रिश्तों की सीवन
रिश्तों की सीवन
बड़ी कच्ची होती है,
छोटी-छोटी खींच-तान में
उधड़़-उधड़ जाती है।
दुबारा सिलो
तो टांके टूटते हैं
धागे बिखरते हैं,
रंग मेल नहीं खाते।
कितनी भी चाहत कर लो
फिर
वह बात कभी नहीं बन पाती
कभी भी नहीं।
रिश्तों की सीवन
बड़ी कच्ची होती है,
छोटी-छोटी खींच-तान में
उधड़़-उधड़ जाती है।
दुबारा सिलो
तो टांके टूटते हैं
धागे बिखरते हैं,
रंग मेल नहीं खाते।
कितनी भी चाहत कर लो
फिर
वह बात कभी नहीं बन पाती
कभी भी नहीं।