आग

हर आग में चिंगारियाँ नहीं होतीं।

हर आग में लपटें भी नहीं होतीं।

रंग-बिरंगी

सतरंगी-सी दिखती है कोई आग।

चुपचाप

राख में दबी होती है कोई आग।

नाराज़ होकर

कभी-कभी

भड़क भी उठती है कोई आग।

कहते हैं

बड़ी पवित्र होती है कोई-कोई आग।

जन्म से मरण तक

हमें अपने चारों ओर घुमाती है  आग।

चाहकर भी बच नहीं पाते हम,

बाहर-भीतर धधकती है आग।

आग में ही ज़िन्दगियाँ पलती हैं

और आग में ही ज़िन्दगियाँ बुझती हैं।