कबीर जयन्ती के अवसर पर

क्यों होते हैं ऐसे लोग

अपना सारा जीवन

विरोध करते हैं

झूठी परम्पराओं का,

अंधविश्वासों का ।

खण्डन-मण्डन करते हैं

मूर्ति-पूजा, धर्मान्धता का।

जाति-पाति, धर्म-कर्म की

सच्चाई बताने के लिए

अर्पित कर देते हैं अपना जीवन।

हिन्दू-मुस्लिम की नहीं

केवल इंसान की बात करते हैं।

समाज में

ऊँच-नीच का भेद मिटाने के लिए

जी-जान से लड़ते हैं।

अपनी सशक्त वाणी से

वे केवल सत्य की बात करते हैं।

निडर होकर बोलते हैं।

झूठ, पाखण्ड को भगाने के लिए

किसी भी सीमा तक सहते हैं।

क्यों होते हैं हर काल में

ऐसे कुछ लोग।

 

क्यों होते हैं कुछ ऐसे लोग।

 

शायद

समाज को चाहिए ऐसे लोग।

 

किन्तु उनके जाने के बाद

हम उनके नाम से पंथ बना लेते हैं।

उनके मन्दिरों में

उनकी मूर्तियां स्थापित करते हैं।

पूजा-अर्चना करते हैं।

उनके नाम पर छुट्टियां मांगते हैं।

नगर-कीर्तन निकालते हैं।

अपने-आपको

किसी एक पंथ का घोषित कर

एक नई जाति की बात करते हैं।

सुविधाओं की मांग करते हैं।

पिछड़ेपन और निर्धनता के नाम पर

सुविधाओं की मांग करते हैं।

 

क्यों होते हैं ऐसे लोग।

 

पता नहीं समाज को चाहिए कैसे लोग।