अवसर है अकेलापन अपनी तलाश का

एक सपने में जीती हूं,

अंधेरे में रोशनी ढूंढती हूं।

बहारों की आस में,

कुछ पुष्प लिए हाथ में,

दिन-रात को भूलती हूं।

काल-चक्र घूमता है,

मुझसे कुछ पूछता है,

मैं कहां समझ पाती हूं।

कुछ पाने की आस में

बढ़ती जाती हूं।

गगन-धरा पुकारते हैं,

कहते हैं

चलते जाना, चलते जाना

जीवन-गति कभी ठहर न पाये,

चंदा-सूरज से सीख लेना

तारों-सा टिमटिमाना,

अवसर है अकेलापन

अपनी तलाश का ,

अपने को पहचानने का,

अपने-आप में

अपने लिए जीने का।