फिर उनके कंधों पर बंहगी ढूंढते हैं

अपनी संतान के कंधों पर

हमने लाद दिये हैं

अपने अधूरे सपने,

अपनी आशाएं –आकांक्षाएं,

उनके मन-मस्तिष्क पर

ठोंक कर बैठे हैं

अपनी महत्वाकांक्षाओं की कीलें,

उनकी इच्छाओं-अनच्छिाओं पर

बनकर बैठे हैं हम प्रहरी।

आगे, आगे और आगे

निकल लें।

जितनी दूर निकल सकें,

निकल लें।

सबसे आगे, और  आगे, और आगे।

धरा को छोड़

आकाश को निगल ले।

और वे भागने लगे हैं

हमसे दूर, बहुत दूर ।

हम स्वयं ही नहीं जानते

उनके कंधों पर कितना बोझ डालकर

किस राह पर उन्हें ढकेल रहे हैं हम ।

धरा के रास्‍ते बन्‍द कर दिये हैं

उनके लिए।

बस पकड़ना है तो

आकाश ही आकाश है।

फिर शिकायत करते हैं

कुछ नहीं कर रही नई पीढ़ी

हमारे लिए ।

फिर उनके कंधों पर बंहगी ढूंढते हैं !!!
 

कमाल है !!!!