चल मौज मनायें
पढ़ने-लिखने में क्या रखा है, चल ढोल बजायें
कहते हैं जीवन छोटा है, फिर चल मौज मनायें
न कोई पुस्तक, न परीक्षा, न कोई अध्यापक
ताल-सुर में क्या रखा है, बस अपना मन बहलायें
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रंगों में भी इक महक होती है
रंगों में भी इक महक होती है, मन बहकाती है
अस्त होते सूर्य की गरिमा मन पर छा जाती है
कहीं कुमकुम-से, कहीं इन्द्रधनुषी रंग बिखर रहे
सागर के जल में रंगों की परछाईयाँ मन मोह जाती हैं
देख रहे त्रिपुरारी
भाल तिलक, माथ चन्द्रमा, गले में विषधर भारी
गौरी संग नयन मूंदकर जग देख रहे त्रिपुरारी
नेह बरसे, मन सरसे, देख-देख मन हरषे
विषपान किये, भागीरथी संग देखें दुनिया सारी
रोशनियाँ खिलती रहें
कदम बढ़ते रहें, जीवन चलता रहे, रोशनियाँ खिलती रहें
शाम हो या सवेरा, आस और विश्वास से बात बनती रहे
कहीं धूप खिली, कहीं छाया, कहीं बदरी छाये मन भाये
विश्राम क्या करना, जब साथ हों सब, खुशियाँ मिलती रहें
संगम का भाव
संगम का भाव मन में हो तो गंगा-घाट घर में ही बसता है
रिश्तों में खटास हो तो मन ही भीड़-तन्त्र का भाव रचना है
वर्षों-वर्षों बाद आता है कुम्भ जहाँ मिलते-बिछड़ते हैं अपने
ज्ञान-ध्यान, कहीं आस-विश्वास, इनसे ही जीवन चलता है
कोहरे में छिपी ज़िन्दगी
कोहरे में छिपी ज़िन्दगी भी तो आनन्द देती है
भीतर क्या चल रहा, सब छुपाकर रख देती है
कभी सूरज झांकता है, कभी बूँदे बहकती हैं
मन के भावों को परखने का समय देती हैं।
रोशनियाँ अंधेरों में भटक रही हैं
देखना ज़रा, आज रोशनियाँ अंधेरों में भटक रही हैं
पग-पग पर कंकड़-पत्थर हैं, पैरों में अटक रही हैं
न अंधेरे मिले सही से, न रोशनियों ने राह दिखाई
जीवन की गति इनकी ही पहचान में सटक रही है
मन में अब धीरज कहाँ रह गया
मन में अब धीरज कहाँ रह गया
पल-पल उलझनों में बह गया
मन का मौसम भी तो बदल रहा
पता नहीं कौन क्या-क्या कह गया
स्वार्थ का मुखौटा
किसी को कौन कब यहाँ पहचानता है
स्वार्थ का मुखौटा हर कोई पहनता है
मुँह फ़ेर कर निकल जाते हैं देखते ही
बस अगले-पिछले बदले निकालता है।
एकान्त काटता है
धरा दरक रही, वृक्ष पल्लवविहीन हो गये
एकान्त काटता है, साथी न कोई रह गये
आँखें शून्य में ताकती, नहीं कोई दूर तक
श्वेताभा में भी नैराश्य मानों सब पराये हो गये
दर्द का अब घूँट पिये
पुण्य करने गये थे, अपनों को साथ आस लिए
हाथ छूटे, साथ छूटे, कितने रहे, कितने जिये
नाम नहीं, पहचान नहीं, लाखों की भीड़ रही
अपनों को कहाँ खोजें, दर्द का अब घूँट पिये
जियें या मरें
किसी के हित में कुछ करें,
अपकार के लिए तैयार रहें
अच्छाईयाँ कोई नहीं देखता
आप चाहें जैसे जियें या मरें।
दयालुता न दिखलाना
दयालुता न दिखलाना
सहयोग का हाथ बढ़ाना
आँख न हो नीची कभी
हाथ से हाथ मिलाना
मंगल गान गा रहे
मंगल गान गा रहे, जीवन में खुशियाँ ला रहे हम
वन्दन सूर्य का कर रहे, जीवन में प्रकाश ला रहे हम
छोटे-छोटे उत्सव, छोटी-छोटी खुशियाँ आती रहें
हॅंस-बोलकर, मेल-मिलाप से जीवन में रंग ला रहे हम
कोहरे में दूरियाँ
कोहरे में दूरियाँ दिखती नहीं हैं, नज़दीकियाँ भी तो मिटती नहीं हैं
कब, कहाँ, कौन, कैसे टकरा जाये, दृष्टि भी स्पष्ट टिकती नहीं है
वेग पर नियन्त्रण, भावनाओं पर नज़र रहे, रुक-रुककर चलना ज़रा
यही अवसर मिलता है समझने का, अपनों की पहचान मिटती नहीं है
