बचपन-बचपन खेलें

हमने फ़ोन बनाया

न बिल आया

न हैंग हुआ।

न पैसे लगे

न टैंग हुआ।

न टूटे-फ़ूटे,

न सिग्नल की चिन्ता

न चार्ज किया।

न लड़ाई

न बहस-बसाई।

जब तक

चाहे बात करो

कोई न रोके

कोई न टोके।

हम भी लें लें

तुम भी ले लो

आओ आओ

बचपन-बचपन खेलें।

 

हास्य बाल कथा गीदड़ और ऊंट की कहानी
अध्यापक ने तीसरी कक्षा के बच्चों को यह बोध कथा सुनाई।

 एक जंगल में गीदड़ और ऊंट रहते थे। एक दिन गीदड़ ने ऊंट  से कहा, नदी पार गन्नों का खेत है, चलो आज रात  वहां गन्ने खाने चलते हैं। ऊंट ने पूछा कि तुम कैसे नदी पार करोगे, तुम्हें तो तैरना नहीं आता। गीदड़ ने कहा कि देखो मैंने तुम्हें गन्ने के खेत के बारे में बताया, तुम मुझे अपनी पीठ पर बैठाकर नदी पार करवा देना। हम अंधेरे में ही चुपचाप गन्ने खाकर आ जायेंगे, खेत का मालिक नहीं जागेगा।

दोनों नदी पारकर खेत में गये और पेटभर कर गन्ने खाये। ऊंट ने कहा चलो वापिस चलते हैं। लेकिन गीदड़ अचानक गर्दन ऊपर उठाकर ‘‘हुआं-हुआं’’ करने लगा। ऊंट ने उसे रोका, कि ऐसा मत करो, खेत का मालिक जाग जायेगा और हमें मारेगा। गीदड़ ने कहा कि खाना खाने के बाद अगर वह ‘‘हुआं-हुआ’’ न करे तो खाना नहीं पचता। और वह और ज़ोर से ‘‘हुंआ-हुंआ’’ करने लगा। खेत का मालिक जाग गया और डंडा लेकर दौड़ा। गीदड़ तो गन्नों में छुप गया और ऊंट को खूब मार पड़ी।

तब वे फिर नदी पार कर लौटने लगे और गीदड़ ऊंट की पीठ पर बैठ गया। गहरी नदी के बीच में पहुंचकर ऊंट डुबकियां लेने लगा। गीदड़ चिल्लाया अरे ऊंट भाई, यह क्या कर रहे हो, मैं डूब जाउंगा। ऊंट ने कहा कि खाना खाने के बाद जब तक मैं पानी में डुबकी नहीं लगा लेता मेरा भोजन नहीं पचता। ऊंट ने एक गहरी डुबकी लगाई और गीदड़ डूब गया।

अब अध्यापक ने बच्चों से पूछा ‘‘ बच्चो, इस कहानी से क्या शिक्षा मिलती है?’’

एक बच्चे ने उठकर कहा ‘‘ इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि खाना खाने के बाद ‘‘हुंआ-हुंआ नहीं करना चाहिए।’’

  

 

हम सब कैसे एक हैं

उलझता है बालपन

पूछता है कुछ प्रश्न

 लिखा है पुस्तकों में

और पढ़ते हैं हम,

हम सब एक हैं,

हम सब एक हैं।

साथ-साथ रहते

साथ-साथ पढ़ते

एक से कपड़े पहन,

खाते-पीते , खेलते।

फिर आज

यह क्या हो गया

इसे हिन्दू बना दिया गया

मुझे मुसलमान

और इसे इसाई।

और कुछ मित्र बने हैं

सिख, जैनी, बौद्ध।

फिर कह रहे हैं

हम सब एक हैं।

बच्चे हैं हम।

समझ नहीं पा रहे हैं

 

कल तक भी तो

हम सब एक-से थे।

 

फिर आज

यूं

अलग-अलग बनाकर

क्यों कह रहे हैं

हम सब एक हैं,

हम सब एक हैं।

 

 

