सोचने का वक्त ही कहां मिला

ज़िन्दगी की खरीदारी में मोल-भाव कभी कर न पाई

तराजू लेकर बैठी रही खरीद-फरोख्त कभी कर न पाई

कहां लाभ, कहां हानि, सोचने का वक्त ही कहां मिला

इसी उधेड़बुन में उलझी जिन्दगी कभी सम्हल न पाई