कहां गये वे दिन  बारिश के

 

कहां गये वे दिन जब बारिश की बातें होती थीं, रिमझिम फुहारों की बातें होती थीं,

मां की डांट खाकर भी, छिप-छिपकर बारिश में भीगने-खेलने  की बातें होती थीं

अब तो बारिश के नाम से ही  बाढ़, आपदा, भूस्खलन की बातों से मन डरता है,

कहां गये वे दिन जब बारिश में चाट-पकौड़ी खाकर, आनन्द मनाने की बातें होती थीं।