चिड़िया से पूछा मैंने

चिड़िया रानी क्या-क्या खाती

राशन-पानी कहाँ से लाती

मुझको तो कुछ न बतलाती

थाली-कटोरी कहाँ से पाती

चोंच में तिनका लेकर घूमे

कहाँ बनाया इसने घर

इसके घर में कितने मैंम्बर

इधर-उधर फुदकती रहती

डाली-डाली घूम रही

फूल-फूल को छू रही

मैं इसके पीछे भागूं

कभी नीचे आती

कभी ऊपर जाती

मेरे हाथ कभी न आती।

मेरी समझ कुछ नहीं आता

मां,

मास्टर जी कहते हैं

धरती गोल घूमती।

चंदा-तारे सब घूमते

सूरज कैसे आता-जाता

बहुत कुछ बतलाते।

मेरी समझ नहीं कुछ आता

फिर हम क्यों नहीं गिरते।

पेड़-पौधे खड़े-खड़े

हम पर क्यों नहीं गिरते।

चंदा लटका आसमान में

कभी दिखता

कभी खो जाता।

कैसे कहां चला जाता है

पता नहीं क्या-क्या समझाते।

इतने सारे तारे

घूम-घूमकर

मेरे बस्ते में क्यों नहीं आ जाते।

कभी सूरज दिखता

कभी चंदा

कभी दोनों कहीं खो जाते।

मेरी समझ कुछ नहीं आता

मास्टर जी

न जाने क्या-क्या बतलाते।

 

छाता लेकर निकले हम

छाता लेकर निकले हम

देखें बारिश में

कितना है दम।

भीगने से

न जाने क्यों

लोगों का निकलता है दम।

छाता कर देंगे बंद

जमकर भीगेंगे हम।

जब लग जायेगी ठण्डी

तब लौटेंगे घर को हम

मोटी मोटी डांट पड़ेगी

फिर हलवा-पूरी,

 चाट पकौड़ी जी भर

खायेंगे हम।

 

खेल-कूद क्या होती है

बचपन की

यादों के झरोखे खुल गये,

कितने ही खेल खेलने में

मन ही मन जुट गये।

चलो, आपको सब याद दिलाते हैं।

खेल-कूद क्या होती है,

तुम क्या समझोगे फेसबुक बाबू।

वो चार कंचे जीतना,

बड़ा कंचा हथियाना,

स्टापू में दूसरे के काटे लगाना,

कोक-लाछी-पाकी में पीठ पर धौंस जमाना।

वो गुल्ली-डंडे में गुल्ली उड़ाना,

तेरी-मेरी उंच-नीच पर रोटियां पकाना,

लुका-छिपी में आंख खोलना।

आंख पर पट्टी बांधकर पकड़म-पकड़ाई ,

लंगड़ी टांग का आनन्द लेना।

कक्षा की पिछली सीट पर बैठकर

गिट्टियां बजाना, लट्टू घुमाना ।

कापी के आखिरी पन्ने पर

काटा-ज़ीरों बनाना,

पिट्ठू में पत्थर जमाना ।

पुरानी कापियों के पन्नों के

किश्तियां बनाना और हवाई-ज़हाज उड़ाना।

सांप-सीढ़ी के खेल में 99 से एक पर आना,

और कभी सात से 99 पर जाना।

पोशम-पा भई पोशम-पा में चोर पकड़ना।

व्यापार में ढेर-से रूपये जीतना।

विष-अमृत और रस्सी-टप्पा।

है तो और भी बहुत-कुछ।

किन्तु

खेल-कूद क्या होती है

तुम क्या समझोगे फेसबुक बाबू।

 

नहीं बोलती नहीं बोलती

नहीं बोलती नहीं बोलती ,

जा जा अब मैं नहीं बोलती,

जब देखो सब मुझको गुस्‍सा करते।

दादी कहती छोरी है री,

कम बोला कर कम बोला कर।

मां कहती है पढ़ ले पढ़ ले।

भाई बोला छोटा हूं तो क्‍या,

तू लड़की है मैं लड़का।

मैं तेरा रक्षक।

क्‍या करना है मुझसे पूछ।

क्‍या कहना है मुझसे पूछ।

न कर बकबक न कर झकझक।

पापा कहते दुनिया बुरी,

सम्‍हलकर रहना ,

सोच-समझकर कहना,

रखना ज़बान छोटी ।

 

