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इधर बड़ा हेर-फ़ेर
होने लगा है
पर्यायवाची शब्दों में।
लिखने में शब्द
अब
उलझने लगे हैं।
लिखा तो मैंने
अभिमान, गर्व था,
किन्तु तुम उसे
मेरा गुरूर समझ बैठे।
अपने अच्छे कर्मों को लेकर
अक्सर
हम चिन्तित रहते हैं।
प्रदर्शन तो नहीं,
किन्तु कभी तो कह बैठते हैं।
फिर इसे
आप मेरा गुरूर समझें
या कोई पर्यायवाची शब्द।
कभी-कभी
अपनी योग्यताएँ
बतानी पड़ती हैं
समझानी पड़ती हैं
क्योंकि
इस समाज को
बुराईयों का काला चिट्ठा तो
पूरा स्मरण रहता है
बस अच्छाईयाँ
ही नहीं दिखतीं।
इसलिए
जताना पड़ता है,
फिर तुम उसे
मेरा गुरूर समझो
या कुछ और।
नहीं तो ये दुनिया तुम्हें
मूर्खानन्द ही समझती रहेगी।
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काहे तू इठलाय
हाथों में कमान थाम, नयनों से तू तीर चलाय।
हिरणी-सी आंखें तेरी, बिन्दिया तेरी मन भाय।
प्रत्यंचा खींच, देखती इधर है, निशाना किधर है,
नाटक कंपनी की पोशाक पहन काहे तू इठलाय।
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दुराशा
जब भी मैंने
चलने की कोशिश की
मुझे
खड़े होने लायक
जगह दे दी गई।
जब मैंने खड़ा होना चाहा
मुझे बिठा दिया गया।
और ज्यों ही मैंने
बैठने का प्रयास किया
मुझे नींद की गोली दे दी गई।
चलने से लेकर नींद तक।
लेकिन मुझे फिर लौटना है
नींद से लेकर चलने तक।
जैसे ही
गोली का खुमार टूटता है
मैं
फिर
चलने की कोशिश
करने लगती हूं।
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कुहुक-कुहुक करती
चीं चीं चीं चीं करती दिन भर, चुपकर दाना पानी लाई हूं, ले खा
निकलेंगे तेरे भी पंख सुनहरे लम्बी कलगी, चल अब खोखर में जा
उड़ना सिखलाउंगी, झूमेंगे फिर डाली-डाली, नीड़ नया बनायेंगे
कुहुक-कुहुक करती, फुदक-फुदक घूमेगी, अब मेरी जान न खा
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कच्चे घड़े-सी युवतियां
कच्चे घड़े-सी होती हैं
ये युवतियां।
घड़ों पर रचती कलाकृति
न जाने क्या सोचती हैं
ये युवतियां।
रंग-बिरंगे वस्त्रों से सज्जित
श्रृंगार का रूप होती हैं
ये युवतियां।
रंग सदा रंगीन नहीं होते
ये बात जानती हैं
केवल, ये युवतियां।
हाट सजता है,
बाट लगता है,
ठोक-बजाकर बिकता है,
ये बात जानती हैं
केवल, ये युवतियां।
कला-संस्कृति के नाम पर
बैठक की सजावट बनते हैं]
सजते हैं घट
और चाहिए एक ओढ़नी
जानती हैं सब
केवल, ये युवतियां।
बातें आसमां की करते हैं
पर इनके जीवन में तो
ठीक से धरा भी नहीं है
ये बात जानती हैं
केवल, ये युवतियां।
कच्चे घड़ों की ज़िन्दगी
होती है छोटी
इस बात को
सबसे ज़्यादा जानती हैं
ये युवतियां।
चाहिए जल की तरलता, शीतलता
किन्तु आग पर सिंक कर
पकते हैं घट
ये बात जानती हैं
केवल, ये युवतियां।
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हिम्मतों का सफ़र है ज़िन्दगी
हिम्मतों का सफ़र है ज़िन्दगी।
राहों में खतरा है ज़िन्दगी।
पर्वतों-सी बाधाएं झेलती है ज़िन्दगी।
साहस और श्रम का नाम है ज़िन्दगी।
कहते हैं जहां चाह वहां राह,
यह बात यहां बताती है ज़िन्दगी।
कहीं गहरी खाई और कहीं
सिर पर पहाड़-सी समस्याओं से
डराती है ज़िन्दगी।
राह देना
और सही राह लेना
समझाती है ज़िन्दगी।
चलना सदा सम्हल कर
यह समझाती है जिन्दगी।
एक गलत मोड़
एक अन्त का संकेत
दे जाती है ज़िन्दगी।
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क्लोज़िंग डे
