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सच कहूं तो
अब सच बोलने का मन नहीं करता।
सच कहूं तो
अब मन किसी काम में नहीं लगता।
सच कहूं तो
अब कुछ भी यहां अच्छा नहीं लगता।
सच कहूं तो
अब कुछ लिखने में मन नहीं लगता।
सच कहूं तो
अब विश्वास लायक कोई नहीं दिखता।
सच कहूं तो
अब रफ्फू सीने का मन नहीं करता।
सच कहूं तो
अब रिश्ते सुलझाने का मन नहीं करता।
सच कहूं तो
अब अपनों से ही बात करने का मन नहीं करता।
सच कहूं तो
अब हंसने या रोने का भी मन नहीं करता।
सच कहूं तो
अब सपनों में जीने का मन नहीं करता।
सच कहूं तो
अब तुमसे भी बात करने का मन नहीं करता।
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जलने-बुझने के बीच
न इस तरह जलाओ कि सिलसिला बन जाये।
न इस तरह बुझाओ कि राख ही नज़र जाये।
जलने-बुझने के बीच बहुत कुछ घट जाता है,
न इस तरह तम हटाओ कि आंख ही धुंधला जाये।
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हम खुश हैं जग खुश है
इस भीड़ भरे संसार में मुश्किल से मिलती है तन्हाई सखा
आ, ज़रा दो बातें कर लें,कल क्या हो,जाने कौन सखा
ये उजली धूप,समां सुहाना,हवा बासंती,हरा भरा उपवन
हम खुश हैं, जग खुश है, जीवन में और क्या चाहिए सखा
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सपनों की बात न करना यारो मुझसे
आंखों में तिरते हैं, पलकों में छिपते हैं
शब्दों में बंधते हैं, आहों में कटते हैं
सपनों की बात न करना यारो मुझसे
सांसों में बिंधते हैं, राहों में चुभते हैं।
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किस शती में जी रहे हैं हम
एक छात्रा के साथ हुई मेरी बातचीत, आपके समक्ष शब्दशः प्रस्तुत
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जैसा कि आप जानते हैं मैं एक विद्यालय में कार्यरत हूं। एक छात्रा 12 वीं का प्रमाणपत्र लेने के लिए आई तो मैंने देखा] उसकी फ़ाईल में पासपोर्ट है। मैंने उत्सुकतावश पूछा, उच्च शिक्षा के लिए कहां जा रही हा,े और कौन से क्षेत्र में।
उसका उत्तर थाः चीन, एम. बी. बी. एस, एम. डी और एक और डिग्री बताई उसने, कि दस वर्ष की शैक्षणिक अवधि है। मैं चकित।
चीन? क्यों कोई और देश नहीं मिला, क्योंकि इससे पूर्व मैं नहीं जानती थी कि उच्च शिक्षा के लिए हमारे देश के विद्यार्थी चीन को भी चुन रहे हैं।
चीन ही क्यों? उसका सरल सा उत्तर था कि वहां पढ़ाई बहुत सस्ती है, विश्व के प्रत्येक देश से सस्ती। मात्र तीस लाख में पूरा कोर्स होगा।
मात्र तीस लाख उसने ऐसे कहा जैसे हम बचपन में तीन पैसे फीस दिया करते थे। अच्छा मात्र तीस लाख?
भारत में इसकी फीस कितनी है ?
उसने अर्द्धसरकारी एवं निजी संस्थानों की जो फीस बताई वह सुनकर अभी भी मेरी नींद उड़ी हुई है। उसका कथन था कि पंजाब में साधारण से मैडिकल कालेज की फीस भी लगभग डेढ़ करोड़ तक चली जाती है। मुझे लगा मैं ही अभी अट्ठाहरवीं शताब्दी की प्राणी हूं।
वह स्वयं भी कही आहत थी। उसने आगे जानकारी दी।
दो बहनें। एक का विवाह पिछले ही वर्ष हुआ जो कि आई टी सी में कार्यरत थी, किन्तु ससुराल वालों के कहने पर विवाह-पूर्व ही नौकरी छोड़ दी। किन्तु यह वादा किया कि विवाह के बाद उसी शहर में कोई और नौकरी करना चाहे तो कर लेगी। किन्तु जब उसका बैंक में चयन हो गया तो उसे नौकरी की अनुमति नहीं दी जा रही कि घर में किस बात की कमी है जो नौकरी करनी है। इतना उसके विवाह पर खर्च हुआ फिर भी खुश नहीं हैं।
कितना ?
