उदासी में उजास

तितली फूल-फूल उड़ रही थी

मन में खुशियां भर रही थी।

भंवरे अब दिखते नहीं

कल्पनाओं में उनकी गुनगुन सुन रही थी।

सूरज की किरणों की रोशनी

उदासी में उजास भर रही थी।

और क्या चाहिए ज़िन्दगी में

रात के अंधेरों में नहीं उलझती मैं

चांद-तारों से बातें कर रही थी।

क्यों यह सोचकर उदास हैं

कि कैसे कटेगी ज़िन्दगी

आंख मूंद, कुछ सपने देख

कुछ अपने देख

हंसी-खुशी बीतेगी ज़िन्दगी।