हम इंसान अजीब से असमंजस में रहते हैं

पुष्प कभी अकेले नहीं महकते,

बागवान साथ होता है।

पल्लव कभी यूं ही नहीं बहकते,

हवाएं साथ देती हैं।

चांद, तारों संग रात्रि-गमन करता है,

बादलों की घटाओं संग

बिजली कड़कती है,

तो बूंदें भी बरसती हैं।

धूप संग-संग छाया चलती है।

 

प्रकृति किसी को

अकेलेपन से जूझने नहीं देती।

 

लेकिन हम इंसान

अजीब से असमंजस में रहते हैं।

अपनों के बीच

एकाकीपन से जूझते हैं,

और अकेले में

सहारों की तलाश करने निकल पड़ते हैं।