60 लाख।
तो तुम्हारी शादी के लिए भी है?
हां है।
और तुम डाक्टर बन कर लौटी और तुम्हें भी काम नहीं करने दिया गया तो?
वह निरूत्तर थी।
मैंने उससे खुलकर एक प्रश्न किया कि जब तुम्हारी जाति में इतना दहेज लिया जाता है, तो बाहर विवाह क्यों नहीं हो सकते।
नहीं परिवार के सम्मान की बात है। जाति से बाहर विवाह नहीं कर सकते। प्रेम&विवाह भी नहीं , समाज में परिवार का मान नहीं रहता। परिवार बहिष्कृत हो जाते हैं।
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मन का दीप प्रज्वलित हो
अपनों का साथ हो
सपनों का राग हो
सम्बन्धों का उन्माद हो
सबसे संवाद हो
मन बाग बाग हो
जीवन में राग राग हो
मधुर मधुर तान हो
भावों में अनुराग हो
मलिनता मिट जाए
दूरियां सिमट जाएं
रिश्तों की गरिमा हो
अपनों की महिमा हो
विश्वास की दमक हो
अपनेपन की महक हो
सहज सहज जीवन हो
सरल पावन मन हो
मन से मन का मिलन हो
न द्वेष का राग हो,
न सत्य से विराग हो
जीवन की सुंदर कहानी हो
अपनों की जु़बानी हो
जगमग जगमग संसार हो
खुशियां अपार हों
पर्वों की सी हरदम आहट हो
बस मन का दीप प्रज्वलित हो।
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किस असमंजस में पड़ी है ज़िन्दगी
गत-आगत के मोह से जुड़ी है ज़िन्दगी
स्मृतियों के जोड़ पर खड़ी है ज़िन्दगी
मीठी-खट्टी जो भी हैं, हैं तो सब अपनी
जाने किस असमंजस में पड़ी है ज़िन्दगी
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शंख-ध्वनि
तुम्हारी वंशी की धुन पर विश्व संगीत रचता है
तुम्हारे चक्र की गति पर जीवन चक्र चलता है
दूध-दहीं माखन, गैया-मैया, ग्वाल-बाल सब
तुम्हारी शंख-ध्वनि से मन में सब बसता है।
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कभी कांटों को सहेजकर देखना
फूलों का सौन्दर्य तो बस क्षणिक होता है
रस रंग गंध सबका क्षरण होता है
कभी कांटों को सहेजकर देखना
जीवन भर का अक्षुण्ण साथ होता है
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बताते हैं क्या कीजिए
सुना है ज्ञान, ध्यान, स्नान एक अनुष्ठान है, नियम, काल, भाव से कीजिए
तुलसी-नीम डालिए, स्वच्छ जल लीजिए, मंत्र पढ़िए, राम-राम कीजिए।।
शून्य तापमान, शीतकाल, शीतल जल, काम इतना कीजिए बस चुपचाप
चेहरे को चमकाईए, क्रीम लगाईए, और हे राम ! हे राम ! कीजिए ।।
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भीड़ का हिस्सा बन
अकेलेपन की समस्या से हम अक्सर परेशान रहते हैं
किन्तु भीड़ का हिस्सा बनने से भी तो कतराते हैं
कभी अपनी पहचान खोकर सबके बीच समाकर देखिए
किस तरह चारों ओर अपने ही अपने नज़र आते हैं