भारत

मुझे गहन आश्चर्य हुआ कि मैंने जब भी किसी को “भारत” पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए कहा तो जो विचार मुझे मिले उनका सारांश यह था कि भारत एक अत्यन्त प्राचीन, सभ्यता-संस्कृति-सम्पन्न, वेद, पुराण, गीता, रामायण, कृष्ण, राम, बुद्ध, महावीर, नानक आदि की धरती है यह। कुछ ऐसे ही कथन और वक्तव्य का समापन। कुछ लोगों ने इससे आगे बढ़कर आज़ादी और शहीदों की बात की। आज़ादी के वीरों के नाम और उनको नमन।

और जो वर्तमान में थे, उन्होंने भ्रष्टाचार, महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों, रिश्वतखोरी, बिखरते पारिवारिक सम्बन्धों, वर्तमान में भटकी हुई, स्वार्थान्धता में जीती युवा पीढ़ी, आधुनिक नार, आदि के बारे में ही बात की।

मैं चकित !

क्या हमारा भारत बस यहीं तक सीमित है ? जब हम भारत के बारे में बात करते हैं तो इससे आगे कहने के लिए क्या हमारे पास कुछ भी नहीं है? आश्चर्य होता है।

यह हमारे लिए गर्व की बात है कि हम एक संस्कृति-सम्पन्न प्राचीन राष्ट्र के नागरिक हैं। वे, जो हमें आज़ादी के भारत में जीवन दे गये, नमन्य हैं।

किन्तु क्या भारत इतना ही है?

आज हम एक स्वतन्त्र, आत्मनिर्भर, सुशिक्षित, साधन सम्पन्न, विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र, गणतन्त्र, विकसित भारत के नागरिक हैं। भारत एक विकासशील नहीं विकसित देश है। भारतीय नागरिक के पास सर्वाधिक मौलिक अधिकार हैं। सूचना का अधिकार है। यह विश्व का एकमात्र देश है जहां धार्मिक, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, स्वतन्त्रता है, धर्म, जाति, क्षेत्र से इतर। जल, थल और नभ तीनों क्षेत्रों पर हमारी सेनाओं का अधिकार है। भारत ऐसा पहला देश है जिसने अपनी संचार प्रणाली के लिए स्वदेशी सैटेलाईट का निर्माण किया।

चांद तक की यात्रा भारत ने तय कर ली है। स्वविकसित परमाणु उर्जा से सम्पन्न राष्ट्र होने का गौरव हमें प्राप्त है। विश्व की सवार्धिक 325 भाषाएं तथा 1650 बोलियां भारत में बोली जाती हैं। जिसमें से 29 भाषाएं संविधान में स्वीकृत हैं।

विश्व की चैथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था भारत की है। भारत में जीवन की औसत आयु 32 वर्ष से बढ़कर 65 वर्ष हो गई है। भारतीय नागरिक को आधुनिक सुख सुविधाओं से सम्पन्न जीवन मिला है।

1951 में शिक्षा की दर मात्र 18.23 प्रतिशत थी जो वर्तमान में 77.8 प्रतिशत से भी अधिक हो चुकी है। देश में लगभग 1000 विश्वविद्यालय तथा 45,000 महाविद्यालय हैं। इनके अतिरिक्त लगभग 1500 अन्य क्षेत्रों के उच्च शिक्षा संस्थान हैं। विदेशों से लाखों विद्यार्थी भारत में शिक्षा ग्रहण करने के आते हैं। चिकित्सा की आयुर्वेद पद्धति एवं योग के लिए पूरा विश्व भारत के समक्ष नतमस्तक है।

विश्व के सबसे अधिक समाचार पत्र भारत में प्रकाशित होते हैं।

विश्व में सबसे अधिक दोपहिया वाहनों का निर्माण भारत में होता है। दुग्ध एवं मक्खन का सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चीनी उत्पादन के क्षेत्र में दूसरे नम्बर पर तथा कपास के क्षेत्र में तीसरा बड़ा उत्पादक देश है। विश्व का 90 प्रतिशत हीरे तराशने का कार्य भारत में होता है। विश्व के सर्वाधिक बैंक खाते तथा डाकघर भारत में हैं।

विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक मेला भारत में कुम्भ का मेला आयोजित होता है जिसमें लगभम 30 करोड़ लोग हिस्सा लेते हैं।

देश ने सर्वांगीण विकास किया है। आज विश्व की निर्भरता भारतीय वैज्ञानिक, चिकित्सक, इंजीनीयर, आई टी, व्यवसायी, पत्रकार, समाजसेवी, सब पर बढ़ी है।

विश्व के बड़े-बड़े देश आज भारतीय मेधा पर आश्रित हैं। डाक्टर, इंजीनियर, आई.टी, के क्षेत्र में पूरे विश्व में भारतीयों की धाक है।

मेरे प्रस्तुत आंकड़े पुराने हो सकते हैं, और इनमें और भी बढ़ोतरी निश्चित रूप से हुई होगी।

फिर भारत के बारे में बात करते हुए हमारा ध्यान इस ओर क्यों नहीं जाता?

यदि कुछ अच्छा नहीं है तो उस पर विचार करें, समाधान का प्रयास करें, अपना सहयोग दें और जो अच्छा है उसकी अधिक से अधिक चर्चा करें, सकारात्मक वातावरण बनायें।

  

बरसात की एक शाम

बरसात की तो हर शाम ही सुहानी होती है किन्तु कोई-कोई यादों में बसी रह जाती है। और शिमला की बरसात का तो कहना ही क्या, वो कहते हैं न बिन बादल बरसात।

शिमला में सांय माल रोड पर घूमने का हर स्थानीय निवासी को चस्का लगा हुआ होता था। आफ़िस से निकलकर घर जाने से पहले माल रोड के चार-पांच चक्कर तो लगा ही लेते थे। स्कैंडल प्वाईंट से शेरे पंजाब तक। भारी भीड़ किन्तु मज़ाल है कोई किसी से टकरा जाये अथवा कोई यह कहे कि देखो कैसे घूम रहे हैं। और चलते-चलते बालज़ीस का कोण या गरमागरम गुलाबजामुन खाने का आनन्द ही अलग होता था।

उस दिन संध्या समय अचानक मूसलाधार बरसात होने लगी किन्तु हम ठहरे देसी, तेज़ बरसात में बिना छाता ही चलती रहीं हम पांच सखियाँ। सर से पैर तक भीगती हुईं। सीधे बालज़ीस के आगे जाकर रुकीं और उसे फ़टाफ़ट पांच प्लेट गरम गुलाबजामुन का आदेश दिया। वहाँ पहले से चार लड़के खड़े थे, उन्होंने भी गुलाबजामुन का आर्डर दिया था किन्तु दुकानदार ने हमें पहले दे दिये जिससे वे कुछ नाराज़ तो हुए किन्तु बोले कुछ नहीं। उनके हाथ में भी प्लेटें आ चुकी थीं किन्तु वे हमें ही देखे जा रहे थे। हम पांचों ने आंखों में इशारा किया और एक-एक टुकड़ा खाते ही मुँह बनाया और ज़ोर से बोलीं ‘‘हाय! बिल्कुल ठण्डे !!’’ हमें देखते हुए और हमारी बात सुनकर उनमें से तीन ने पूरा-पूरा गुलाबजामुन ही मुँह में डाल लिया और चिल्लाने लगे अरे, इतना गर्म, मुँह जल गया !! पानी, पानी!! हमारा हँस-हँसकर बुरा हाल।

सफ़लता के लिए संघर्ष क्यों ज़रूरी

सफ़लता के लिए प्रथम लक्ष्य का चयन चाहिए, उपरान्त मार्ग का नियमन, परिश्रम और  प्रयास की अनवरत सीढ़ी चाहिए। फिर यदि उपलब्धि न हो तो संघर्ष तो जीवन स्वयं देता है।

