नियति

कहते हैं

कमल

कीचड़ में खिलता है।

कितना सच है पता नहीं।

मेरे लिए

बस इतना ही बहुत है

कि खिलता है।

जीवन में खिलना

और खिलकर मुरझा जाना

यही नियति है।

किन्तु खिलकर

जीवन में रस भर जाना

नियति नहीं

स्वभाव है।