शुद्ध जल से आचमन कर ले मेरे मन

जल की धार सी बह रही है ज़िन्दगी

नित नई आस जगा रही है ज़िन्दगी

शुद्ध जल से आचमन कर ले मेरे मन

काल के गाल में समा रही है ज़िन्दगी

मन के आतंक के साये में

जिन्दगी

इतनी सरल सहज भी नहीं

कि जब चाहा

उठकर चहक लिए।

एक डर, एक खौफ़

के बीच घूमता है मन।

और यह डर

हर साये में है  रहता है अब।

ज़्यादा सुरक्षा में भी

असुरक्षा का

एहसास सालने लगा है अब।

संदेह की दीवारें, दरारें

बहुत बढ़ गई हैं।

अपने-पराये के बीच का भेद

अब टालने लगा है मन।

किस वेश में कौन मिलेगा

पहचान भूलता जा रहा है मन।

हाथ से हाथ मिलाकर

चलने का रास्ता भूलने लगे हैं

और अपनी अपनी राह

चलने लगे हैं हम।

और जब मन में पसरता है

अपने ही भीतर का आतंकवाद

तब अकेलापन सालता है मन।

आने वाली पीढ़ी को

अपनेपन, शांति, प्रेम, भाईचारे का

पाठ नहीं पढ़ाते हम।

सिखाते हैं उसे

जीवन में कैसे रहना है डर डर कर

अविश्वास, संदेह और बंद तालों में

उसे जीना सिखाते हैं हम।

मुठ्ठियां कस ली हैं

किसी से मिलने-मिलाने के लिए

हाथ नहीं बढ़ाते हैं हम।

बस हर समय

अपने ही मन के

आतंक के साये में जीते हें हम।

जिन्दगी का एक नया गीत

चलो

आज जिन्दगी का

एक नया गीत गुनगुनाएं।

न कोई बात हो

न हो कोई किस्सा

फिर भी अकारण ही मुस्कुराएं

ठहाके लगाएं।

न कोई लय हो न धुन

न करें सरगम की चिन्ता

ताल सब बिखर जायें।

कुछ बेसुरी सी लय लेकर

सारी धुनें बदल कर

कुछ बेसुरे से राग नये बनाएं।

अलंकारों को बेसुध कर

तान को बेसुरा गायें।

न कोई ताल हो न कोई सरगम

मंद्र से तार तक

हर सप्तक की धज्जियां उड़ाएं

तानों को खींच खींच कर

पुरज़ोर लड़ाएं

तारों की झंकार, ढोलक की थाप

तबले की धमक, घुंघुरूओं की छनक

बेवजह खनकाएं।

मीठे में नमकीन और नमकीन में

कुछ मीठा बनायें।

चाहने वालों को

ढेर सी मिर्ची खिलाएं।

दिन भर सोयें

और रात को सबको जगाएं।

पतंग के बहाने छत पर चढ़ जाएं

इधर-उधर कुछ पेंच लड़ाएं

कभी डोरी खींचे

तो कभी ढिलकाएं।

और, इस आंख का क्या करें

आप ही बताएं।

और हम हल नहीं खोजते

बाधाएं-वर्जनाएं 
यूं ही बहुत हैं जीवन में।
पहले तो राहों में 
कांटे बिछाये जाते थे
और अब देखो
जाल बिछाये जा रहे हैं
मकड़जाल बुने जा रहे हैं

दीवारें चुनी जा रही हैं
बाढ़ बांधी जा रही है
कांटों में कांटे उलझाये जा रहे हैं।
कहीं हाथ न बढ़ा लें
कोई आस न बुन लें
कोई विश्वास न बांध लें
कहीं दिल न लगा लें
कहीं राहों में फूल न बिछा दें

ये दीवारें, बाधाएं, बाढ़, मकड़जाल,
कांटों के नहीं अविश्वास के है
हमारे, आपके, सबके भीतर।
चुभते हैं,टीस देते हैं,नासूर बनते हैं
खून रिसता है
अपना या किसी और का।

