मुस्कुराते हुए फूल

किसी ने कहा

कुछ कहते हैं मुस्कुराते हुए फूल।

न,न, बहुत कुछ कहते हैं

मुस्कुराते हुए फूल।

अब क्या बताएॅं आपको

दिल छीन कर ले जाते हैं

मुस्कुराते हुए फूल।

हम तो उपवन में

यूॅं ही घूम रहे थे

हमें रोककर बहुत कुछ बोले

मुस्कुराते हुए फूल।

ज़िन्दगी का पूरा दर्शन

समझा जाते हैं

ये मुस्कुराते हुए फूल।

कहते हैं

कांटों से नहीं तुम्हारा पाला पड़ा कभी

डालियों पर ही नहीं

ज़िन्दगी की गलियों में भी

कांटें छुपे रहते हैं फूलों के बीच।

यूॅं तो कहते हैं

हॅंस-बोलकर जिया करो

फूल-फूल की महक पिया करो,

किन्तु अवसर मिलते ही

चुभा जाते हैं कांटे कितने ही फूल।

चेतावनी भी दे जाते हैं

मुस्कुराते हुए फूल।

झरते हुए फूलों की पत्तियाॅं

मुस्कुरा-मुस्कुरा कर

कहती  हैं,

देख लिया हमें

धरा पर मिट रहे हैं,

ध्यान रखना, बहुत धोखा देते हैं

मुस्कुराते हुए फूल।

 

कैसे जायें नदिया पार

ठहरी-ठहरी-सी, रुकी-रुकी-सी जल की लहरें

कश्ती को थामे बैठीं, मानों उसे रोक रही लहरें

बिन मांझी कहाॅं जायेगी, कैसे जायें नदिया पार

तरल-तरल भावों से, मानों कह रही हैं ये लहरें

अपनी राहें चुनने की बात

बादलों में घर बनाने की सोचती हूं

हवाओं में उड़ने की बात सोचती हूं

आशाओं का सामान लिए चलती हूं

अपनी राहें चुनने की बात सोचती हूं

सिल्ली बर्फ़ सी

मन में भावों की सिल्ली बर्फ़ सी

तुम्हारे नेह से पिघल रही तरल-सी

चलो आज मिल बैठें दो बात करें

नयनों से झरे आंसू रिश्तों की छुअन-सी

शब्द लड़खड़ा रहे

रात भीगी-भीगी

पत्तों पर बूंदें

सिहरी-सिहरी

चांद-तारे सुप्त-से

बादलों में रोशनी घिरी

खिड़कियों पर कोहरा

मन पर शीत का पहरा

 शब्द लड़खड़ा रहे

बातें मन में दबीं।

 

वक्त के मरहम

कहने भर की ही बात है

कि वक्त के मरहम से

हर  जख़्म भर जाया करता है।

 

ज़िन्दगी की हर चोट की

अपनी-अपनी पीड़ा होती है

जो केवल वही समझ पाता है

जिसने चोट खाई हो।

किन्तु, चोट

जितनी गहरी हो

वक्त भी

उतना ही बेरहम हो जाता है।

और हम इंसानों की फ़ितरत !

 

कुरेद-कुरेद कर

जख़्मों को ताज़ा बनाये रखते हैं।

 

पीड़ा का अपना ही

आनन्द होता है।

 

तुम्हारा मोहक रूप

तुम्हारा मोहक रूप मन को आनन्दित करता है

तुम्हारी नयनों की आभा से मन पुलकित होता है

कोमल-कांत छवि तुम्हारी, शक्ति रूपा हो तुम

तुम्हारा सुन्दर बाल-रूप मन को हर्षित करता है।

मोबाईल की माया

आॅंख मूॅंदकर सब ज्ञान मिले, और क्या चाहिए भला

बिन पढ़े-लिखे सब हाल मिले और क्या चाहिए भला

दुनिया पूरी घूम रहे, इसका, उसका, सबका पता रहे

न टिकट लगे, न आरक्षण चाहिए, और क्या चाहिए भला

अपनी हिम्मत  अपनी राहें

बाधाओं को तोड़कर राहें बनाने का मज़ा ही कुछ और है

धरा और पाषाण को भेदकर जीने का मज़ा ही कुछ और है

सिखा जाता है यह अंकुरण, सुविधाओं में तो सभी पनप लेते हैं

अपनी हिम्मत से अपनी राहें बनाने का मज़ा ही कुछ और है।

डर-डरकर ज़िन्दगी नहीं चलती

डर-डरकर ज़िन्दगी नहीं चलती यह जान ले सखी

उठ हाथ थाम, आगे बढ़, साथ छोड़ेंगे रे सखी

घन छा रहे, रात घिर आई, नदी-नीर बैठ अब

नया सोच, चल ज़िन्दगी की राहों को बदलें रे सखी

उंची उड़ान
आज चांद का अर्थ बदल गया

आज चांद रोटी से घर बन गया

उंची उड़ान लेकर चले हैं हम

आज चांद से सर गर्व से तन गया।

सड़कों पर सागर बना

 सड़कों पर सागर बना, देख रहे हम हक्के-बक्के

बूंद-बूंद को मन तरसे, घर में पानी भर-भर के

कितने घर डूब गये, राहों पर खड़े देख रहे

कैसे बढ़े ज़िन्दगी, सोच-सोचकर नयन तरस रहे।

चढ़नी पड़ती हैं सीढ़ियाॅं

कदम-दर-कदम ही चढ़नी पड़ती हैं सीढ़ियाॅं

नीचे से उपर, उपर से नीचे ले आती हैं सीढ़ियाॅं

बस धरा की फ़िसलन का ज़रा ध्यान रखिए सदा

नहीं तो उपर से सीधे नीचे ले आती हैं सीढ़ियाॅं

बरसती बूॅंदें

बरसती बूंदों को रोककर जीवन को तरल करती हूं

बादलों से बरसती नेह-धार को मन से परखती हूं

कौन जाने कब बदलती हैं धाराएं और गति इनकी

अंजुरी में बांधकर मन को सरस-सरस करती हूं।

 