छोटी-छोटी रोशनियाँ मिलती रहें
तिमिर में कभी जुगनुओं की रोशनियों का आनन्द लिया करते थे
पता नहीं कहाँ चले गये, टिमटिम करते आनन्द दिया करते थे
छोटी-छोटी रोशनियाँ मिलती रहें, जीवन की धार चली रहती है
गहन अंधेरे में भी मन से रोशनियों का आनन्द लिया करते थे
बह रही ठण्डी हवाएँ
बह रही ठण्डी हवाएँ, मौसम में है खलबली रवि-घन उलझ रहे, चिड़िया हो गई चुलबुली शीत-धूप के बीच ओस-कण हैं बिखर रहे बूँद-बूँद से नम धरा देखो कैसे महक चली
रेत पर कदम Steps On Sand
रेत पर कदम बड़ी मुश्किल से सम्हलते हैं
धूप में नयन जल का भ्रम पैदा करते हैं
मृगमरीचिका में ही बीत जाता है जीवन
हम फिर भी खुशियाँ ढूँढ लिया करते हैं।
जिह्वा की तलवार
क्रोध में ठीक से भाव व्यक्त कर नहीं पाती
अपनी भावनाओं पर नियन्त्रण रख नहीं पाती
चाहती तो हूॅं शब्दों से ही कत्ल कर दूॅं तेरा
पर जिह्वा की तलवार को धार दे नहीं पाती
मेरे दिल के घाव
नहीं चाहती मैं मेरे दिल के घाव बादलों-से बरसें
नहीं चाहती मैं मेरे दिल के घाव कोई भी पढ़ ले
अपने ही हाथों में अपना दिल थामकर बैठी हूॅं मैं
नहीं चाहती मैं मेरे दिल के हाल पर कुछ लिख ले
मीठी वाणी भूल गये
आचार-विचार परखें औरों के, अपनी भाषा अशुद्ध
नये-नये शब्द गढ़ रहे, कहते भाषा हमारी विशुद्ध
मीठी वाणी तो कबके भूल गये, कटाक्ष करें हरदम
कभी-कभी तो लगता न जाने क्यों रहते हैं यूॅं क्रुद्ध
मन कलपता है
भला-बुरा यहाॅं सब साथ-साथ चलता है
मन बहका है कहाॅं अच्छी बातों में रमता है
इसकी, उसकी, सबकी करते दिन बीते है
अपनी बारी आती है तब मन कलपता है
चाहतें भी थोड़ी-सी
गगन की उड़ान है
छोटा-सा मकान है
चाहतें भी छोटी ही
बादलों में स्थान है।
बचपन की बातें
हवा में उड़ते धागों को पकड़ने के लिए भागा करते थे
पकड़-पकड़ कर बोतलों में एकत्र कर लिया करते थे
मन में डर रहता था कि कहीं काले-काले कीट तो नहीं
बाद में इनका गुच्छा बनाकर हवा में उड़ा दिया करते थे।
समाचारों में बहुत शोर हुआ
गली में कुत्ता रोया, समाचारों में बहुत शोर हुआ
बिल्ली ने चूहा खाया, समाचारों में बहुत शोर हुआ
शेर दहाड़ा जंगल में, सुना, न देखा, बस बात हुई
कौए न की काॅं काॅं, समाचारों में बहुत शोर हुआ
कभी झड़ी, कभी धूप
कभी-कभी यूॅं ही सोचने में दिन निकल जाता है
काम बहुत, पर मन नहीं लगता अकेलापन भाता है
ये सूनी-सूनी राहें, झरते पत्ते, कांटों की आहट
कभी झड़ी, कभी धूप, कहाॅं समझ में कुछ आता है
अपने पर विश्वास बनाये रखना
ढाल नहीं, तलवार की धार बनाये रखना
माॅंगना मत सुरक्षा, हाथ में तलवार रखना
आॅंख खुली रहे, भरोसा अपने आप पर हो
हारना नहीं, अपने पर विश्वास बनाये रखना
अच्छे हो तुम
वैसे तो बहुत अच्छे हो तुम
बस बातों के कच्चे हो तुम
काम कोई पूरा करते नहीं
माना बुद्धि में बच्चे हो तुम
प्यार के नाम पर दिखावा
अटूट बन्धन बस स्वार्थ के ही होते हैं इस संसार में
कोई न अपना, कोई न सपना, धोखा है इस संसार में
जिन्हें अपना समझा वे ही छोड़कर चले गये दुःख में
प्यार के नाम पर बस दिखावा ही है इस संसार में
ज़िन्दगी किसी उत्सव से कम नहीं
ज़िन्दगी किसी उत्सव से कम नहीं बस मनाने की बात है
ज़िन्दगी किसी उपहार से कम नहीं बस समझने की बात है
कुछ नाराज़गियों, निराशाओं से घिरे हम समझ नही पाते
ज़िन्दगी किसी प्रतिदान से कम नहीं बस पाने की बात है