वसुधैव कुटुम्बकम्

एक आस हो, विश्वास हो, बस अपनेपन का भास हो

न दूरियां हो, न संदेह की दीवार, रिश्तों में उजास हो

जीवन जीने का सलीका ही हम शायद भूलने लगे हैं

नि:स्वार्थ, वसुधैव कुटुम्बकम् का एक तो प्रयास हो