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जानती हूँ
बहुत-सी आदतें
तो ठीक नहीं मेरी
पर
कोई अफ़सोस नहीं होता मुझे।
दुनिया-भर की
अच्छाईयों का ठेका
मेरा ही तो नहीं।
कुछ तुम ही
बदल जाओ
मेरे लिए।
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आने वाला कल
अपने आज से परेशान हैं हम।
क्या उपलब्धियां हैं
हमारे पास अपने आज की,
जिन पर
गर्वोन्नत हो सकें हम।
और कहें
बदलेगा आने वाला कल।
.
कैसे बदलेगा
आने वाला कल,
.
डरे-डरे-से जीते हैं।
सच बोलने से कतराते हैं।
अन्याय का
विरोध करने से डरते हैं।
भ्रमजाल में जीते हैं -
आने वाला कल अच्छा होगा !
सही-गलत की
पहचान खो बैठे हैं हम,
बनी-बनाई लीक पर
चलने लगे हैं हम।
राहों को परखते नहीं।
बरसात में घर से निकलते नहीं।
बादलों को दोष देते हैं।
सूरज पर आरोप लगाते हैं,
चांद को घटते-बढ़ते देख
नाराज़ होते हैं।
और इस तरह
वास्तविकता से भागने का रास्ता
ढूंढ लेते हैं।
-
तो
कैसे बदलेगा आने वाला कल ?
क्योंकि
आज ही की तो
प्रतिच्छाया होता है
आने वाला कल।
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लौट-लौटकर जीती हूं जीवन
चेहरे की रेखाओं को
नहीं गिनती मैं,
मन के दर्पण में
भाव परखती हूं।
आयु से
अपनी कामनाओं को
नहीं नापती मैं,
अधूरी छूटी कामनाओं को
पूरा करने के लिए
दर्पण में
राह तलाशती हूं मैं।
अपनी वह छाया
परखती हूं,
जिसके सपने देखे थे।
कितने सच्चे थे
कितने अपने थे,
कितने छूट गये
कितने मिट गये
दोहराती हूं मैं।
चेहरे की रेखाओं को
नहीं गिनती मैं,
अपनी आयु से
नहीं डरती मैं।
लौट-लौटकर
जीती हूं जीवन।
जीवन-रस पीती हूं।
क्योंकि
मैं रेखाएं नहीं गिनती,
मैं मरने से नहीं डरती।
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हम खुश हैं जग खुश है
इस भीड़ भरे संसार में मुश्किल से मिलती है तन्हाई सखा
आ, ज़रा दो बातें कर लें,कल क्या हो,जाने कौन सखा
ये उजली धूप,समां सुहाना,हवा बासंती,हरा भरा उपवन
हम खुश हैं, जग खुश है, जीवन में और क्या चाहिए सखा
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रिश्तों का असमंजस
कुछ रिश्ते
फूलों की तरह होते हैं
और कुछ कांटों की तरह।
फूलों को सहेज लीजिए
कांटों को उखाड़ फेंकिए।
नहीं तो, बहुत
असमंजस की स्थिति
बनी रहती है।
किन्तु, कुछ कांटे
फूलों के रूप में आते हैं ,
और कुछ फूल
कांटों की तरह
दिखाई देते हैं।
और कभी कभी,
दोनों
साथ-साथ उलझे भी रहते हैं।
बड़ा मुश्किल होता है परखना।
पर परखना तो पड़ता ही है।
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बस प्यार किया जाता है
मन है कि
आकाश हुआ जाता है
विश्वास हुआ जाता है
तुम्हारे साथ
एक एहसास हुआ जाता है
घनघारे घटाओं में
यूं ही निराकार जिया जाता है
क्षणिक है यह रूप
भाव, पिघलेंगे
हवा बहेगी
सूरत, मिट जायेगी
तो क्या
मन में तो अंकित है इक रूप
बस,
उससे ही जिया जाता है
यूं ही, रहा जाता है
बस प्यार, किया जाता है
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स्वनियन्त्रण से ही मिटेगा भ्रष्टाचार
नित परखें हम आचार-विचार
औरों की सोच पर करते प्रहार
अपने भाव परखते नहीं हम कभी
स्वनियन्त्रण से ही मिटेगा भ्रष्टाचार
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झूठे मुखौटे मत चढ़ा
झूठे मुखौटे मत चढ़ा।
असली चेहरा दुनिया को दिखा।
मन के आक्रोश पर आवरण मत रख।
जो मन में है
उसे निडर भाव से प्रकट कर।
यहां डर से काम नहीं चलता।
वैसे भी हंसी चेहरे,
और चेहरे पर हंसी,
लोग ज़्यादा नहीं सह पाते।
इससे पहले
कि कोई उतारे तुम्हारा मुखौटा,
अपनी वास्तविकता में जीओ,
अपनी अच्छाईयों-बुराईयों को
समभाव से समझकर
जीवन का रस पीओे।
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मौसम के रूप समझ न आयें
कोहरा है या बादलों का घेरा, हम बनते पागल।
कब रिमझिम, कब खिलती धूप, हम बनते पागल।
मौसम हरदम नये-नये रंग दिखाता, हमें भरमाता,
मौसम के रूप समझ न आयें, हम बनते पागल।
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बिना बड़े सपनों के जीता हूं
कंधों पर तुम्हारे भी
बोझ है मेरे भी।
तुम्हारा बोझ
तुम्हारे कल के लिए है
एक डर के साथ ।
मेरा बोझ मेरे आज के लिए है
निडर।
तुम अपनों के, सपनों के
बोझ के तले जी रहे हो।
मैं नि:शंक।
डर का घेरा बुना है
तुम्हारे चारों ओर
इस बोझ को सही से
न उठा पाये तो
कल क्या होगा।
कल, आज और कल
मैं नहीं जानता।
बस केवल
आज के लिए जीता हूं
अपनों के लिए जीता हूं।
नहीं जानता कौन ठीक है
कौन नहीं।
पर बिना बड़े सपनों के जीता हूं
इसलिए रोज़
आराम की नींद सोता हूं।
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अपनी नज़र से देखने की एक कोशिश
मेरा एक रूप है, शायद !
मेरा एक स्वरूप है, शायद !
एक व्यक्तित्व है, शायद !
अपने-आपको,
अपने से बाहर,
अपनी नज़र से
देखने की,
एक कोशिश की मैंने।
आवरण हटाकर।
अपने आपको जानने की
कोशिश की मैंने।
मेरी आंखों के सामने
एक धुंधला चित्र
उभरकर आया,
मेरा ही था।
पर था
अनजाना, अनपहचाना।
जिसने मुझे समझाया,
तू ऐसी ही है,
ऐसी ही रहेगी,
और मुझे डराते हुए,
प्रवेश कर गया मेरे भीतर।
कभी-कभी
कितनी भी चाहत कर लें
कभी कुछ नहीं बदलता।
बदल भी नहीं सकता
जब इरादे ही कमज़ोर हों।