मन हर्षित होता है

दूब पर चमकती ओस की बूंदें, मन हर्षित कर जाती हैं।

सिर झुकाई घास, देखो सदा पैरों तले रौंद दी जाती है।

कहते हैं डूबते को तृण का सहारा ही बहुत होता है,

पूजा-अर्चना में दूर्वा से ही आचमन विधि की जाती है।

 

व्यवसाय बनी है शिक्षा

शिक्षक का नअब मान रहा।

छात्र का न अब प्रतिदान रहा।

व्यवसाय बनी है शिक्षा अब,

व्यापार बना, यह काम रहा

समानता का भाव

बस एक इंसानियत का भाव जगाना होगा।

समानता का भाव सबके मन में लाना होगा।

मानवता को बांटकर देश प्रगति नहीं करते,

हर तरह का भेद-भाव अब मिटाना होगा।

कभी हमारी रचना पर आया कीजिए

समीक्षा कीजिए, जांच कीजिए, पड़ताल कीजिए।

इसी बहाने कभी-कभार रचना पर आया कीजिए।

बहुत आशाएं तो हम करते नहीं समीक्षकों से,

बहुत खूब, बहुत सुन्दर ही लिख जाया कीजिए।

समय समय की बात

वस्त्र सुन्दर, मूल्यवान, यूं अलमारी में चन्द पड़े हैं,

क्या पहने, अब बात नहीं होती घर में बन्द खड़े हैं,

तह लगाते, तह पलटते, देखें कहीं दीमक न खाए

स्वर्णाभूषण यूं लगते मानों देखो सारे जंग गड़े हैं।

बाधाएं राहों से कैसे हटतीं

 

विनम्रता से सदा दुनिया नहीं चलती

समझौतों से सदा बात यहां नहीं बनती

हम रोते हैं, जग हंसता है ताने कसता है,

आंख दिखा, तभी राहों से बाधाएं हैं हटतीं।

चिड़िया फूल रंग और मन

 

चिड़िया की कुहुक-कुहुक, फूलों की महक-महक

राग बजे मधुर-मधुर, मन गया बहक-बहक

सरगम की तान छिड़ी, साज़ बजे, राग बने

सतरंगी आभा छाई , ताल बजे ठुमुक-ठुमुक

प्रकृति का मन न समझें हम

कभी ऋतुएं मनोहारी लगती थीं, अब डरता है मन।

ग्रीष्म ऋतु में सूखे ताल-तलैया, जलते हैं कानन।

बदरा घिरते, बरसेगा रिमझिम, धरा की प्यास बुझेगी,

पर अब तो हर बार, विभीषिका लेकर आता है सावन

प्रभास है जीवन

हास है, परिहास है, विश्वास है जीवन

हर दिन एक नया प्रयास है जीवन

सूरज भी चंदा के पीछे छिप जाता है,

आप मुस्कुरा दें तो तो प्रभास है जीवन

सावन की बातें मनभावन की बातें

वो सावन की बातें, वो मनभावन की बातें, छूट गईं।

वो सावन की यादें, वो प्रेम-प्यार की बातें, भूल गईं।

मन डरता है, बरसेगा या होगा महाप्रलय कौन जाने,

वो रिमझिम की यादें, वो मिलने की बातें, छूट गईं ।

समझिए समय की दरकार

 

हाथ मिलाना मना है, समझाया था, कीजिए नमस्कार।

चेहरों के भाव परखिए, आंखों के भाव समझिए सरकार।

कौन जाने किसके हाथों में कांटें छुपे हैं, कहां चुभेंगें,

मन को परखना सीखिए, यही है समय की दरकार।

विश्वगुरू बनने की बात करें

 

विश्वगुरू बनने की बात करें, विज्ञान की प्राचीन कथाएं पढ़े हम शान से।

सवा सौ करोड़ में सवा लाख सम्हलते नहीं, रहें न जाने किस मान में।

अपने ही नागरिक प्रवासी कहलाते, विश्व-पर्यटन का कीर्तिमान बना

अब लोकल-वोकल की बात करें, यही कथाएं चल रहीं हिन्दुस्तान में।

जग में न मिला अपनापन

 

