प्रकृति का सौन्दर्य चित्र

कभी-कभी सूरज

के सामने ही

बादल बरसने लगते हैं।

और जल-कण,

रजत-से

दमकने लगते हैं।

तम

खण्डित होने लगता है,

घटाएं

किनारा कर जाती हैं।

वे भी

इस सौन्दय-पाश में

बंध दर्शक बन जाती हैं।

फिर

मानव-मन कहां

तटस्थ रह पाता है,

सरस-रस से सराबोर

मद-मस्त हो जाता है।