हम मस्त हैं अपने ही बुने मकड़जाल में

जीवन में जरूरी है

किसी परिधि में सिमटना,

सीमाओं में बंधना।

और ये सीमाएं

हम स्वयं तय करें,

तय करें अपनी दूरियां,

अपनी दीवारें चुनें,

बनायें किले या ढहायें।

तुम कुछ भी सोचते रहो

कि फंस रहें हैं हम

अपने ही जाल में,

लेकिन सदा ऐसा नहीं होता।

जब हम

सबकी उपेक्षा कर

अपना सुरक्षा कवच

स्वयं बुनते हैं,

तो तकलीफ होती है,

कहानियां बुनी जाती हैं,

कथाएं सुनी जाती हैं।

कुछ भी कहो,

हम मस्त हैं

अपने ही बुने मकड़जाल में।