ज़िन्दगी कहीं सस्ती तो नहीं

बहुत कही जाती है एक बात

कि जब

रिश्तों में गांठें पड़ती हैं,

नहीं आसान होता

उन्हें खोलना, सुलझाना।

कुछ न कुछ निशान तो

छोड़ ही जाती हैं।

 

लेकिन सच कहूं

मुझे अक्सर लगता है,

जीवन में

कुछ बातों में

गांठ बांधना भी

ज़रूरी होता है।

 

टूटी डोर को भी

हम यूं ही नहीं जाने देते

गांठे मार-मारकर

सम्हालते हैं,

जब तक सम्हल सके।

 

ज़िन्दगी कहीं

उससे सस्ती तो नहीं,

फिर क्यों नहीं कोशिश करते,

यहां भी कभी-कभार,

या बार-बार।