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दिल में झांक कर देखा होता तो आज यह हाल न होता
काट कर रख दिये सारे अरमान जग यह बेहाल न होता
यह मिठास तो चुक जायेगी मौसम बदलने के साथ ही
प्यार का रस घोला होता तो आज यह हाल न होता
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इतिहास हमारा
इतिहास हमारा स्वर्णिम था, या था समस्याओं का काल
किसने देखा, किसने जाना, बस पढ़ा-सुना कुछ हाल
गल्प कथाओं से भरा, सत्य है या कल्पना कौन कहे
यूँ ही लड़ते-फिरते हैं, निकाल रहे बस बाल की खाल
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संसार है घर-द्वार
अपनेपन, सम्बन्धों का आधार है घर-द्वार
रिश्तों का, विश्वास का संसार है घर-द्वार
जीवन बीत जाता है संवारने-सजाने में
सुख-दुख के सामंजस्य का आधार है घर-द्वार
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द्वार खुले हैं तेरे लिए
विदा तो करना बेटी को किन्तु कभी अलविदा न कहना
समाज की झूठी रीतियों के लिए बेटी को न पड़े कुछ सहना
खीलें फेंकी थीं पीठ पीछे छूट गया मेरा मायका सदा के लिए
हर घड़ी द्वार खुले हैं तेरे लिए,उसे कहना,इस विश्वास में रहना
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किसके हाथ में डोर है
नगर नगर में शोर है यहां गली-गली में चोर है
मुंह ढककर बैठे हैं सारे, देखो अन्याय यह घोर है
समझौते की बात हुई, कोई किसी का नाम न ले
धरने पर बैठै हैं सारे, ढूंढों किसके हाथ में डोर है
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व्यवसाय बनी है शिक्षा
शिक्षक का नअब मान रहा।
छात्र का न अब प्रतिदान रहा।
व्यवसाय बनी है शिक्षा अब,
व्यापार बना, यह काम रहा।
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समय आत्ममंथन का
पता नहीं यह कैसे हो गया ?
मुझे, अपने पैरों के नीचे की ज़मीन की
फ़िसलन का पता ही न लगा
और आकाश की उंचाई का अनुमान।
बस एक कल्पना भर थी
एक आकांक्षा, एक चाहत।
और मैंने छलांग लगा दी ।
आकाश कुछ ज़्यादा ही उंचा निकला
और ज़मीन कुछ ज़्यादा ही चिकनी।
मैं थी बेखबर, आकाश पकड़ न सकी
और पैर ज़मीन पर टिके नहीं।
दु:ख गिरने का नहीं
क्षोभ चोट लगने का नहीं।
पीड़ा हारने की नहीं।
ये सब तो सहज परिणाम हैं,
अनुभव की खान हैं
किसी की हिम्मत के।
समय आत्ममंथन का।
कितना कठिन होता है
अपने आप से पूछना।
और कितना सहज होता है
किसी को गिरते देखना
उस पर खिलखिलाना
और ताली बजाना।
कितना आसान होता है
चारों ओर भीड़ का मजमा लगाना।
ढोल बजा बजा कर दुनिया को बताना।
जख़्मों को कुरेद कुरेद कर दिखाना।
और कितना मुश्किल होता है
किसी के जख़्मों की तह तक जाना
उसकी राह में पड़े पत्थरों को हटाना
और सही मौके पर सही राह बताना।
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बहुत बाद समझ आया
कितनी बार ऐसा हुआ है
कि समय मेरी मुट्ठी में था
और मैं उसे दुनिया भर में
तलाश कर रही थी।
मंजिल मेरे सामने थी
और मैं बार-बार
पीछे मुड़-मुड़कर भांप रही थी।
समस्याएं बाहर थीं
और समाधान भीतर,
और मैं
आकाश-पाताल नाप रही थी।
बहुत बाद समझ आया,
कभी-कभी,
प्रयास छोड़कर
प्रतीक्षा कर लेनी चाहिए,
भटकाव छोड़
थोड़ा विश्राम कर लेना चाहिए।
तलाश छोड़
विषय बदल लेना चाहिए।
जीवन की आधी समस्याएं
तो यूं ही सुलझ जायेंगीं।
बस मिलते रहिए मुझसे,
ऐसे परामर्श का
मैं कोई शुल्क नहीं लेती।
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तीर खोज रही मैं
गहरे सागर के अंतस में
तीर खोज रही मैं।
ठहरा-ठहरा-सा सागर है,
ठिठका-ठिठका-सा जल।
कुछ परछाईयां झलक रहीं,
नीरवता में डूबा हर पल।
-
चकित हूं मैं,
कैसे द्युतिमान जल है,
लहरें आलोकित हो रहीं,
तुम संग हो मेरे
क्या यह तुम्हारा अक्स है?
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तल से अतल तक
तल से अतल तक
धरा से गगन तक
विस्तार है मेरा
काल के गाल में
टूटते हैं
बिखरते हैं
अकेलेपन से जूझते हैं
फिर संवरते हैं।
बस
इसी आस में
जीवन संवरते हैं !!!!!
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बादल राग सुनाने के लिए
बादल राग सुनाने के लिए
योजनाओं का
अम्बार लिए बैठे हैं हम।
पानी पर
तकरार किये बैठै हैं हम।
गर्मियों में
पानी के
ताल लिए बैठे हैं हम।
वातानुकूलित भवनों में
पानी की
बौछार लिए बैठे हैं हम।
सूखी धरती के
चिन्तन के लिए
उधार लिए बैठे हैं हम।
कभी पांच सौ
कभी दो हज़ार
तो कभी
छः हज़ारी के नाम पर
मत-गणना किये बैठे हैं हम।
हर रोज़
नये आंकड़े
जारी करने के लिए
मीडिया को साधे बैठे हैं हम।
और कुछ न हो सके
तो तानसेन को
बादल राग सुनाने के लिए
पुकारने बैठे हैं हम।