लौटा दो मेरे बीते दिन

अब पानी में लहरें

हिलोरें नहीं लेतीं,

एक अजीब-सा

ठहराव दिखता है,

चंचलता मानों प्रश्न करती है,

किश्तियां ठहरी-ठहरी-सी

उदास

किसी प्रिय की आस में।

पर्वत सूने,

ताकते आकाश ,

न सफ़ेदी चमकती है

न हरियाली दमकती हैं।

फूल मुस्कुराते नहीं

भंवरे गुनगुनाते नहीं,

तितलियां

पराग चुनने से डरने लगी हैं।

केसर महकता नहीं,

चिड़िया चहकती नहीं,

इन सबकी यादें

कहीं पीछे छूटने लगी हैं।

जल में चांद का रूप

नहीं निखरता,

सौन्दर्य की तलाश में

आस बिखरने लगी है।

 

बस दूरियां ही दूरियां,

मन निराश करती हैं।

 

लौटा दो

मेरे बीते दिन।