विरासत
बस
समझ-समझ का फ़ेर है
किसी ने
लाखों तारों में
चाँद को भी तन्हा देखा
और किसी ने
डूबते वक्त
सूरज को भी तन्हा देखा।
मुझे लगता है
जब सूरज जाता है अस्ताचल में
तो अपनी विरासत,
रंगीनियाँ
छोड़ जाता है चाँद के लिए।
नीलाभ गगन में
चाँद
तारों को सौंप देता है
वह विरासत
प्रातः के लिए।
और भोर में
लौट आता है सूरज,
चाँद से मिलता है
मुदित मन से
रंगीनियाँ समेटता-बिखेरता।
यही ज़िन्दगी है।