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ताल-तलैया, पोखर भैया,
मैं क्या जानू्ं
क्या होते सरोवर मैया।
बस नाम सुना है
न देखें हमने भैया।
गड्ढे देखे, नाले देखे,
सड़कों पर बहते परनाले देखे,
छप-छपाछप गाड़ी देखी।
सड़कों पर आबादी देखी।
-
जब-जब झड़ी लगे,
डाली-डाली बहके।
कुहुक-कुहुक बोले चिरैया ।
रंग निखरें मन महके।
मस्त समां है,
पर लोगन को लगता डर है भैया।
सड़कों पर होगा
पोखर भैया, ताल-तलैया
हमने बोला मैया,
अब तो हम भी देखेंगे ,
कैसे होते हैं ताल-तलैया,
और सरोवर, पोखर भैया ।
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आदान-प्रदान का युग है
जरूरी नहीं कि शिखर पर बैठा हर इंसान उत्थान का प्रतीक को
जाने कौन-सी सीढ़ियां चढ़ा, कहां पग धरा, अनुगमन की लीक हो
पद, पदक, सम्मान, उपाधियाँ सदा उपलब्धियों की प्रतीक नहीं होते
आदान-प्रदान का युग है, ले-देकर काम चल रहा, यही सीख हो
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चाहतों का अम्बार दबा है
मन के भीतर मन है, मन के भीतर एक और मन
खोल खोल कर देखती हूं कितने ही तो हो गये मन
इस मन के किसी गह्वर में चाहतों का अम्बार दबा है
किसको रखूं, किसको छोड़ूं नहीं बतलाता है रे मन।
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इंसानियत के मीत
अपने भीतर झांककर इंसानियत को जीत
कर सके तो कर अपनी हैवानियत पर जीत
पूजा, अर्चना, आराधना का अर्थ है बस यही
कर ऐसे कर्म बनें सब इंसानियत के मीत
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मैं भी तो
यहां
हर आदमी की ज़ुबान
एक धारदार छुरी है
जब चाहे, जहां चाहे,
छीलने लगती है
कभी कुरेदने तो कभी काटने।
देखने में तुम्हें लगेगी
एकदम अपनी सी।
विनम्र, झुकती, लचीली
तुम्हारे पक्ष में।
लेकिन तुम देर से समझ पाते हो
कि सांप की गति भी
कुछ इसी तरह की होती है।
उसकी फुंकार भी
आकर्षित करती है तुम्हें
किसी मौके पर।
उसका रंग रूप, उसका नृत्य _
बीन की धुन पर उसका झूमना
तुम्हें मोहने लगता है।
तुम उसे दूध पिलाने लगते हो
तो कभी देवता समझ कर
उसकी पूजा करते हो।
यह जानते हुए भी
कि मौका मिलते ही
वह तुम्हें काट डालेगा।
और तुम भी
सांप पाल लेते हो
अपनी पिटारी में।
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सरकार यहां पर सोती है
पत्थरों को पूजते हैं, इंसानियत सड़कों पर रोती है।
बस मन्दिर खुलवा दो, मौत सड़कों पर होती है।
मेहनतकश मज़दूरों को देख-देखकर दिल दहला है।
चुप रहना, शोर न करना, सरकार यहां पर सोती है।
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कोई बात ही नहीं
आज तो कोई बात ही नहीं है बताने के लिए
बस यूँ ही लिख रहे हैं कुछ जताने के लिए
दर्दे-दिल की बात तो अब हम करते ही नहीं
वे झट से आँसू बहाने लगते हैं दिखाने के लिए।
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असली-नकली की पहचान कहाँ
पीतल में सोने से ज़्यादा चमक आने लगी है
सत्य पर छल-कपट की परत चढ़ने लगी है
असली-नकली की पहचान कहाँ रह गई अब
बस जोड़-तोड़ से अब ज़िन्दगी चलने लगी है।
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गरीबी हटाओ देश बढ़ाओ
पिछले बहत्तर साल से
देश में
योजनाओं की भरमार है
धन अपार है।
मन्दिर-मस्जिद की लड़ाई में
धन की भरमार है।
चुनावों में अरबों-खरबों लुट गये
वादों की, इरादों की ,
किस्से-कहानियों की दरकार है।
खेलों के मैदान पर
अरबों-खरबों का
खिलवाड़ है।
रोज़ पढ़ती हूं अखबार
देर-देर तक सुनती हूं समाचार।
गरीबी हटेगी, गरीबी हटेगी
सुनते-सुनते सालों निकल गये।
सुना है देश
विकासशील से विकसित देश
बनने जा रहा है।
किन्तु अब भी
गरीब और गरीबी के नाम पर
खूब बिकते हैं वादे।
वातानूकूलित भवनों में
बन्द बोतलों का पानी पीकर
काजू-मूंगफ़ली टूंगकर
गरीबी की बात करते हैं।
किसकी गरीबी,
किसके लिए योजनाएं
और किसे घर
आज तक पता नहीं लग पाया।
किसके खुले खाते
और किसे मिली सहायता
आज तक कोई बता नहीं पाया।
फिर वे
अपनी गरीबी का प्रचार करते हैं।
हम उनकी फ़कीरी से प्रभावित
बस उनकी ही बात करते हैं।
और इस चित्र को देखकर
आहें भरते हैं।
क्योंकि न वे कुछ करते हैं।
और न हम कुछ करते हैं।
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नहीं करूंगी इंतज़ार
मैं नहीं करूंगी
इंतज़ार तेरा कयामत तक।
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कयामत की बात
नहीं करती मैं।
कयामत होने का
इंतज़ार नहीं करती मैं।
यह ज़िन्दगी
बड़ी हसीन है।
इसलिए
बात करती हूं
ज़िन्दगी की।
सपनों की।
अपनों की।
पल-पल की
खुशियों की।
मिलन की आस में
जीती हूं,
इंतज़ार की घड़ियों में
कोई आनन्द
नहीं मिलता है मुझे।
.
आना है तो आ,
नहीं तो
जहां जाना है वहां जा।
मैं नहीं करूंगी
इंतज़ार तेरा कयामत तक।
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धरा पर उतर
चांद को छू ले
एक बार,
फिर धरा पर उतर,
पांव रख।
आज मैं साथ तेरे
कल अकेले
तुझे आप ही
सारी सीढि़यां नापनी होंगी।
जीवन में सीढि़यां चढ़
सहज-सहज
चांद आप ही
तेरे लिए
धरा पर उतर आयेगा।