कुछ बातें हम कभी नहीं भूलते। जब हम बच्चे तब बड़े आत्मविश्वास से कहते थे कि परिश्रम से, संघर्ष से, प्रयास से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है तब मेरे पिता एवं एक अन्य घनिष्ठ सम्बन्धी मेरी बात पर हँसकर रह जाते थे, किन्तु हतोत्साहित नहीं करते थे। तो हम लोग समझ नहीं पाते थे कि वे हमारी बात का समर्थन कर रहे हैं अथवा हमें जीवन का सत्य समझाना चाहते हैं। उस समय मैं भाग्य को बिल्कुल नहीं मानती थी। मेरा कहना था कि यदि हमने ठान लिया है तो जो हम चाहते हैं मिलेगा ही।

किन्तु जीवन ने, काल ने परिश्रम, प्रयास एवं लक्ष्यों के संधान के उपरान्त भी गहन संघर्ष दिया और उपलब्धियों के रास्ते कंटक भरे रहे, और मैं पूर्णतया भाग्यवादी हो गई। संघर्ष कितना भी कर लें, प्रयास, परिश्रम कितना भी कर लें किन्तु मिलना वही है जो भाग्य का लेखा है, ऐसा मैं अपने जीवन के अनुभव से कह सकती हूँ।

एक बात जो मुझे कभी नहीं भूलती, वह यह कि मेरे पिता कहा करते थे कि यदि आपके भाग्य में भोजन लिखा है तो आपके पास कुछ नहीं है तो भी कोई आपको छत्तीस पकवान की थाली दे जायेगा।

और यदि आपके भाग्य में भोजन नहीं लिखा है तो आप दिल से अपने लिए छत्तीस पकवान बनाकर थाली सजाते हैं, गिर जायेगी, इसलिए बेटा मेहनत मत छोड़ना, जीवन में संघर्ष में लगे रहना किन्तु बहुत आस मत लगाकर रखना।

  

