प्यार के बाज़ार

प्यार के बाज़ार में अपनापन ढूॅंढने निकले थे

सबकी कीमत थी वहाॅं, मॅंहगे-मॅंहगे बिकते थे

चेहरों पर कृत्रिम मुस्कान लिए सब बैठे थे

जाकर देखा तो प्यार के झूठे वादे पलते थे

लक्ष्य कहीं पीछे छूट गये

लक्ष्य कहीं पीछे छूट गये

राहें हम कब की भूल गये

मंजिल का अब पता नहीं

अपने ही अपनों को लूट गये

सच कड़वा है

उपदेशों से डरने लगी हूॅं जीवन जीने के लिए मरने लगी हूॅं

दुनियाा बड़ी मनमोहिनी, इच्छाओं को पूरा करने में लगी हूॅं

पता है मुझे खाली हाथ आये थे, खाली हाथ ही जायेंगे

सच कड़वा है, सबके साथ मैं भी मुट्ठियाॅं भरने में लगी हूॅं।

मौसम भी दगा दे रहा

चाय के प्याले रीत गये

मनमीत  कहीं छूट गये

मौसम भी दगा दे रहा

दिन तो यूॅं ही  बीत गये

कैसे होगा ज्ञान वर्द्धन
हम तो ठहरे मूरख प्राणी, कैसे होगा ज्ञान वर्द्धन

ताक-झांक कर-करके ही मिलता है ज्ञान सघन

गूगल में क्या रखा है, अपडेट रहने के लिए

दीवारों की दरारों से सिर टिका करने बैठे हैं मनन

अनिर्वचनीय सौन्दर्य

सूरज की किरणों से तप रही धरा

बादलों ने आकर सुनहरा रूप धरा

सुन्दर आकृतियों से आवृत नभ से

अनिर्वचनीय सौन्दर्य से सजी धरा

बोतलों में बन्द पानी
बोतलों में बन्द पानी पीकर प्यास बुझा रहे

स्वच्छ पानी के लिए कीमत भारी चुका रहे

नहीं जानते बोतलों में क्या भरा, किसने भरा

बोतलों पर एक्सपायरी देख हम चकरा रहे

जल-प्रपात सूख रहे हैं

जल-प्रपात सूख रहे हैं, बादल हमसे रूठ रहे हैं

धरती प्यासी, मन भी प्यासा, प्रेम-रस हम ढूॅंढ रहे हैं

कहीं जल-प्लावन होगा, कहीं धरा सूखे से उलझ रही

आॅंधी-पानी कुछ भी बरसे, नदियों के तट टूट रहे हैं

मर्यादाओं की बात करें

मर्यादाओं की बात करें, मर्यादा का ज्ञान नहीं

बात करें भगवानों की, धर्म-कर्म का भान नहीं

भाषा सुनकर मानों कानों में गर्म तेल ढलता है

झूठे ठाट-बाट दिखलाते, अपनों का ही मान नहीं

कड़वाहट भी अच्छी
बोल-चाल वैसी ही जैसे मन में भाव

देख-देख औरों को चढ़े हमें है ताव

नीम-करेले की कड़वाहट भी अच्छी

तुम्हीं बताओ कौन करे तुमसे लगाव

 

