पराये-पराये-से लगते हो तुम
कैसे उठते हो
बैठते हो
बोलते हो तुम,
हर दिन
पराये-पराये-से
लगते हो तुम।
कभी समय था
जब तुम्हारा हर बोल
मन को छू जाता था
तुम्हारी याद में
तन-मन
सिहर-सिहर जाता था।
कहाँ चली गई
वह मिठास
वह बातें, वह यादें
कैसे इतना
बदल सकते हो तुम।
चेहरा भी
अजनबी-सा लगता है
आवाज़
जैसे कहीं दूर से आती हुई
कानों से टकराकर
लौट जाती है
कैसे इतना बदल सकते हो तुम।
हर दिन
पराये-पराये-से लगते हो तुम।