ज़िन्दगी आंसुओं के सैलाब में नहीं बीतती

नयनों पर परदे पड़े हैं

आंसुओं पर ताले लगे हैं

मुंह पर मुखौट बंधे हैं।

बोलना मना है,

आंख खोलना मना है,

देखना और बताना मना है।

इसलिए मस्तिष्क में बीज बोकर रख।

दिल में आस जगाकर रख।

आंसुओं को आग में तपाकर रख।

औरों के मुखौटे उतार,

अपनी धार साधकर रख।

ज़िन्दगी आंख मूंदकर,

जिह्वा दबाकर,

आंसुओं के सैलाब में नहीं बीतती,

बस इतना याद रख।