सुख के दिन बीते, दुख के बीहड़ में नहीं दिखता अपनापन

अपने सब दूर हुए, दृग तरसें, ढूंढे जग में न मिला अपनापन

द्वार बन्द मिले, पहचान खो गई, दूर तलक न मिला कोई,

सत्य को जानिए, आप ही बनिए हर हाल में अपना संकटमोचन

 

अभिनन्दन करते मातृभूमि का

 

वन्दन करते, अभिनन्दन करते मातृभूमि का जिस पर हमने जन्म लिया

लोकतन्त्र देता अधिकार असीमित, क्या कर्त्तव्यों की ओर कभी ध्यान दिया

देशभक्ति के नारों से, कुछ गीतों, कुछ व्याखानों से, जय-जय-जयकारों से ,

पूछती हूं स्वयं से, इससे हटकर देशहित में और कौन-कौन-सा कर्म किया

इंसानों से काम करेंगें

 

इंसानों में रहते हैं तो इंसानों से काम करेंगें

आग जलाई तुमने हम सेंककर शीत हरेंगे

बाहर झड़ी लगी है, यहीं बितायेंगे दिन-रात

यहीं बैठकर रोटी-पानी खाकर पेट भरेंगे।

जीवन की लम्‍बी राहों में

 

जीवन की लम्‍बी राहों में उलझे-बिखरे रस्‍ते हैं यादों के

पीछे मुड़कर देखें तो कुछ मोती , कुछ कण्‍टक हैं वादों के

किसने साथ दिया, कौन संग चला जीवन भर,  क्‍या सोचना,

क्‍यों साथ लेकर चलें अकारण ही भरी  संवादों के विवादों के

मेहनत करते हैं जीते हैं

 

मां ने बोला था कल लोहड़ी है, लकड़ी का न हुआ है इंतज़ाम

विद्यालय में कुछ पुराने पेड़ कटे थे, मैं ले आई माली से मांग

बस हर वक्त भूख, रोटी, लड़की, शोषण की ही बात मत कर

मेहनत करते हैं, जीते हैं अपने ढंग से, यह लो तुम भी मान

फहराता है तिरंगा

प्रकृति के प्रांगण में लहराता है तिरंगा

धरा से गगन तक फहराता है तिरंगा

हरीतिमा भी गौरवान्वित है यहां देखो

भारत का मानचित्र सजाता है तिरंगा

पहचान खोकर मिले हैं खुशियां

 

कल खेली थी छुपन-छुपाई आज रस्सी-टप्पा खेलेंगे।

मैं लाई हूं चावल-रोटी, हिल-मिलकर चल खालेंगे।

तू मेरी चूड़ी-चुनरी ले लेना, मैं तेरी ले लेती हूं,

मां कैसे पहचानेगी हमको, मज़े-मज़े से देखेंगे।

 

बांसुरी अब भावशून्य हो गई

कृष्ण तेरी बांसुरी अब

भावशून्य हो गई।

राधा तेरे नृत्य की गति भी

कहीं खो गई।

छोड़ अब ये रास लीला,

प्रेम मनुहार की बातें।

चक्र उठा,

कंस, दु:शासन,दुर्योधनों की

भीड़ भारी हो गई।

संगीतकार हूं मैं

 

एक मधुर संगीतकार हूं  कोई तो मुझको सुन लो जी।

टर्र टर्र करता हूं  एक नया राग है तुम गुन लो जी।

हरी भरी बगिया में बैठा हूं गीता गाता हूं आनन्दित हूं,

गायन प्रतियोगिता के लिए मुझसे एक नई धुन लो जी।

बहकती हैं पत्तियों पर ओस की बूंदें

 

छू मत देना इन मोतियों को टूट न जायें कहीं।

आनन्द का आन्तरिक स्त्रोत हैं छूट न जाये कहीं।

जब बहकती देखती हूं इन पत्तियों पर ओस की बूंदे ,

बोलती हूं, ठहर-ठहर देखो, ये फूट न जाये कहीं ।

साथ समय के चलना होगा

तुमको क्यों ईर्ष्या होती है मैंने भी आई-फोन लिया है
साथ समय के चलना होगा इतना मैंने समझ लिया है।
चिट्ठियां-विट्ठियां पीछे छूटीं, इतना ज्ञान मिला है मुझको,
-मेल, फेसबुक, ट्विटर सब कुछ मैंने खोल लिया है।