हर छ: महीने बाद
वर्ष में दो बार आने वाला
क्लोज़िंग डे
जब पिछले सब खाते
बन्द करने होते हैं
और शुरू करना होता है
फिर से नया हिसाब किताब।
मिलान करना होता है हर प्रविष्टि का,
अनेक तरह के समायोजन
और एक निश्चित लक्ष्य की प्राप्ति।
मैंने कितनी ही बार चाहा
कि अपनी ज़िन्दगी के हर दिन को
बैंक का क्लोज़िंग डे बना दूं।
ज़िन्दगी भी तो बैंक का एक खाता ही है
पर फर्क बस इतना है कि
बैंक और बैंक के खाते
कभी तो लाभ में भी रहते हैं
ब्याज दर ब्याज कमाते हैं।
पर मेरी ज़िन्दगी तो बस
घाटे का एक उधार खाता बन कर रह गई है।
रोज़ शाम को
जब ज़िन्दगी की किताबों का
मिलान करने बैठती हूं
तो पाती हूं
कि यहां तो कुछ भी समायोजित नहीं होता।
कहीं कोई प्रविष्टि ही गायब है
तो कहीं एक के उपर एक
इतनी बार लिखा गया है कई कुछ
कि अपठनीय हो गया है सब।
फिर कहीं पृष्ट ही गायब हैं
और कहीं पर्चियां बिना हस्ताक्षर।
सब नियम विरूद्ध।
और कहीं दूर पीछे छूटते लक्ष्य।
कितना धोखा धड़ी भरा खाता है यह
कि सब नामे ही नामे है
जमा कुछ भी नहीं।
फिर खाता बन्द कर देने पर भी
उधार चुकता नहीं होता
उनका नवीनीकरण हो जाता है।
पिछला सब शेष है
और नया शुरू हो जाता है।
पिछले लक्ष्य अधूरे
नये लक्ष्यों का खौफ़।
एक एक कर खिसकते दिन।
दिन दिन से जुड़कर बनते साल।
उधार ही उधार।
कैसे चुकता होगा सब।
विचार ही विचार।
यह दिनों और सालों का हिसाब।
और उन पर लगता ब्याज।
इतिहास सदा ही लम्बा होता है
और वर्तमान छोटा।
इतिहास स्थिर होता है
और वर्तमान गतिशील।
सफ़र जारी है
उस दिन की ओर
जिस दिन
अपनी ज़िन्दगी के खातों में
कोई समायोजित प्रविष्टि,
कोई मिलान प्रविष्टि
करने में सफ़लता मिलेगी।
वही दिन
मेरी जिन्दगी का
ओपनिंग डे होगा
पर क्या कोई ऐसा भी दिन होगा ?
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धन-दौलत जीवन का आधार
धन-दौलत पर दुनिया ठहरी, धन-दौलत से चलती है
जीवन का आधार है यह, सुच्ची रोटी इसी से बनती है
छल है, मोह-माया है, चाह नहीं, कहने की बातें हैं
नहीं हाथ की मैल है यह, श्रम से सबको फलती है।
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कुछ सपने
भाव भी तो लौ-से दमकते हैं
कभी बुझते तो कभी चमकते हैं
मन की बात मन में रह जाती है
कुछ सपने आंखों में ही दरकते हैं
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परिवर्तन नित्य है
सन्मार्ग पर चलने के लिए रोशनी की बस एक किरण ही काफ़ी है
इरादे नेक हों, तो, राही दो हों न हों, बढ़ते रहें, इतना ही काफ़ी है
सूर्य अस्त होगा, रात आयेगी, तम भी फैलेगा, संगी साथ छोड़ देंगे,
तब भी राह उन्मुक्त है, परिवर्तन नित्य है, इतना जानना ही काफ़ी है
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वर्षा ऋतु पर हाईकू
पानी बरसा
चांद-सितारे डूबे
गगन हंसा
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पानी बरसा
धरती भीगी-भीगी
मिट्टी महकी
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पानी बरसा
अंकुरण हैं फूटे
पुष्प महके
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पानी बरसा
बूंद-बूंद टपकती
मन हरषा
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पानी बरसा
अंधेरा घिर आया
चिड़िया फुर्र
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पानी बरसा
मन है आनन्दित
तुम ठिठुरे