते

धरा से गगन तक एक आवाज़ दी है हमने, विश्व को जताते हैं

आत्मरक्षा में सजग, कोई हमें आंख दिखायेसह नहीं सकते

 

बलिदान, त्याग, समर्पण की बात

बलिदान, त्याग, समर्पण की बात  बहुत करते हैं, बस सैनिकों के लिए

अपने पर दायित्व आता है जब, रास्ते बहुत हैं हमारे पास बचने के लिए

बस दूसरों से अपेक्षाएं करें और आप चाहिए हमें चैन की नींद हर पल

सीमा पर वे ठहरे हैं, हम भी सजग रहें सदा, कर्त्तव्य निभाने के लिए

 

जीवन के प्रश्‍नपत्र में

जीवन के प्रश्‍नपत्र में कोई प्रश्‍न वैकल्पिक नहीं होते

जीवन के प्रश्‍नपत्र के सारे प्रश्‍न कभी हल नहीं होते

किसी भाषा में क्‍या लिख डाला, अनजाने से बैठे हम

इस परीक्षा में तो नकल के भी कोई आसार नहीं होते 

 

पूछती है मुझसे मेरी कलम

राष्ट्र भक्ति के गीत लिखने के लिए कलम उठाती हूं जब जब

पूछती है मुझसे मेरी कलम, देश हित में तूने क्‍या किया अब तक

भ्रष्ट्राचार, झूठ, रिश्वतखोरी,अनैतकिता के विरूद्ध क्या लड़ी कभी

गीत लिखकर महान बनने की कोशिश करोगे कवि तुम कब तक

सजग रहना हमारा कर्त्तव्य है

केवल दोषारोपण करके अपनी कमज़ोरियों से हम मुंह मोड़ नहीं सकते

सजग रहना हमारा कर्त्तव्य है, अपने दायित्वों को  हम छोड़ नहीं सकते

देश की सुरक्षा हेतु सैनिकों के बलिदान को कैसे व्यर्थ हो जाने दें हम

कुछ ठोस हो अब, विश्वव्यापी आतंकवाद से हम मुंह मोड़ नहीं सकते

उदित होते सूर्य से पूछा मैंने

उदित होते सूर्य से पूछा मैंने, जब अस्त होना है तो ही आया क्यों
लौटते चांद-तारों की ओर देख, सूरज मन ही मन मुस्काया क्यों
कभी बादल बरसे, इन्द्रधनुष निखरा, रंगीनियां बिखरीं, मन बहका
परिवर्तन ही जीवन है, यह जानकर भी तुम्हारा मन भरमाया क्यों

क्यों मैं नीर भरी दुख की बदरी

(कवियत्री महादेवी वर्मा की प्रसिद्ध रचना की पंक्ति पर आधारित रचना)

• * * * *

क्यों मैं नीर भरी दुख की बदरी

न मैं न नीर भरी दुख की बदरी

न मैं राधा न गोपी, न तेरी हीर परी

न मैं लैला-मजनूं की पीर भरी।

• * * * *

जब कोई कहता है

नारी तू महान है, मेरी जान है

पग-पग तेरा सम्मान है

जब मुझे कोई त्याेग, ममता, नेह,

प्यार की मूर्ति या देवी कहता है

तब मैं एक प्रस्तर-सा अनुभव करती हूं।

जब मेरी तुलना सती-सीता-सावित्री,

मीरा, राधा से की जाती है

तो मैं जली-भुनी, त्याज्य, परकीया-सी

अपमानित महसूस करती हूं।

जब दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती से

तुलना की जाती है

तब मैं खिसियानी सी हंसने लगती हूं।

o * * *

ढेर सारे अर्थहीन श्लाघा-शब्द

मुझे बेधते हैं, उपहास करते हैं मेरा।

• * * * * *

न मुझे आग में जलना है

न मुझे सूली पर चढ़ना है

न महान बनना है,

बेतुके रिश्तों में न बांध मुझे

मुझे बस अपने मन से जीना है,

अपने मन से मरना है।

 

अस्त होते सूर्य को नमन करें

हार के बाद भी जीत मिलती है  

चलो आज हम अस्त होते सूर्य को नमन करें
घूमकर आयेगा, तब रोशनी देगा ही, मनन करें
हार के बाद भी जीत मिलती है यह जान लें,
न डर, बस लक्ष्य साध कर, मन से यत्न करें