झूठी तेरी वाणाी

बोल-अबोल कुछ भी बोल, मन की कड़ियाॅं खोल

आज तो तेरे साथ करें हम वार्ता खोलें तेरी पोल

देखें तो कितनी सच्ची, कितनी झूठी तेरी वाणाी

बोल-चाल से भाग लिए पर लगेगा अब तो मोल

अप्रत्यक्ष कर

प्रत्यक्ष करों की क्या बात करें, परोक्ष करों की यहाॅं मार है

हर वस्तु के पीछे छिपे अनगिन कितने टैक्सों की भरमार है

कभी अपने बिल की जांच करना और देखना वस्तु का मूल्य

मूल्य से अधिक खा जाते हैं कर, यही हमारे जीवन का सार है।

प्रत्यक्ष कर

वेतन मिलता कम है, कट जाता ज़्यादा है

आधा वेतन तो प्रत्यक्ष कर ही खा जाता है

हर वर्ष बढ़ता जा रहा है करों का दायरा

हम ही जानते हैं घर कैसे चल पाता है।

रंग-बिरंगी ये लहरें
क्यों पाषाणों का आभास देती रंग-बिरंगी ये लहरें

क्यों रक्त-रंजित होने का आभास दे रहीं ये लहरें

एक तूलिका की छुअन से सब बदल देने की आस

भावों के उत्पात को सहज ही समझा रही ये लहरें

मतदान
मतदान करने चले, नाम प्रत्याशी का ज्ञात नहीं।

किसको चुनना, क्यों चुनना, चर्चा की तो बात नहीं।

कोई आये, कोई जाये, हमें तो बस रोना ही आता है

अधिकारों का उपयोग करें, इतनी हममें सामर्थ्य नहीं।

सत्य सदा ही कड़वा होता

कहते हैं जिह्वा देह में सबसे कोमल होती है

किन्तु कड़वे बोल बोलने में भी प्रथम होती है

सत्य सदा ही कड़वा होता है मित्र जान लो

तीक्ष्ण दन्त-पंक्ति के बीच तभी सुरक्षित होती है।

दुनिया चमक की दीवानी है

हीरे की कठोरता जग जानी है

मूल्य में उसका न कोई सानी है

टेढ़ापन रहे तो भी मोह न छूटे

दुनिया चमक की ही दीवानी है

खुशियाॅं समेट लें ज़रा

झरझर झरता पानी, चल भीग लें ज़रा

फूलों की मदमाती डालियाॅं देख लें ज़रा

गगन से धरा तक हवाओं को परख लें ज़रा

रंगीन है ये दुनिया, खुशियाॅं समेट लें ज़रा

चिड़िया नारी

चिड़िया नारी तुम मुझको उड़ना सिखलाना

फिर मुझसे लेकर रोटी-दाना-पानी खाना

दोनों मिलकर खायेंगे, खूब मौज उड़ायेंगे

फिर मैं अपने घर, तुम अपने घर जाना

खोजता है मन

रोशनियों के पीछे भागता है मन

छोटी चाहतों को खोजता है मन

अंधेरे की आहटों से डरता है मन

जुगनुओं सी चमक ढूंढता है मन

छोटे-छोटे मतभेदों पर
गाल सुजाये बैठे हैं, मुंह फुलाए बैठै हैं

छोटी-छोटी बातों पर होंठ दबाए बैठे हैं

छोटे-छोटे मतभेदों पर ऐसे कोई करता है

फूली जली रोटी-से आंख चढ़ाए बैठे हैं

भूल हुई कहाॅं थी

रुखसत क्या हुए ज़िन्दगी से, सब भूल-भुलैया हो गई

सीधे चलते-चलते ज़िन्दगी टेढ़े-मेढ़े मोड़ों में खो गई

समझ पाये नहीं, समझा सकते नहीं, भूल हुई कहाॅं थी

बदल गईं हाथों की लकीरें, किस्मत मानों सो गई।

नयानाभिराम रूप रघुराई

राम-लखन संग-संग चले, अयोध्या नगरी मुस्काई

दीपों की आभा से आलोकित सब जन-मन हरषाई

हर मन में उल्लास है, मधुर गान से नभ गूंज रहा 

गगन-धरा सब निरख रहे, नयानाभिराम रूप रघुराई

प्रदर्शन का दर्शनn
पर्व अब प्रदर्शन बनकर रह गये हैं

प्रदर्शन का दर्शन बनकर रह गये हैं

उपहारों का लेन-देन प्रथा बन गई

बाज़ारीकरण में रिश्ते कहाॅं रह गये हैं

खुशियों का आभास देती
हरे-हरे पल्लव कब पीत हुए, कब झर गये

नव-पल्लव अंकुरित हुए, चकित मुझे कर गये

खुशियों का आभास देती खिलीं पुष्पांजलियाॅं

फूलों की पंखुरियों ने रंग लिखे, मन भर गये

शक्ति-स्वरूपा

दिव्य आलोकित रूप तुम्हारा मन हर्षित करता है

हाथों में त्रिशूल देखकर मन में साहस भरता है

भोली-सी मुस्कान तुम्हारी आशीष की भांति लगती है

शक्ति-स्वरूपा हो तुम, अरि भी तुमसे डरता है।

सुहाना दिन

भोर की रंगीनीयाॅं मदमाती हैं

सूर्य रश्मियाॅं मन भरमाती हैं

सुहाना दिन आया जीवन में

भावों की कलियाॅं शरमाती हैं

 

कोई नहीं अपना

काफ़िलों में हम चले, लगा कोई सहारा मिला

राहों में कौन छूट गया, कौन अलग हो चला

देखते-देखते ही बिखराव की एक आंधी आई

अपना रहा कोई पराया, विलग हो ही भला

नई  शुरुआत
चल आज एक नई भोर से शुरुआत करें

चाय पीयें, कुछ आनन्द के पल फिर जियें

कल की मधुर स्मृतियाॅं आनन्द देती हैं

प्रकाश की किरणों से जीवन में नवरस भरें

नये साल में

नये साल में कुछ नई बात करें

पिछला भूल, नये पथ पर बढ़ें       

जीवन खुशियों का सागर है

मोती चुन लें, कंकड़ छोड़ चलें