जब तक है मेरे जीवन की कश्ती
न जल है, न थल है
बस भावनाओं का ज्वार है
जिसमें बहती रहती है
जीवन की कश्ती।
न खेवट की जानकारी
न पतवार का सहारा
बस हवाओं के सहारे ही
घूमती रहती है जीवन की कश्ती।
कोई कहता है
ऊपरवाले के हाथ में है पतवार
तो कोई भाग्य की बात करता है
मैं नहीं जानती।
बस इतना जानती हूँ
जब डूबेगी
तो मैं बचा नहीं पाऊंगी
भंवर में फ़ंसेगी तो सम्हाल नहीं पाऊंगी ।
लेकिन
जब तक है, तब तक
लहरों में झूलती
मदमस्त हवाओं में लहराती
नित नई कहानियाँ बनातीं
दुख-सुख, धूप-छाँव में गहराती
आनन्द ले रही हूँ मैं
जब तक है मेरे जीवन की कश्ती ।