अनुभव की थाती

पर्वतों से टकराती, उबड़-खाबड़ राहों पर जब नदी-नीर-धार बहती है

कुछ सहती, कुछ गाती, कहीं गुनगुनाती, तब गंगा-सी निर्मल बन पाती है

अपनेपन की राहों में ,फूल उगें और कांटे न हों, ऐसा कम ही होता है

यूं ही जीवन में कुछ खोकर, कुछ पाकर, अनुभव की थाती बन पाती है।

कुछ आहटें आवाज़ नहीं करती

कुछ आहटें

आवाज़ नहीं करती,

शोर नहीं मचातीं,

मन को झिंझोड़ती हैं,

समझाती हैं,

समय पर सचेत करती हैं,

बेआवाज़

कानों में गूंजती हैं।

दबे कदमों से

हमारे भीतर

प्रवेश कर जाती हैं।

दीवारों के आर-पार

भेदती हैं।

यदि कभी महसूस भी करते हैं हम

तो हमें शत्रु-सी प्रतीत होती हैं।

 

क्योंकि

हम शोर के आदी,

चीख-चिल्लाहटों के साथी,

जिह्वा पर विषधर पाले,

उन आहटों को पहचान ही नहीं पाते

जो ज़िन्दगी की आहट होती हैं

जो अपनों की आवाज़ होती हैं

जीवन-संगीत और साज़ होती हैं

 

भटकते हैं हम,

समझते और कहते हैं

हमारा कोई नहीं।

 

 

बासी रोटी-से तिरछे ऐंठे हैं

प्रेम-प्यार की बातें करते, मन में गांठें बांधे बैठे हैं

चेहरा देखो तो इनका, बासी रोटी-से तिरछे ऐंठे हैं

झूठे वादे टप-टप गिरते, गठरी देखो खुली पड़ी

दिखते प्यारे, हमसे पूछो, अन्दर से कितने कैंठे हैं।

जीवन में अपनेपन के द्वार बहुत हैं

जीवन में आस बहुत है, विश्वास बहुत है

आस्था, निष्ठा, श्रद्धा के आसार बहुत हैं

बस एक बार संदेह की दीवारें गिरा दो

जीवन में अपनेपन के खुले द्वार बहुत हैं।

मंचों पर बने रहने के लिए

अब तो हमको भी आनन-फ़ानन में कविता लिखना आ गया

बिना लय-ताल के प्रदत्त शीर्षक पर गीत रचना आ गया

जानते हैं सब वाह-वाह करके किनारा कर लेते हैं बिना पढ़े

मंचों पर बने रहने के लिए हमें भी यह सब करना आ गया

अब वक्त चला गया

 