जीवन की यही असली कहानी है
आज आपको दिल की सच्ची बात बतानी है

काम का मन नहीं, सुबह से चादर तानी है

पल-पल बदले है सोच, पल-पल बदले भाव

शायद हर जीवन की यही असली कहानी है।

चिन्ता में पड़ी हूँ मैं

सब्ज़ी वाला आया न, सुबह से द्वार खड़ी हूँ मैं

आते होंगे भोजन के लिए, चिन्ता में पड़ी हूँ मैं

स्कूटी मेरी पंक्चर खड़ी, मण्डी तक जाऊँ कैसे

काम में हाथ बंटाया करो कितनी बार लड़ी हूँ मैं

मिर्ची व्यवहार

डाला मीठा अचार

खा रहे बार-बार

कहते मिर्ची लगी

कैसा यह व्यवहार

कल्पना में कमाल देखिए

 मन में एक भाव-उमंग, तिरंगे की आन देखिए

रंगों से सजता संसार, कल्पना में कमाल देखिए

घर-घर लहराये तिरंगा, शान-आन और बान से

न सही पताका, पर पताका का यहाँ भाव देखिए

तू अपने मन की कर

चाहे कितना काम करें, कोर-कसर तो रहती है

दुनिया का काम है कहना, कहती ही रहती है

तू अपने मन की कर, तू अपने मन से कर

कोई क्या कहता है, चिन्ता जाती रहती है।

शंख-ध्वनि
तुम्हारी वंशी की धुन पर विश्व संगीत रचता है

तुम्हारे चक्र की गति पर जीवन चक्र चलता है

दूध-दहीं माखन, गैया-मैया, ग्वाल-बाल सब

तुम्हारी शंख-ध्वनि से मन में सब बसता है।

चल रही है ज़िन्दगी

थमी-थमी, रुकी-रुकी-सी चल रही है ज़िन्दगी।

कभी भीगी, कभी ठहरी-सी दिख रही है जिन्दगी।

देखो-देखो, बूँदों ने जग पर अपना रूप सजाया

रोशनियों में डूब रही, कहीं गहराती है ज़िन्दगी।

भाव तिरंगे के

बालमन भी समझ गये हैं भाव तिरंगे के

केशरी, श्वेत, हरे रंगों के भाव तिरंगे के

गर्व से शीश उठता है, देख तिरंगे को

शांति, सत्य, अहिंसा, प्रेम भाव तिरंगे के

विरोध से डरते हैं

सहनशीलता के दिखावे की आदत-सी हो गई है

शालीनता के नाम पर चुप्पी की बात-सी हो गई है

विरोध से डरते हैं, मुस्कुराहट छाप ली है चेहरों पर

सूखे फूलों में खुशबू ढूंढने की आदत-सी हो गई है।

घबराना मत

सूरत पर तो जाना मत

मौसम-सी बदले है अब

लाल-पीले रहते हरदम

चश्मा उतरे घबराना मत

इंसानों की बस्ती
इंसानों की बस्ती में चाल चलने से पहले मात की बात होती है

इंसानों की बस्ती में मुहब्बत से पहले घृणा-भाव की जांच होती है

कोई नहीं पहचानता किसी को, कोई नहीं जानता किसी को यहाँ

इंसानों की बस्ती में अपनेपन से ज़्यादा घात लगाने की बात होती है।

ये दो दिन

कहते हैं

दुनिया

दो दिन का मेला,

कहाँ लगा

कबसे लगा,

मिला नहीं।

-

वैसे भी

69 वर्ष हो गये

ये दो दिन

बीत ही नहीं रहे।

 

हमारा छोटा-सा प्रयास

ये न समझना

कि पीठ दिखाकर जा रहे हैं हम

तुमसे डरकर भाग रहे हैं हम

चेहरे छुपाकर जा रहे हैं हम।

क्या करोगे चेहरे देखकर,

बस हमारा भाव देखो

हमारा छोटा-सा प्रयास देखो

साथ-साथ बढ़ते कदमों का

अंदाज़ देखो।

 

तुम कुछ भी अर्थ निकालते रहो

कितने भी अवरोध बनाते रहो

ठान लिया है

जीवन-पथ पर यूँ ही

आगे बढ़ना है

दुःख-सुख में

साथ निभाना है।

बस

एक प्रतीक-मात्र है

तुम्हें समझाने का।

 

यादों का पिटारा
 इस डिब्बे को देखकर

यादों का पिटारा खुल गया।

भूली-बिसरी चिट्ठियों के अक्षर

मस्तिष्क पटल पर

उलझने लगे।

हरे, पीले, नीले रंग

आंखों के सामने चमकने लगे।

तीन पैसे का पोस्ट कार्ड

पांच पैसे का अन्तर्देशीय,

और

बहुत महत्वपूर्ण हुआ करता था

बन्द लिफ़ाफ़ा

जिस पर डाकघर से खरीदकर

पचास पैसे का

डाक टिकट चिपकाया करते थे।

पत्र लिखने से पहले

कितना समय लग जाता था

यह निर्णय करने में

कि कार्ड प्रयोग करें

अन्तर्देशीय या लिफ़ाफ़ा।

तीन पैसे और पचास पैसे में

लाख रुपये का अन्तर

लगता था

और साथ ही

लिखने की लम्बाई

संदेश की सच्चाई

जीवन की खटाई।

वृक्षों पर लटके ,

सड़क के किनारे खड़े

ये छोटे-छोटे लाल डब्बे

सामाजिकता का

एक तार हुआ करते थे

अपनों से अपनी बात करने का,

दूरियों को पाटने का

आधार हुआ करते थे

द्वार से जब सरकता था पत्र

किसी अपने की आहट का

एहसास हुआ करते थे।

. प्रकृति कभी अपना स्वभाव नहीं छोड़ती

बड़ी देर से

समझ पाते हैं हम

प्रकृति

कभी अपना स्वभाव नहीं छोड़ती।

कहते हैं

शेर भूख मर जाता है

किन्तु घास नहीं खाता

और एक बार मानव-गंध लग जाये

तो कुछ और नहीं खाता।

तभी तो

हमारे बड़े-बुज़ुर्ग कह गये हैं

दोस्ती बराबर वालों से करो

गधा भी जब

दुलत्ती मारता है

तो बड़े-बड़ों के होश

गुम हो जाते हैं

और तुम हो कि

जंगल के राजा से

तकरार करने बैठे हो।

 

हाथ जब भरोसे के जुड़ते हैं

हाथ

जब भरोसे के

जुड़ते हैं

तब धरा, आकाश

जल-थल

सब साथ देते हैं

परछाईयाँ भी

संग-संग चलती हैं

जल किलोल करता है

कदम थिरकने लगते हैं

सूरज राह दिखाता है

जीवन रंगीनियों से

सराबोर हो जाता है,

नितान्त निस्पृह

अपने-आप में खो जाता है।

 