शोर बहुत होगा

बात ये जाने कितनों को चुभती जायेगी

हमारी हॅंसी जब दूर तक सुनाई दे जायेगी

शोर बहुत होगा, पूछताछ होगी, जांच होगी

खुशियाॅं हमारे जीवन में कैसे समा जायेंगी

जीवन-भर का सार

सुना करते हैं  रेखाओं में भाग्य लिखा रहता है

आड़ी-तिरछी रेखाओं में हाल लिखा रहता है

चेहरे पर चेहरे लगाकर बैठे हैं देखो तो ज़रा

इन रेखाओं में जीवन-भर का सार लिखा रहता है

कुशल रहें सब, स्वस्थ रहें

कुशल रहें सब, स्वस्थ रहें सब, यही कामना करते हैं

आनी-जानी तो लगी रहेगी, हम यूं ही डरते रहते हैं

कौन है अपना, कौन पराया, कहां जान पाते हैं हम

जो सुख-दुख के हों  साथी, वे ही अपने लगने लगते हैं

रंगों में जीवन को आशा

मुक्त गगन में चिड़िया को उड़ते देखा

भोर के सूरज की सुरमई आभा को देखा

मन-मयूर कहता है चल उड़ चलें कहीं

रंगों में जीवन को आशाओं में पलते देखा

हम-तुम तो हैं मूरख जी

युग है चपर कनाती का

ज़ोर चले है लाठी का

हम-तुम तो हैं मूरख जी

घोड़ा चलता काठी का

कड़वे बोल

मीठा खाकर बोले कड़वे बोल

झूठे की कभी न खोले पोल

इधर-उधर की लगाकर बैठे

ऐसी रसना का है क्या मोल

चिड़ियाॅं रानी

गुपचुप बैठी चिड़ियाॅं रानी

चल कर लें दो बातें प्यारी

कुछ तुम बोलो, कुछ मैं बोलूं

मन की बातें कर लें सारी

मौसम के रॅंग

सहमी-सहमी धूप है, खिड़कियों से झांक रही

कुहासे को भेदकर देखो घर के भीतर आ रही

पग-पग चढ़ती, पग-पग रुकती, कहाँ चली ये

पकड़ो-पकड़ो भाग न जाये, मेरे हाथ न आ रही।

दुख-सुख तो आने-जाने हैं
मिल जाये जब मज़बूत सहारा राहें सरल हो जाती हैं

कौन है अपना, कौन पराया, ज़रा पहचान हो जाती है

दुख-सुख तो आने-जाने हैं, किसने देखा, किसने समझा

जब हाथ थाम ले कोई, राहें समतल,सरल हो जाती हैं।

तू कोमल नार मैं तेरा प्यार
हाथ जोड़ता हूँ तेरे, तेरी चप्पल टूट गई, ला मैं जुड़वा लाता हूँ

न जा पैदल प्यारी, साईकल लाया मैं, इस पर लेकर जाता हूँ

लोग न जाने क्या-क्या समझेंगे, तू कोमल नार मैं तेरा प्यार

आजा-आजा, आज तुझे मैं लाल-किला दिखलाने ले जाता हूँ

माँ की ममता
जीवन के सुखमय पल बस माँ के संग ही होते हैं

नयनों से बरसे नेह, संतति के सुखद पल होते हैं

हिलमिल-हिलमिल बस जीवन बीता जाता यूँ ही

किसने जाना, माँ की ममता में अनमोल रत्न होते हैं।

वन्दन करें अभिनन्दन करें

देश की आन, शान, बान के लिए शहीद हुए, मोल न लगाईये

उनकी दिखाई राह पर चल सकें, बस इतनी सोच ही बढ़ाईये

भारत की सुन्दर धरा को निखार सकें, इतना विचार कीजिए

वन्दन करें, अभिनन्दन करें, उनकी शान में शीश ही झुकाईये

 

आंख की कमान तान

आंख की कमान तान

मेरी ले यह बात मान

रखना नज़र टेढ़ी सदा

साथ रखना खुले कान

दो पंछी

गुपचुप, छुपछुपकर बैठे दो पंछी

नेह-नीर में भीग रहे दो पंछी

घन बरसे, मन हरषे, देख रहे

साथ-साथ बैठे खुश हैं दो पंछी

बस यूं ही
बेमौसम मन में बिजली कड़के

जब देखो दाईं आंख है फ़ड़के

मन यूं ही बस डरने लगता है

आंखों से तब गंगा-यमुना बरसे

वेदनाओं की गांठें खोल

बांध ज़िन्दगी में पीड़ा की गठरियों को

कुछ हंस-बोल ले, खोल दे गठरियों को

वेदनाओं की गांठें खोल, कहीं दूर फेंक

तोड़ फेंक झूठे रिश्तों की गठरियों को