दिन भर चिडि़या सी चींचीं करती।

कोयल कू कू कू कू करती।

कौआ कां कां कां कां करता।

टामी भौं भौं भौं भौं  करता।

उनको कोई कुछ नहीं कहता।

मुझको ही सब डांट पिलाते।

मैं पेड़ पर चढ़ जाउंगी।

चिडि़या संग रोटी खाउंगी।

वहीं कहीं सो जाउंगी।

फिर मुझसे मिलने आना,

गीत मधुर सुनाउंगी।

 

 

गीत मधुर हम गायेंगे

गीत मधुर हम गायेंगे 

गई थी मैं दाना लाने

क्यों बैठी है मुख को ताने।

दो चींटी, दो पतंगे,

तितली तीन लाई हूं।

अच्छे से खाकर

फिर तुझको उड़ना

सिखलाउंगी।

पानी पीकर

फिर सो जाना,

इधर-उधर नहीं है जाना।

आंधी-बारिश आती है,

सब उजाड़ ले जाती है।

नीड़ से बाहर नहीं है आना।

मैं अम्मां के घर लेकर जाउंगी।

देती है वो चावल-रोटी

कभी-कभी देर तक सोती।

कई दिन से देखा न उसको,

द्वार उसका खटखटाउंगी,

हाल-चाल पूछकर उसका

जल्दी ही लौटकर आउंगी।

फिर मिलकर खिचड़ी खायेंगे,

गीत मधुर हम गायेंगे।

    

 

 

दादाजी से  गुड़िया बोली

दादाजी से  गुड़िया बोली,

स्कूल चलो न, स्कूल चलो न।

दादाजी को गुड़िया बोली

मेरे संग पढ़ो न, मेरे संग पढ़ो न।

मां हंस हंस होती लोट-पोट,

भैया देखे मुझको।

दादाजी बोले,

स्कूल चलूंगा, स्कूल चलूंगा।

मुझको एक ड्र्ैस सिलवा दे न।

सुन्दर सा बस्ता,

काॅपी-पैन ला दे न।

अपनी क्लास में

मेरा नाम लिखवा दे न।

तू मुझको ए बी सी सिखलाना,

मैं तुझको अ आ इ ई सिखलाउंगा।

मेरी काम करेगी तू,

मैं तुझको टाॅफ़ी दिलवाउंगा।

मेरी रोटी भी बंधवा लेना

नहीं तो मैं तेरी खा जाउंगा।

गुड़िया बोली,

न न न न, दादाजी,

मैं अपनी रोटी न दूंगी,

आप अभी बहुत छोटे हैं,

थोड़े बड़े हो जाओ न।

अभी तो तुम

मेरे घोड़े ही बन जाओ न।

बूंदे गिरतीं

बादल आये, वर्षा लाये।

बूंदे गिरतीं,

टप-टप-टप-टप।

बच्चे भागे ,

छप-छप-छप-छप।

मेंढक कूदे ,

ढप-ढप-ढप-ढप।

बकरी भागीकुत्ता भागा।

गाय बोली मुझे बचाओ

भीग गई मैं

छाता लाओ, छाता लाओ।

जामुन लटके पेड़ पर

जामुन लटके पेड़ पर

ऊंचे-ऊंचे रहते।

और हम देखो

आस लगाये

नीचे बैठै रहते।

आंधी आये, हवा चले

तो हम भी कुछ खायें।

एक डाली मिल गई नीची

हमने झूले झूले।

जामुन बरसे

हमने भर-भर लूटे।

माली आता देखकर

हम सब सरपट भागे।

चोरी-चोरी घर से
कोई लाया नमक

तो कोई लाया मिर्ची।

जिसको जितने मिल गये

छीन-छीनकर खाये।

साफ़ किया मुंह अच्छे-से

और भोले-भाले बनकर

घर आये।

मां ने “रंगे हाथ”