 

 

विचारों का झंझावात

अजब है

विचारों का झंझावात भी

पलट-पलट कर कहता है

हर बार नई बात जी।

राहें, चौराहे कट रहे हैं

कदम भटक रहे हैं

कहाँ से लाऊँ

पत्थरों से अडिग भाव जी।

जब धार आती है तीखी

तब कट जाते हैं

पत्थरों के अविचल भराव भी,

नदियों के किनारों में भी

आते हैं कटाव जी।

और ये भाव तो हवाएँ हैं

कब कहाँ रुख बदल जायेगा

नहीं पता हमें

मूड बदल जाये

तो दुनिया तहस-नहस कर दें

हमारी क्या बात जी।

तो कुछ

आप ही समझाएँ जनाब जी।

 

क्या यह दृष्टि-भ्रम है

क्या यह दृष्टि-भ्रम है ?

मुझे नहीं दिखती

गहन जलप्लावन में

सिर पर टोकरी रखे

बच्चे के साथ गहरे पानी में

कोई माँ, डूबती-सी।

-

नहीं अनुभव होता मुझे

किसी किशन कन्हैया

नंद बाबा

यशोदा मैया या देवकी का।

-

शायद बहुत भावशून्य हूँ मैं,

आप कह सकते हैं।

-

मुझे दिखती हैं

अव्यवस्थाएँ

महलों में बनती योजनाएँ

दूरबीन से देखते

डूबता-तिरता आम आदमी

बोतलों में बन्द पानी

विमान से बनाते बांध

आकाश से गिरता भोजन।

-

कुछ दिन में आप ही

निकल जायेगा जल

सम्हल जायेगा आम आदमी

अगले वर्ष की प्रतीक्षा में।

-

लेकिन बस इतना ध्यान रहे

विभीषिका नाम, स्थान,

समय और काल नहीं देखती।

झोंपड़िया टूटती हैं

तो महल भी बिखर जाते हैं।

 

जल-विभाग इन्द्र जी के पास

मेरी जानकारी के अनुसार

जल-विभाग

इन्द्र जी के पास है।

कभी प्रयास किया था उन्होंने

गोवर्धन को डुबाने का

किन्तु विफ़ल रहे थे।

उस युग में

कृष्ण जी थे

जिन्होंने

अपनी कनिष्का पर

गोवर्धन धारण कर

बचा लिया था

पूरे समाज को।

.

किन्तु इन्द्र जी,

इस काल में कोई नहीं

जो अपनी अंगुली दे

समाज हित में।

.

इसलिए

आप ही से

निवेदन है,

अपने विभाग को

ज़रा व्यवस्थित कीजिए

काल और स्थान देखकर

जल की आपूर्ति कीजिए,

घटाओं पर नियन्त्रण कीजिए

कहीं अति-वृष्टि

कहीं शुष्कता को

संयमित कीजिए

न हो कहीं कमी

न ज़्यादती,

नदियाँ सदानीरा

और धरा शस्यश्यामला बने,

अपने विभाग को

ज़रा व्यवस्थित कीजिए।

 

 

मन  उलझ रहा

आंखों में काजल है नभ पर बादल हैं

भाव बहक रहे ये दिल तो पागल है

रिमझिम बरखा में मन क्यों उलझ रहा

उनकी यादों में मन विचलित, घायल है

सुनो कृष्ण

सुनो कृष्ण !

