स्मृतियां सदैव मधुर नहीं होतीं

आओगे जब तुम साजना

द्वार पर खड़ी नहीं मिलूंगी मैं

घर-बाहर संवारती नहीं दिखूंगी मैं।

भाव मिट जाते हैं

इच्छाएं मर जाती हैं

सब अधूरा-सा लगता है

जब तुम वादे नहीं निभाते,

कहकर भी नहीं आते।

मन उखड़ा-उखड़ा-सा रहता है।

प्रतीक्षा के पल

सदैव मोहक नहीं होते,

स्मृतियां सदैव मधुर नहीं होतीं।

समय के साथ

स्मृतियां धुल जाती हैं

नेह-भाव पर

धूल जम जाती है।

ज़िन्दगी ठहर-सी जाती है।

इस ठहरी हुई ज़िन्दगी में ही

अपने लिए फूल चुनती हूं।

नहीं कोई आस रखती किसी से,

अपने लिए जीती हूं

अपने लिए हंसती हूं।