पकड़ी हमारी चोरी।

मां के हाथ आया डंडा

हम आगे-आगे

मां पीछे-पीछे भागे।

थक-हार कर बैठ गई मां।

 

छोटा हूं पर समझ बड़ी है

छोटा हूं पर समझ बड़ी है।

मुझको छोटा न जानो।

बड़के भैया, छुटके भैया,

बहना मेरी और बाबा

सब अच्छे-अच्छे कपड़े पहनें।

सज-धजकर रोज़ जाते,

मैं और अम्मां घर रह जाते।

जब मैं कहता अम्मां से

मुझको भी अच्छे कपड़े दिलवा दे,

मुझको भी बाहर जाना है।

तब-तब मां से पड़ती डांट

तू अभी छोटा छौना है।

यह छौना क्या होता है,

न बतलाती मां।

न नहलाती, न कपड़े पहनाती,

बस कहती, ठहर-ठहर।

भैया जाते बड़की साईकिल पर

बहना जाती छोटी साईकिल पर।

बाबा के पास कार बड़ी।

मैं भी मांगू ,

मां मुझको घोड़ा ला दे रे।

मां के पीछे-पीछे घूम रहा,

चुनरी पकड़कर झूम रहा।

मां मुझको कपड़े पहना दे,

मां मुझको घोड़ा ला दे।

मां ने मुझको गैया पर बिठलाया।

यह तेरा घोड़ा है, बतलाया।

मां बड़ी सीधी है,

न जाने गैया और घोड़ा क्या होता है।

पर मैंने मां को न समझाया,

न मैंने सच बतलाया,

कि मां यह तो गैया है, मैया है।

संध्या बाबा आयेंगे।

उनको बतलाउंगा,

मां गैया को घोड़ा कहती है,

मां को इतना भी नहीं पता।

 

 

 

मैं और मेरी बिल्लो रानी

छुप्पा छुप्पी खेल रहे थे

कहां गये सब साथी

हम यहां बैठे रह गये

किसने मारी भांजी

शाम ढली सब घर भागे

तू मत डर बिल्लो रानी

मेरे पीछे आजा

मैं हूं आगे आगे

दूध मलाई रोटी दूंगी

मां मंदिर तो जा ले।

 

चंगू ने मंगू से पूछा

चंगू ने मंगू से पूछा

ये क्या लेकर आई हो।

मंगू बोली,

इंसानों की दुनिया में रहते हैं।

उनका दाना-पानी खाते हैं।

उनका-सा व्यवहार बना।

हरदम

बुरा-बुरा कहना भी ठीक नहीं है।

अब

दूर-दूर तक वृक्ष नहीं हैं,

कहां बनायें बसेरा।

देखो गर्मी-सर्दी,धूप-पानी से

ये हमें बचायेगा।

पलट कर रख देंगे,

तो बच्चे खेलेंगे

घोंसला यहीं बनायेंगे।

-

चंगू-मंगू दोनों खुश हैं।

 

तब विचार अच्छे बनते हैं

बीमारी एक बड़ी है आई

साफ़ सफ़ाई रखना भाई

कूड़ा-करकट न फै़लाना

सुंदर-सुंदर पौधे लाना

बगिया अपनी खूब खिलाना

 

हाथों को साफ़ है रखना

बार-बार है धोना

मुंह, नाक, आंख न छूना

घर में रहना सुन लो ताई

 

मुंह को रखना ढककर तुम

हाथों की दूरी है रखनी

दूर से सबसे बात है करनी

 

प्लास्टिक का उपयोग न करना

घर में बैठकर रोज़ है पढ़ना

 

जब साफ़-सफ़ाई रखते हैं

तब विचार अच्छे बनते हैं

स्वच्छ अभियान  बढ़ायेंगें

देश का नाम चमकाएंगें।

 