मैं नहीं चाहती

किसी द्रौपदी को

तुम्हें पुकारना पड़े।

मैं नहीं चाहती

किसी युद्ध का तुम्हें

मध्यस्थ बनना पड़े।

नहीं चाहती मैं

किसी ऐसे युद्ध के

साक्षी बनो तुम

जहाँ तुम्हें

शस्त्र त्याग कर

दर्शक बनना पड़े।

नहीं चाहती मैं

तुम युद्ध भी न करो

किन्तु संचालक तुम ही बनो।

मैं नहीं चाहती

तुम ऐसे दूत बनो

जहाँ तुम

पहले से ही जानते हो

कि निर्णय नहीं होगा।

मैं नहीं चाहती

गीता का

वह उपदेश देना पड़े तुम्हें

जिसे इस जगत में

कोई नहीं समझता, सुनता,

पालन करता।

मैं नहीं चाहती

कि तुम इतना गहन ज्ञान दो

और यह दुनिया

फिर भी दूध-दहीं-ग्वाल-बाल

गैया-मैया-लाड़-लड़ैया में उलझी रहे,

राधा का सौन्दर्य

तुम्हारी वंशी, लालन-पालन

और तुम्हारी ठुमक-ठुमैया

के अतिरिक्त उन्हें कुछ स्मरण ही न रहे।

तुम्हारा चक्र, तुम्हारी शंख-ध्वनि

कुछ भी स्मरण न करें,

 

न करें स्मरण

युद्धों का उद्घोष

समझौतों का प्रयास

अपने-पराये की पहचान की समझ,

न समझें तुम्हारी निर्णय-क्षमता

अपराधियों को दण्डित करने की नीति।

झुकने और समझौतों की

क्या सीमा-रेखा होती है

समझ ही न सकें।

मैं नहीं चाहती

कि तुम्हारे नाम के बहाने

उत्सवों-समारोहों में

इतना खो जायें

तुम पर इतना निर्भर हो जायें

कि तनिक-से कष्ट में

तुम्हें पुकारते रहें

कर्म न करें,

प्रयास न करें,

अभ्यास न करें।

तुम्हारे नाम का जाप करते-करते

तुम्हें ही भूल जायें,

बस यही नहीं चाहती मैं

हे कृष्ण !

 

 

उनकी यादों में

क्यों हमारे दिन सभी मुट्ठियों से फ़िसल जायेंगे

उनकी यादों में जीयेंगे, उनकी यादों में मर जायेंगे

मरने की बात न करना यारो, जीने की बात करें

दिल के आशियाने में उनकी एक तस्वीर सजायेंगे।

रंग-बिरंगी  ज़िन्दगी

इन पत्तों में रंग-बिरंगी दिखती है ज़िन्दगी

इन पत्तों-सी उड़ती-फिरती है ये जिन्दगी

कब झड़े, कब उड़े, हुए रंगहीन, क्या जानें

इन पत्तों-सी धरा पर उतार लाती है जिन्दगी।

मुस्कानों को नहीं छीन सकता कोई

ज़िन्दगियाँ पानी-पानी हो रहीं

जंग खातीं काली-काली हो रहीं

मुस्कानों को नहीं छीन सकता कोई

चाहें थालियाँ खाली-खाली हो रहीं।

दिन सभी मुट्ठियों से फ़िसल जायेंगे
किसी ने मुझे कह दिया

दिन

सभी मुट्ठियों से

फ़िसल जायेंगे,

इस डर से

न जाने कब से मैंने

हाथों को समेटना

बन्द कर दिया है

मुट्ठियों को

बांधने से डरने लगी हूँ।

रेखाएँ पढ़ती हूँ

चिन्ह परखती हूँ

अंगुलियों की लम्बाई

जांचती हूँ,

हाथों को

पलट-पलटकर देखती हूँ

पर मुट्ठियाँ बांधने से

डरने लगी हूँ।

इन छोटी -छोटी

दो मुट्ठियों में

कितने समेट लूँगी

जिन्दगी के बेहिसाब पल।

अब डर नहीं लगता

खुली मुट्ठियों में

जीवन को

शुद्ध आचमन-सा

अनुभव करने लगी हूँ,

जीवन जीने लगी हूँ।

 

यादें बिखर जाती हैं

पन्ने खुल जाते हैं

शब्द मिट जाते हैं

फूल झर जाते हैं

सुगंध उड़ जाती है

यादें बिखर जाती हैं

लुटे भाव रह जाते हैं

मन में बजे सरगम
मस्ती में मनमौजी मन

पायल बजती छन-छनछन

पैरों की अनबन

बूँदों की थिरकन

हाथों से छल-छल

जल में

बनते भंवर-भंवर

हल्की-हल्की छुअन

बूँदों की रागिनी

मन में बजती सरगम।