सहज-सहज करने का युग अब चला गया

हर काम अब आनन-फ़ानन में करना आ गया

आज बीज बोया कल ही फ़सल चाहिए हमें

कच्चा-पक्का यह सोचने का वक्त चला गया

बात कहो खरी-खरी

बात कहो खरी-खरी, पर न कहना जली-कटी

बात-बात में उलझो न, सह लेना कभी जली-कटी

झूठी लाग-लपेट से कभी रिश्ते नहीं संवरते

देखना तब रिश्तों की दूरियां कब कैसे मिटीं

भाग-दौड़ में  बीतती ज़िन्दगी

 कभी अपने भी यहां क्यों अनजाने लगे

जीवन में अकारण बदलाव आने लगे

भाग-दौड़ में कैसे बीतती रही ज़िन्दगी

जी चाहता है अब तो ठहराव आने लगे

संसार है घर-द्वार

अपनेपन, सम्बन्धों का आधार है घर-द्वार

रिश्तों का, विश्वास का संसार है घर-द्वार

जीवन बीत जाता है संवारने-सजाने में

सुख-दुख के सामंजस्य का आधार है घर-द्वार

ज़िन्दगी एक बेनाम शीर्षक

समय के साथ कथाएं इतिहास बनकर रह गईं

कुछ पढ़ी, कुछ अनपढ़ी धुंधली होती चली गईं

न अन्त मिला न आमुख रहा, अर्थ सब खो गये

बस ज़िन्दगी एक बेनाम शीर्षक बनकर रह गई

आशाओं का उगता सूरज

चिड़िया को पंख फैलाए नभ में उड़ते देखा

मुक्त गगन में आशाओं का उगता सूरज देखा

सूरज डूबेगा तो चंदा को भेजेगा राह दिखाने

तारों को दोनों के मध्य हमने विहंसते देखा

सबको बहकाते

पुष्प निःस्वार्थ भाव से नित बागों को महकाते

पंछी को देखो नित नये राग हमें मधुर सुनाते

चंदा-सूरज दिग्-दिगन्त रोशन करते हर पल

हम ही क्यों छल-कपट में उलझे सबको बहकाते

कुछ सपने कुछ अपने

कहने की ही बातें है कि बीते वर्ष अब विदा हुए

सारी यादें, सारी बातें मन ही में हैं लिए हुए

कुछ सपने, कुछ अपने, कुछ हैं, जो खो दिये

आने वाले दिन भी, मन में हैं एक नयी आस लिए

न मैं जानूं न तुम जानो फिर भी अच्छे लगते हो

न मैं जानूं न तुम जानो फिर भी अच्छे लगते हो

न तुम बोले न मैं, मुस्कानों में क्यों बातें करते हो

अनजाने-अनपहचाने रिश्ते अपनों से अच्छे लगते हैं

कदम ठिठकते, दहलीज रोकती, यूं ही मन चंचल करते हो

सर्दी  में सूरज

इस सर्दी  में सूरज तुम हमें बहुत याद आते हो

रात जाते ही थे, अब दिन भर भी गायब रहते हो

देखो, यूं न हमें सताओ, काम कोई कर पाते नहीं

कोहरे को भेद बाहर आओ, क्यों हमें तरसाते हो

समझे बैठे हैं यहां सब अपने को अफ़लातून

जि़न्‍दगी बिना जोड़-जोड़ के कहां चली है

करता सब उपर वाला हमारी कहां चली है

समझे बैठे हैं यहां सब अपने को अफ़लातून

इसी मैं-मैं के चक्‍कर में सबकी अड़ी पड़ी है

नियति

जन्म होता है

मरने के लिए।

लड़कियां भी

जन्म लेती हैं

मरने के लिए।

अर्थात्

जन्म लेकर

मरना है

हर लड़की को।

फिर, जब

मरना तय है

तो क्या फ़र्क पड़ता है

कि वह

किस तरह मरे।

कल की मरती

आज मरे।

कल का क्लेश

आज कटे।

जलकर मरे

या डूबकर मरे।

या पैदा होने से

पहले ही मरे।

जब जन्म होता ही

मरने के लिए है

तो जल्दी जल्दी मरे।

मैं करती हूं दुआ

धूप-दीप जलाकर, थाल सजाकर,

मां को अक्सर देखा है मैंने ज्योति जलाते।

टीका करते, सिर झुकाते, वन्दन करते,

पिता को देखा है मैंने आरती उतारते।

हाथ जोड़कर, आंख मूंदकर देखा है मैंने

भाई-बहनों को आरती गाते

मां कहती है सबके दुख-दर्द मिटा दे मां

पिता मांगते सबको बुद्धि, अन्न-धन दे मां

भाई-बहन शिक्षा का आशीष मांगे

और सब करते मेरे लिए दुआ।

 

मां, पिता, भाई-बहनों की बातें सुनती हूं

आज मैं भी करती हूं तुमसे इन सबके लिए दुआ।

सुना है कोई भाग्य विधाता है

सुना है

कोई भाग्य विधाता है

जो सब जानता है।

हमारी होनी-अनहोनी

सब वही लिखता है ,

हम तो बस

उसके हाथ की कठपुतली हैं

जब जैसा चाहे वैसा नचाता है।

 

और यह भी सुना है

कि लेन-देन भी सब

इसी ऊपर वाले के हाथ में है।

जो चाहेगा वह, वही तुम्हें देगा।

बस आस लगाये रखना।

हाथ फैलाये रखना।

कटोरा उठाये रखना।

मुंह बाये रखना।

लेकिन मिलेगा तुम्हें वही

जो तुम्‍हारे  भाग्य में होगा।

 