छोड़ी हमने मोह-माया

नहीं करने हमें

किसी के सपने साकार।

न देखें हमारी आयु छोटी

न समझे कोई हमारे भाव।

मां कहती

पढ़ ले, पढ़ ले।

काम  कर ले ।

पिता कहते

बढ़ ले बढ़ ले।

सब लगाये बैठे

बड़ी-बड़ी आस।

ले लिया हमने

इस दुनिया से सन्यास।

छोड़ी हमने मोह-माया

हो गई हमारी कृश-काया।

हिमालय पर हम जायेंगे।

वहीं पर धूनी रमायेंगे।

आश्रम वहीं बनायेंगे।

आसन वहीं जमायेंगे।

चेले-चपाटे बनायेंगे।

सेवा खूब करायेंगे।

खीर-पूरी खाएंगें।

लौटकर घर न आयेंगे।

नाम हमारा अमर होगा,

धाम हमारा अमर होगा,

ज्ञान हमारा अमर होगा।

कहां गये वे दिन  बारिश के

 

कहां गये वे दिन जब बारिश की बातें होती थीं, रिमझिम फुहारों की बातें होती थीं,

मां की डांट खाकर भी, छिप-छिपकर बारिश में भीगने-खेलने  की बातें होती थीं

अब तो बारिश के नाम से ही  बाढ़, आपदा, भूस्खलन की बातों से मन डरता है,

कहां गये वे दिन जब बारिश में चाट-पकौड़ी खाकर, आनन्द मनाने की बातें होती थीं।

याद है आपको डंडे खाया करते थे

याद है आपको, भूगोल की कक्षा में ग्लोब घुमाया करते थे

शहरों की गलत पहचान करने पर कितने डंडे खाया करते थे

नदी, रेल, सड़क, सूखा, हरियाली के चिह्न याद नहीं होते थे

मास्टर जी के जाते ही ग्लोब को गेंद बनाकर नचाया करते थे

हाय-हैल्लो मत कहना

यूं क्यों ताड़ रहा है

टुकुर-टुकुर तू मुझको

मम्मी ने मेरी बोला था

किसी लफड़े में मत आ जाना

रूप बदलकर आये कोई

कहे मैं कान्हा हूं

उसको यूं ही

हाय-हैल्लो मत कहना

देख-देख मैं कितनी सुन्दर

कितने अच्छे  मेरे कपड़े

हाअअ!!

तेरी मां ने तुझको कैसे भेजा

हाअअ !!

हाय-हाय, मैं शर्म से मरी जा रही

तेरी कुर्ती क्या मां ने धो दी थी

जो तू यूं ही चला आया

हाअअ!!

जा-जा घर जा

अपनी कुर्ती पहनकर आ

फिर करना मुझसे बात।

बालपन को जी लें

अपनी छाया को पुकारा, चल आ जा बालपन को फिर से जी लें

यादों का झुरमुट खोला, चल कंचे, गोली खेलें, पापड़, इमली पी लें

कैसे कैसे दिन थे वे सड़कों पर छुपन छुपाई, गुल्ली डंडा खेला करते

वो निर्बोध प्यार की हंसी ठिठोली, चल उन लम्हों को फिर से जी लें

आत्मनिर्भर हूं

देशभक्ति बस राजगद्दी पर बैठे लोगों की बपौती नहीं है

तिरंगा बेचती हूं,आत्मनिर्भर हूं,कोई फिरौती नहीं है

भिक्षा नहीं,दान नहीं,दया नहीं,आत्मग्लानि भी नहीं

पीड़ा नहीं कि शिक्षित नहीं हैं,मुस्कानों में कटौती नहीं है

गुम हो जाये चाबी स्कूल की

 हाथ जोड़कर तुम क्या मांग रहे मुझको कुछ भी नहीं पता

बैठा था गर्मी की छुट्टी की आस में, क्या की थी मैंने खता

मैं तो बस मांगूं एक टी.वी.,एक पी.सी,एक आई फोन 6

और मांगू, गुम हो जाये चाबी स्कूल की, और मेरा बस्ता