और हम 
चिन्तित नहीं होते
हल नहीं खोजते,
आनन्दित होते हैं।

पीड़ा की भी
एक आदत हो जाती है
फिर वह
अपनी हो अथवा परायी।

जिन्दगी कोई तकरार नहीं है

जिन्दगी गणित का कोई दो दूनी चार नहीं है

गुणा-भाग अगर कभी छूट गया तो हार नहीं है

कभी धूप है तो कभी छांव और कभी है आंधी

सुख-दुख में बीतेगी, जिन्दगी कोई तकरार नहीं है

यूं ही पार उतरना है

नैया का क्या करना है, अब तो यूं ही पार उतरना है

कुछ डूबेंगे, कुछ तैरेंगे, सब अपनी हिम्मत से करना है

नहीं खड़ा है अब खेवट कोई, नैया पार लगाने को

जान लिया है सब दिया-लिया इस जीवन में ही भरना है

जिन्दगी की डगर

जिन्दगी की डगर यूं ही घुमावदार होती हैं

कभी सुख, कभी दुख की जमा-गुणा होती है

हर राह लेकर ही जाती है धरा से गगन तक

बस कदम-दर-कदम बढ़ाये रखने की ज़रूरत होती है

ज़िन्दगी बहुत झूले झुलाती है

ज़िन्दगी बहुत झूले झुलाती है

कभी आगे,कभी पीछे ले जाती है

जोश में कभी ज़्यादा उंचाई ले लें

तो सीधे धराशायी भी कर जाती है

आंखें फ़ेर लीं

अपनों से अपनेपन की चाह में

जीवन-भर लगे रहे हम राह में

जब जिसने चाहा आंखें फ़ेर लीं

कहीं कोई नहीं था हमारी परवाह में

सुख-दुख तो आने-जाने हैं

धरा पर मधुर-मधुर जीवन की महक का अनुभव करती हूं

पुष्प कहीं भी हों, अपने जीवन को उनसे सुरभित करती हूं

सुख-दुख तो आने-जाने  हैं, फिर आशा-निराशा क्यों

कुछ बिगड़ा है तो बनेगा भी, इस भाव को अनुभव करती हूं

 

‘गर कांटे न होते

इतना न याद करते गुलाब को,  गर कांटे न होते

न सुहाती मुहब्बत गर बिछड़ने के अफ़साने न होते

गर आंसू न होते तो मुस्कुराहट की बात कौन करना

कौन स्मरण करता यहां गर भूलने के बहाने न होते

 

खींच-तान में मन उलझा रहता है

आशाओं का संसार बसा है, मन आतुर रहता है

यह भी ले ले, वह भी ले ले, पल-पल ये ही कहता है

क्या छोड़ें, क्या लेंगे, और क्या मिलना है किसे पता

बस इसी खींच-तान में जीवन-भर मन उलझा रहता है

जब तक चिल्लाओ  न, कोई सुनता नहीं

अब शांत रहने से यहां कुछ मिलता नहीं

जब तक चिल्लाओ  न, कोई सुनता नहीं

सब गूंगे-बहरे-अंधे अजनबी हो गये हैं यहां

दो की चार न सुनाओ जब तक, काम बनता नहीं

पत्थरों में भगवान ढूंढते हैं

इंसान बनते नहीं,

पत्थर गढ़ते हैं,

भाव संवरते नहीं

पूजा करते हैं,

इंसानियत निभाते नहीं

निर्माण की बात करते हैं।

सिर ढकने को

छत दे सकते नहीं

आकाश छूती

मूर्तियों की बात करते हैं।

पत्थरों में भगवान

ढूंढते हैं

अपने भीतर की इंसानियत

को मारते हैं।

*  *  *  *

अपने भीतर

एक विध्वंस करके देख।

कुछ पुराना तोड़

कुछ नया बनाकर देख।

इंसानियत को

इंसानियत से जोड़कर देख।

पतझड़ में सावन की आस कर।

बादलों में

सतरंगी आभा की तलाश कर।

झड़ते पत्तों में

नवीन पंखुरियों की आस देख।

कुछ आप बदल

कुछ दूसरों से आस देख।

बस एक बार

अपने भीतर की कुण्ठाओं,

वर्जनाओं, मृत मान्यताओं को

तोड़ दे

समय की पुकार सुन

अपने को बदलने का साहस गुन।

बस ! हार मत मानना

कहते हैं

धरती सोना उगलती है

ये बात वही जानता है

जिसके परिश्रम का स्वेद

धरा ने चखा  हो।

गेहूं की लहलहाती बालियां

आकर्षित करती हैं,

सौन्दर्य प्रदर्शित करती हैं,

झूमती हैं, पुकारती हैं

जीवन का सार समझाती हैं ।

पता नहीं कल क्या होगा

मौसम बदलेगा

सोना घर आयेगा

या फिर मिट्टी हो जायेगा

कौन जाने ।

किन्तु

कृषक फिर उठ खड़ा होगा

अपने परिश्रम के स्वेद से

धरा को सींचने के लिए

बस ! हार मत मानना

फल तो मिलकर ही रहेगा

धरा यही समझाती हैं ।

आनन्द के कुछ पल

संगीत के स्वरों में कुछ रंग ढलते हैं
मनमीत के संग जीवन के पल संवरते हैं
ढोल की थाप पर तो नाचती है दुनिया
हम आनन्द के कुछ पल सृजित करते हैं।



 

