पर्यायवाची शब्दों में हेर-फ़ेर

इधर बड़ा हेर-फ़ेर

होने लगा है

पर्यायवाची शब्दों में।

लिखने में शब्द

अब

उलझने लगे हैं।

लिखा तो मैंने

अभिमान, गर्व था,

किन्तु तुम उसे

मेरा गुरूर समझ बैठे।

अपने अच्छे कर्मों को लेकर

अक्सर

हम चिन्तित रहते हैं।

प्रदर्शन तो नहीं,

किन्तु कभी तो कह बैठते हैं।

फिर इसे

आप मेरा गुरूर समझें

या कोई पर्यायवाची शब्द।

कभी-कभी

अपनी योग्यताएँ

बतानी पड़ती हैं

समझानी पड़ती हैं

क्योंकि

इस समाज को

बुराईयों का काला चिट्ठा तो

पूरा स्मरण रहता है

बस अच्छाईयाँ

ही नहीं दिखतीं।

इसलिए

जताना पड़ता है,

फिर तुम उसे

मेरा गुरूर समझो

या कुछ और।

नहीं तो ये दुनिया तुम्हें

मूर्खानन्द ही समझती रहेगी।