और यह भी सुना है

कर्म किये जा,

फल की चिन्ता मत कर।

ऊपर वाला सब देगा

जो तुम्हारे भाग्य में लिखा होगा।

और भाग्य उसके हाथ में है

जब चाहे बदल भी सकता है।

बस ध्यान लगाये रखना।

 

और यह भी सुना है

कि जो अपनी सहायता आप करता है

उसका भाग्य ऊपर वाला बनाता है।

इसलिए अपनी भी कमर कस कर रखना

उसके ही भरोसे मत बैठे रहना।

 

और यह भी सुना है

हाथ धोकर

इस ऊपर वाले के पीछे लगे रहना।

तन मन धन सब न्योछावर करना।

मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा कुछ न छोड़ना।

नाक कान आंख मुंह

सब उसके द्वार पर रगड़ना।

और फिर कुछ बचे

तो अपने लिए जी लेना

यदि भाग्य में होगा तो।

 

आपको नहीं लगता

हमने कुछ ज़्यादा ही सुन लिया है।

 

अरे यार !

अपनी मस्ती में जिये जा।

जो सामने आये अपना कर्म किये जा।

जो मिलना है मिले

और जो नहीं मिलना है न मिले

बस हंस बोलकर आनन्द में जिये जा।

और मुंह ढककर अच्छी नींद लिये जा।

 

यात्रा

 

अस्पलात से श्मशान घाट तक

अर्थी को कंधे पर उठाये

थक रहे थे चार आदमी।

 

एक लाश थी

और चार आदमी।

अस्पलात से श्मशान घाट दूर था।

वैसे तो मिल जाती

अस्पताल की गाड़ी

अस्पलात से श्मशान घाट।

पर कंधों पर ढोकर

इज़्जत दी जाती है आदमी को

मरने के बाद की।

और वे चार आदमी

उसे इज़्जत दे रहे थे।

और इस इज़्जत के घेरे में

रास्ते में

अर्थी ज़मीन पर रखकर

सुस्ताना मना था।

पर वह आदमी

जो मर चुका था

मरने के बाद की स्थिति में

लाश।

उसे दया आई

उन चारों पर।

बोली

भाईयो,

 

थक गये हो तो सुस्ता लो ज़रा

मैं अपने आपको

बेइज़्जत नहीं मानूंगी।

चारों ने सोचा

लाश की यह अन्तिम इच्छा है

जलने से पहले।

इसकी यह इच्छा

ज़रूर पूरी करनी चाहिए।

और वे चारों

उस मोड़ पर

छायादार वृक्ष के नीचे

अर्थी ज़मीन पर रखकर

आराम फ़रमाने लगे।

अचानक

लाश उठ बैठी।

बोली,

मैं लेटे लेटे थक गई हूं।

बैठकर ज़रा कमर सीधी कर लूं।

तुम चाहो तो लेटकर

कमर सीधी कर लो।

मैं कहां भागी जा रही हूं

लाश ही तो हूं।

और वे चारों आदमी लेट गये

और लाश रखवाली करने लगी।

वे चारों

आज तक सो रहे हैं

और लाश

रखवाली कर रही है।

क्रांति

क्रांति उस चिड़िया का नाम है

जिसे नई पीढ़ी ने जन्म दिया।

पुरानी पीढ़ी उसके पैदा होते ही

उसके पंख काट देना चाहती है।

लेकिन नई पीढ़ी उसे उड़ना सिखाती है।

जब वह उड़ना सीख जाती है

तो पुरानी पीढ़ी

उसके लिए,

एक सोने का पिंजरा बनवाती है

और यह कहकर उसे कैद कर लेती है

कि नई पीढ़ी तो उसे मार ही डालती।

यह तो उसकी सुरक्षा सुविधा का प्रबन्ध है।

 

वर्षों बाद

जब वह उड़ना भूल जाती है

तो पिंजरा खोल दिया जाता है

क्योंकि

अब तक चिड़िया उड़ना भूल गई है

और सोने का मूल्य भी बढ़ गया है

इसलिए उसे बेच दिया जाता हे

नया लोहे का लिया जाता है

जिसमें नई पीढ़ी को

इस अपराध में बन्द कर दिया जाता है

आजीवन

कि उसने हमें खत्म करने,

मारने का षड्यन्त्र रचा था

हत्या करनी चाही थी हमारी।