Share Me
ज़िन्दगियां
कुछ शब्दों में बंधकर
रह जाती हैं,
बंधक बन जाती हैं,
फिर वे तीन हो
या तेरह
कोई फ़र्क नहीं पड़ता।
बात कानून की नहीं
मन की है, और शायद सोच की।
कानून
कहां-कहां, किस-किसके
घर जायेगा
देखने के लिए
कि कुछ और शब्दों से
या फिर बिना शब्दों के भी
आहत होती हैं, घातक होती हैं।
परदे
आज भी पड़े हैं
चेहरों पर, सोच पर, नज़र पर
कब उतरेंगे, कैसे उतरेंगे
कितनी सदियां लग जाती हैं,
केवल एक भाव बदलने के लिए।
और जब तक वह बदलता है
टूटता है,
कुछ नया जुड़ जाता है
और हमें फिर खड़ा होना पड़ता है
एक नई लड़ाई के लिए
सदियों-सदियों तक।
Share Me
Write a comment
More Articles
धूप ये अठखेलियां हर रोज़ करती है
पुरानी यादें यूं तो मन उदास करती हैं
पर जब कुछ सुनहरे पल तिरते हैं
मन में नये भाव खिलते हैं
कोहरे में धुंधलाती रोशनियां
चमकने लगती हैं
कुछ बूंदे तिरती हैं
झुके-झुके पल्लवों पर
आकाश में नीलिमा तिरती है
फूल लेने लगते हैं अंगडाईयां
मन में कहीं आस जगती है
धूप ये अठखेलियां हर रोज़ करती है
Share Me
नहीं बोलती नहीं बोलती
नहीं बोलती नहीं बोलती ,
जा जा अब मैं नहीं बोलती,
जब देखो सब मुझको गुस्सा करते।
दादी कहती छोरी है री,
कम बोला कर कम बोला कर।
मां कहती है पढ़ ले पढ़ ले।
भाई बोला छोटा हूं तो क्या,
तू लड़की है मैं लड़का।
मैं तेरा रक्षक।
क्या करना है मुझसे पूछ।
क्या कहना है मुझसे पूछ।
न कर बकबक न कर झकझक।
पापा कहते दुनिया बुरी,
सम्हलकर रहना ,
सोच-समझकर कहना,
रखना ज़बान छोटी ।
दिन भर चिडि़या सी चींचीं करती।
कोयल कू कू कू कू करती।
कौआ कां कां कां कां करता।
टामी भौं भौं भौं भौं करता।
उनको कोई कुछ नहीं कहता।
मुझको ही सब डांट पिलाते।
मैं पेड़ पर चढ़ जाउंगी।
चिडि़या संग रोटी खाउंगी।
वहीं कहीं सो जाउंगी।
फिर मुझसे मिलने आना,
गीत मधुर सुनाउंगी।
Share Me
प्रण का भाव हो
निभाने की हिम्मत हो
तभी प्रण करना कभी।
हर मन आहत होता है
जब प्रण पूरा नहीं करते कभी ।
कोई ज़रूरी नहीं
कि प्राण ही दांव पर लगाना,
प्रण का भाव हो,
जीवन की
छोटी-छोटी बातों के भाव में भी
मन बंधता है, जुड़ता है,
टूटता है कभी ।
-
जीवन में वादों का, इरादों का
कायदों का
मन सोचता है सभी।
-
चाहे न करना प्रण कभी,
बस छोटी-छोटी बातों से,
भाव जता देना कभी ।
Share Me
चलो, आज बेभाव अपनापन बांटते हैं
किसी की प्यास बुझा सकें तो क्या बात है।
किसी को बस यूं ही अपना बना सकें तो क्या बात है।
जब रह रह कर मन उदास होता है,
तब बिना वजह खिलखिला सकें तो क्या बात है।
चलो आज उड़ती चिड़िया के पंख गिने,
जो काम कोई न कर सकता हो,
वही आज कर लें तो क्या बात है।
चलो, आज बेभाव अपनापन बांटते हैं,
किसी अपने को सच में अपना बना सकें तो क्या बात है।
Share Me
समय जब कटता नहीं
काम है नहीं कोई