हिम्मतों का सफ़र है ज़िन्दगी

हिम्मतों का सफ़र है ज़िन्दगी।

राहों में खतरा है ज़िन्दगी।

पर्वतों-सी बाधाएं झेलती है ज़िन्दगी।

साहस और श्रम का नाम है ज़िन्दगी।

कहते हैं जहां चाह वहां राह,

यह बात यहां बताती है ज़िन्दगी।

कहीं गहरी खाई और कहीं

सिर पर पहाड़-सी समस्याओं से

डराती है ज़िन्दगी।

राह देना

और सही राह लेना

समझाती है ज़िन्दगी।

चलना सदा सम्हल कर

यह समझाती है जिन्दगी।

एक गलत मोड़

एक अन्त का संकेत

दे जाती है ज़िन्दगी।

जीवन के रंग

द्वार पर आहट हुई,

कुछ रंग खड़े थे

कुछ रंग उदास-से पड़े थे।

मैंने पूछा

कहां रहे पूरे साल ?

बोले,

हम तो यहीं थे

तुम्हारे आस-पास।

बस तुम ही

तारीखें गिनते हो,

दिन परखते हो,

तब खुशियां मनाते हो

मानों प्रायोजित-सी

हर दिन होली-सा देखो

हर रात दीपावली जगमगाओ

जीवन में रंगों की आहट पकड़ो।

हां, जीवन के रंग बहुत हैं

कभी ग़म, कभी खुशी

के संग बहुत हैं,

पर ये आना-जाना तो लगा रहेगा

बस जीवन में

रंगों की हर आहट  पकड़ो।

हर दिन होली-सा रंगीन मिलेगा

हर दिन जीवन का रंग खिलेगा।

बस

मन से रंगों की हर आहट पकड़ो।

 

पर मुझे चिड़िया से तो पूछना होगा

नन्हीं चिड़िया रोज़ उड़ान भरती है

क्षितिज पर छितराए रंगों से आकर्षित होकर।

पर इससे पहले

कि चिड़िया उन रंगों को छू ले

रंग छिन्न-भिन्न हो जाते हैं ।

फिर रंग भी छलावा-भर हैं

शायद, तभी तो रोज़ बदलते हैं अपना अर्थ।

उस दिन

सूरज आग का लाल गोला था।

फिर अचानक किसी के गोरे माथे पर

दमकती लाल बिन्दी सा हो गया।

शाम घिरते-घिरते बिखरते सिमटते रंग

बिन्दी लाल, खून लाल

रंग व्यंग्य से मुस्कुराते

हत्या के बाद सुराग न मिल पाने पर

छूटे अपराधी के समान।

 

आज वही लाल–पीले रंग

चूल्हे की आग हो गये हैं

जिसमें रोज़ रोटी पकती है

दूध उफ़नता है, चाय गिरती है,

गुस्सा भड़कता है

फिर कभी–कभी, औरत जलती है।

आकाश नीला है, देह के रंग से।

फिर सब शांत। आग चुप।

 

सफ़ेद चादर । लाश पर । आकाश पर ।

 

कभी कोई छोटी चिड़िया

अपनी चहचहाहट से

क्षितिज के रंगों को स्वर देने लगती है

खिलखिलाते हैं रंग।

बच्चे किलोल करते हैं,

संवरता है आकाश

बिखरती है गालों पर लालिमा

जिन्दगी की मुस्कुराहट।

 

तभी, कहीं विस्फ़ोट होता है

रंग चुप हो जाते हैं,

बच्चा भयभीत।

और क्षितिज कालिमा की ओर अग्रसर।

अन्धेरे का लाभ उठाकर

क्षितिज – सब दफ़ना देता है

सुबह फ़िर सामान्य।

 

पीला रंग कभी तो बसन्त लगता है,

मादकता भरा

और कभी बीमार चेहरा, भूख

भटका हुआ सूरज,

मुर्झाई उदासी, ठहरा ठण्डापन।

सुनहरा रंग, सुनहरा संसार बसाता है

फिर अनायास

क्षितिज के माथे पर

टूटने– बिखरने लगते हैं सितारे

सब देखते है, सब जानते हैं,

पर कोई कुछ नहीं बोलता।

सब चुप ! क्षितिज बहुत बड़ा है !

सब समेट लेगा।

हमें क्या पड़ी है।

इतना सब होने पर भी

चिड़िया रोज़ उड़ान भरती है।

पर मैं, अब

शेष रंगों की पहचान से

डर गई हूं

और पीछे हट गई हूं।

समझ नहीं पा रही हूं

कि चिड़िया की तरह

रोज़ उड़ान भरती रहूं

या फ़िर इन्हीं रंगों से

क्षितिज का इतिहास लिख डालूं

पर मुझे

चिड़िया से तो पूछना होगा।

 

 

ढोल की थाप पर

संगीत के स्वरों में कुछ रंग ढलते हैं

मनमीत के संग जीवन के पल संवरते हैं

ढोल की थाप पर तो नाचती है दुनिया

हम आनन्द के कुछ पल सृजित करते हैं।