दौड़ बनकर रह गई है जिन्दगी

शून्य से शतक तक की दौड़ बनकर रह गई है जिन्दगी

इससे आगे और क्या इस सोच में बह रही है जिन्दगी

औरऔर  मिलने की चाह में डर डर कर जीते हैं हम

एक से निन्यानवे तक भी आनन्द ले, कह रही है जिन्दगी