इसलिए इधर की उधर
उधर की इधर
करने में लगे हैं हम आजकल ।
अपना नहीं,
औरों का चरित्र निहारने में
लगे हैं आजकल।
पांव धरा पर टिकते नहीं
आकाश को छूने की चाहत
करने लगे हैं हम आजकल।
समय जब कटता नहीं
हर किसी की बखिया उधेड़ने में
लगे रहते हैं हम आजकल।
और कुछ न हो तो
नई पीढ़ी को कोसने में
लगे हैं हम आजकल।
सुनाई देता नहीं, दिखाई देता नहीं
आवाज़ लड़खड़ाती है,
पर सारी दुनिया को
राह दिखाने में लगे हैं हम आजकल।
Share Me
भीड़-तन्त्र
आज दो किस्से हुए।
एक भीड़-तन्त्र स्वतन्त्र हुआ।
मीनारों पर चढ़ा आदमी
आज मस्त हुआ।
28 वर्ष में घुटनों पर चलता बच्चा
युवा हो जाता है,
अपने निर्णय आप लेने वाला।
लेकिन उस भीड़-तन्त्र को
कैसे समझें हम
जो 28 वर्ष पहले दोषी करार दी गई थी।
और आज पता लगा
कितनी निर्दोष थी वह।
हम हतप्रभ से
अभी समझने की कोशिश कर ही रहे थे,
कि ज्ञात हुआ
किसी खेत में
एक मीनार और तोड़ दी
किसी भीड़-तन्त्र ने।
जो एक लाश बनकर लौटी
और आधी रात को जला दी गई।
किसी और भीड़-तन्त्र से बचने के लिए।
28 वर्ष और प्रतीक्षा करनी पड़ेगी।
यह जानने के लिए
कि अपराधी कौन था,
भीड़-तन्त्र तो आते-जाते रहते हैं,
परिणाम कहां दे पाते हैं।
दूध की तरह उफ़नते हैं ,
और बह जाते हैं।
लेकिन कभी-कभी
रौंद भी दिये जाते हैं।
Share Me
लौट-लौटकर जीती हूं जीवन
चेहरे की रेखाओं को
नहीं गिनती मैं,
मन के दर्पण में
भाव परखती हूं।
आयु से
अपनी कामनाओं को
नहीं नापती मैं,
अधूरी छूटी कामनाओं को
पूरा करने के लिए
दर्पण में
राह तलाशती हूं मैं।
अपनी वह छाया
परखती हूं,
जिसके सपने देखे थे।
कितने सच्चे थे
कितने अपने थे,
कितने छूट गये
कितने मिट गये
दोहराती हूं मैं।
चेहरे की रेखाओं को
नहीं गिनती मैं,
अपनी आयु से
नहीं डरती मैं।
लौट-लौटकर
जीती हूं जीवन।
जीवन-रस पीती हूं।
क्योंकि
मैं रेखाएं नहीं गिनती,
मैं मरने से नहीं डरती।
Share Me
यादों के पृष्ठ सिलती रही
ज़िन्दगी,
मेरे लिए
यादों के पृष्ठ लिखती रही।
और मैं उन्हें
सबसे छुपाकर,
एक धागे में सिलती रही।
कुछ अनुभव थे,
कुछ उपदेश,
कुछ दिशा-निर्देश,
सालों का हिसाब-बेहिसाब,
कभी पढ़ती,
कभी बिखरती रही।
समय की आंधियों में
लिखावट मिट गई,
पृष्ठ जर्जर हुए,
यादें मिट गईं।
तब कहीं जाकर
मेरी ज़िन्दगी शुरू हुई।
Share Me
मोती बनीं सुन्दर
बूँदों का सागर है या सागर में बूँदें
छल-छल-छलक रहीं मदमाती बूँदें
सीपी में बन्द हुईं मोती बनीं सुन्दर
छू लें तो मानों डरकर भाग रही बूँदें
Share Me
दीप तले अंधेरा ढूंढते हैं हम
रोशनी की चकाचौंध में अक्सर अंधकार के भाव को भूल बैठते हैं हम
सूरज की दमक में अक्सर रात्रि के आगमन से मुंह मोड़ बैठते हैं हम
तम की आहट भर से बौखलाकर रोशनी के लिए हाथ जला बैठते हैं
ज्योति प्रज्वलित है, फिर भी दीप तले अंधेरा ही ढूंढने बैठते हैं हम