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मौन को शब्द दूं
शब्द को अर्थ
और अर्थ को अभिव्यक्ति
न जाने राहों में
कब, कौन
समझदार मिल जाये।
*-*-*-*
मौन को
मौन ही रखना।
किन्तु
मौन न बने
कभी डर का पर्याय।
चाहे
न तोड़ना मौन को
किन्तु
मौन की अभिव्यक्ति को
सार्थक बनाये रखना।
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पत्थरों में भगवान ढूंढते हैं
इंसान बनते नहीं,
पत्थर गढ़ते हैं,
भाव संवरते नहीं
पूजा करते हैं,
इंसानियत निभाते नहीं
निर्माण की बात करते हैं।
सिर ढकने को
छत दे सकते नहीं
आकाश छूती
मूर्तियों की बात करते हैं।
पत्थरों में भगवान
ढूंढते हैं
अपने भीतर की इंसानियत
को मारते हैं।
* * * *
अपने भीतर
एक विध्वंस करके देख।
कुछ पुराना तोड़
कुछ नया बनाकर देख।
इंसानियत को
इंसानियत से जोड़कर देख।
पतझड़ में सावन की आस कर।
बादलों में
सतरंगी आभा की तलाश कर।
झड़ते पत्तों में
नवीन पंखुरियों की आस देख।
कुछ आप बदल
कुछ दूसरों से आस देख।
बस एक बार
अपने भीतर की कुण्ठाओं,
वर्जनाओं, मृत मान्यताओं को
तोड़ दे
समय की पुकार सुन
अपने को बदलने का साहस गुन।
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हर दिन जीवन
जीवन का हर पल
अनमोल हुआ करता है
कुछ कल मिला था,
कुछ आज चला है
न जाने कितने अच्छे पल
भवितव्य में छिपे बैठे हैं
बस आस बनाये रखना
हर दिन खुशियां लाये जीवन में
एक आस बनाये रखना
मत सोचना कभी
कि जीवन घटता है।
बात यही कि
हर दिन जीवन
एक और,
एक और दिन का
सुख देता है।
फूलों में, कलियों में,
कल-कल बहती नदियों में
एक मधुर संगीत सुनाई देता है
प्रकृति का कण-कण
मधुर संगीत प्रवाहित करता है।
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कृष्ण ने किया था शंखनाद
महाभारत की कथा
पढ़कर ज्ञात हुआ था,
शंखनाद से कृष्ण ने किया था
एक ऐसे युद्ध का उद्घोष,
जिसमें करोड़ों लोग मरे थे,
एक पूरा युग उजड़ गया था।
अपनों ने अपनों को मारा था,
उजाड़े थे अपने ही घर,
लालसा, मोह, घृणा, द्वेष, षड्यन्त्र,
चाहत थी एक राजसत्ता की।
पूरी कथा
बार-बार पढ़ने के बाद भी
कभी समझ नहीं पाई
कि इस शंखनाद से
किसे क्या उपलब्धि हुई।
-
यह भी पढ़ा है,
कि शंखनाद की ध्वनि से,
ऐसे अदृश्य
जीवाणु भी नष्ट हो जाते हैं
जो यूं
कभी नष्ट नहीं किये जा सकते।
इसी कारण
मृत देह के साथ भी
किया जाता है शंखनाद।
-
शुभ अवसर पर भी
होता है शंखनाद
क्योंकि
जीवाणु तो
हर जगह पाये जाते हैं।
फिर यह तो
काल की गति बताती है,
कि वह शुभ रहा अथवा अशुभ।
-
एक शंखनाद
हमारे भीतर भी होता है।
नहीं सुनते हम उसकी ध्वनियां।
एक आर्तनाद गूंजता है और
बढ़ते हैं एक नये महाभारत की ओेर।
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कृष्ण आजा चक्र अपना लेकर
आज तेरी राधा आई है तेरे पास बस एक याचना लेकर
जब भी धरा पर बढ़ा अत्याचार तू आया है अवतार लेकर
काल कुछ लम्बा ही खिंच गया है हे कृष्ण ! अबकी बार
आज इस धरा पर तेरी है ज़रूरत, आजा चक्र अपना लेकर
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पाप की हो या पुण्य की गठरी
पाप की हो या
पुण्य की गठरी
तो भारी होती है।
कौन करेगा निर्णय
पाप क्या
या पुण्य क्या!
तू मेरे गिनता
मैं तेरे गिनती,
कल के डर से
काल के डर से
सहम-सहम
चलते जीवन में।
इहलोक यहीं
परलोक यहीं
सब लोक यहीं
यहीं फ़ैसला कर लें।
कल किसने देखा
चल आज यहीं
सब भूल-भुलाकर
जीवन
जी भर जी लें।
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अब कोई हमसफ़र नहीं होता
प्रार्थनाओं का अब कोई असर नहीं होता।
कामनाओं का अब कोई
सफ़र नहीं होता।
सबकी अपनी-अपनी मंज़िलें हैं ,
और अपने हैं रास्ते।
सरे राह चलते
अब कोई हमसफ़र नहीं होता।
देखते-परखते निकल जाती है
ज़िन्दगी सारी,
साथ-साथ रहकर भी ,
अब कोई बसर नहीं होता।
भरोसे की तो हम
अब बात ही नहीं करते,
अपने और परायों में
अब कुछ अलग महसूस नहीं होता।
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उदित होते सूर्य से पूछा मैंने
उदित होते सूर्य से पूछा मैंने, जब अस्त होना है तो ही आया क्यों
लौटते चांद-तारों की ओर देख, सूरज मन ही मन मुस्काया क्यों
कभी बादल बरसे, इन्द्रधनुष निखरा, रंगीनियां बिखरीं, मन बहका
परिवर्तन ही जीवन है, यह जानकर भी तुम्हारा मन भरमाया क्यों
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कहां समझ पाता है कोई
न आकाश की समझ
न धरा की,
अक्सर नहीं दिखाई देता
किनारा कोई।
हर साल,बार-बार,
जिन्दगी यूं भी तिरती है,
कहां समझ पाता है कोई।
सुना है दुनिया बहुत बड़ी है,
देखते हैं, पानी पर रेंगती
हमारी इस दुनिया को,
कहां मिल पाता है किनारा कोई।
सुना है,
आकाश से निहारते हैं हमें,
अट्टालिकाओं से जांचते हैं
इस जल- प्रलय को।
जब पानी उतर जाता है
तब बताता है कोई।
विमानों में उड़ते
देख लेते हैं गहराई तक
कितने डूबे, कितने तिर रहे,
फिर वहीं से घोषणाएं करते हैं
नहीं मरेगा
भूखा या डूबकर कोई।
पानी में रहकर
तरसते हैं दो घूंट पानी के लिए,
कब तक
हमारा तमाशा बनाएगा हर कोई।
अब न दिखाना किसी घर का सपना,
न फेंकना आकाश से
रोटियों के टुकड़े,
जी रहे हैं, अपने हाल में
आप ही जी लेंगे हम
न दिखाना अब
दया हम पर आप में से कोई।
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उनकी यादों में
क्यों हमारे दिन सभी मुट्ठियों से फ़िसल जायेंगे
उनकी यादों में जीयेंगे, उनकी यादों में मर जायेंगे
मरने की बात न करना यारो, जीने की बात करें
दिल के आशियाने में उनकी एक तस्वीर सजायेंगे।