कर्मनिष्ठ जीवन तो जीना होगा

 

ये कैसा रंगरूप अब तुम ओढ़कर चले हो,

क्यों तुम दुनिया से यूं मुंह मोड़कर चले हो,

कर्मनिष्ठ-जीवन में विपदाओं से जूझना होगा,

त्याग के नाम पर कौन से सफ़र पर चले हो।

प्रकृति है जीवन सौन्दर्य

 

रक्त पीत वर्ण में बासंती बयार फ़लक है।

आकर्षित करता तुम्हारा रूप दृष्टि ललक है।

न जाने कब छा जायें घटाएं, बदले मौसम,

जीवन के सौन्दर्य की यह बस एक झलक है।

रसते–बसते घरों में खुशियां

रसतेबसते घरों में खुशियां चकले-बेलने की ताल पर बजती हैं।

मां रोटी पकाती है, घर महकता है, थाली-कटोरी सजती है।

देर शाम घर लौटकर सब साथ-साथ बैठते, हंसते-बतियाते,

निमन्त्रण है तुम्हें, देखना घर की दीवारें भी गुनगुनाने लगती हैं।

गूगल गुरू घंटाल

 

कम्प्यूटर जी गुरू हो गये, गूगल गुरू घंटाल

छात्र हो गये हाई टैक, गुरू बैठै हाल-बेहाल

नमन करें या क्लिक करें, समझ से बाहर बात

स्मार्ट बोर्ड, टैबलैट,पी सी, ई पुस्तक में उलझे

अपना ज्ञान भूलकर, घूम रहे, ले कंधे बेताल

आॅन-लाईन शिक्षा बनी यहाँ जी का जंजाल

लैपटाॅप खरीदे नये-नये, मोबाईल एंड््रायड्

गूगल बिन ज्ञान अधूरा यह ले अब तू जान

गुरुओं ने लिंक दिये, नैट ने ले लिए प्राण

रोज़-रोज़ चार्ज कराओ, बिल ने ले ली जान

 

सपने अपने - अपने सपने

रेत के घर बनाने की एक कोशिश तो ज़रूर करना।

आकाश पर कसीदे काढ़ने की एक कोशिश तो ज़रूर करना।

जितनी चादर हो उतने पैर फैलाकर तो सभी सो लेते हैं,

आकाश पैरों पर थाम एक बार सोने की कोशिश ज़रूर करना।

 

सौन्दर्य निरख मन हरषा

 पलभर में धूप निकलती, कभी बादल बरसें कण-कण।

धरा देखो महक रही, कलियां फूल बनीं, बहक रहा मन।

पल्लव झूम रहे, पंछी डाली-डाली घूम रहे, मन हरषा,

सौन्दर्य निरख, मन भी बहका, सब कहें इसे पागलपन।a

 

सुन्दर है संसार

जीवन में

बहुत कुछ अच्छा मिलता है,

तो बुरा भी।

आह्लादकारी पल मिलते हैं,

तो कष्टों को भी झेलना पड़ता है।

सफ़लता आंगन में

कुलांचे भरती है,

तो कभी असफ़लताएं

देहरी के भीतर पसरी रहती हैं।

छल और प्रेम

दोनों जीवन साथी हैं।

कभी मन में

डर-डर कर जीता है,

तो कभी साहस की सीढ़ियां

हिमालय लांघ जाती हैं।

जीवन में खट्टा-मीठा सब मिलता है,

बस चुनना पड़ता है।

और प्रकृति के अद्भुत रूप तो

पल-पल जीने का

संदेश दे जाते हैं,

बस समझने पड़ते हैं।

एक सौन्दर्य

हमारे भीतर है,

एक सौन्दर्य बाहर।

दोनों को एक साथ जीने में

सुन्दर है संसार।

कामना मेरी

और सुन्दर हो संसार।