ज़िन्दगी एक बेनाम शीर्षक

समय के साथ कथाएं इतिहास बनकर रह गईं

कुछ पढ़ी, कुछ अनपढ़ी धुंधली होती चली गईं

न अन्त मिला न आमुख रहा, अर्थ सब खो गये

बस ज़िन्दगी एक बेनाम शीर्षक बनकर रह गई

आशाओं का उगता सूरज

चिड़िया को पंख फैलाए नभ में उड़ते देखा

मुक्त गगन में आशाओं का उगता सूरज देखा

सूरज डूबेगा तो चंदा को भेजेगा राह दिखाने

तारों को दोनों के मध्य हमने विहंसते देखा

ज़िन्दगी मिली है आनन्द लीजिए

ज़िन्दगी मिली है आनन्द लीजिए, मौत की क्यों बात कीजिए

मन में कोई  भटकन हो तो आईये हमसे दो बात कीजिए

आंख खोलकर देखिए पग-पग पर खुशियां बिखरी पड़ी हैं

आपके हिस्से की बहुत हैं यहां, बस ज़रा सम्हाल कीजिए

इंसानियत को जीत

अपने भीतर झांककर इंसानियत को जीत

कर सके तो कर अपनी हैवानियत पर जीत

क्या करेगा किसी के गुण दोष देखकर

पूजा, अर्चना, आराधना का अर्थ है बस यही

कर ऐसे  कर्म बनें सब इंसानियत के मीत

जैसा सोचो वैसा स्वाद देती है जि़न्दगी

कभी अस्त–व्यस्त सी लगे है जि़न्दगी
कभी मस्त-मस्त सी लगे है जि़न्दगी
झर-पतझड़, कण्टक-सुमन सब हैं यहां
जैसा सोचो वैसा स्वाद देती है जि़न्दगी

शब्दों की भाषा समझी न

शब्दों की भाषा समझी न

नयनों की भाषा क्या समझोगे

 

रूदन समझते हो आंसू को

मुस्कानों की भाषा क्या समझोगे

 

मौन की भाषा समझी न

मनुहार की भाषा क्या समझोगे

 

गुलदानों में रखते हो फूलों को

प्यार की भाषा क्या समझोगे

जो मिला बस उसे संवार

कहते हैं जीवन छोटा है, कठिनाईयां भी हैं और दुश्वारियां भी

किसका संग मिला, कौन साथ चला, किसने निभाई यारियां भी

आते-जाते सब हैं, पर यादों में तो कुछ ही लोग बसा करते हैं

जो मिला बस उसे संवार, फिर देख जीवन में हैं किलकारियां भी

मन के भाव देख प्रेयसी

रंग रूप की ऐसी तैसी

मन के भाव देख प्रेयसी

लीपा-पोती जितनी कर ले

दर्पण बोले दिखती कैसी

चल आगे बढ़ जि़न्‍दगी

भूल-चूक को भूलकर, चल आगे बढ़ जि़न्‍दगी

अच्‍छा-बुरा सब छोड़कर, चल आगे बढ़ जि़न्‍दगी

हालातों से कभी-कभी समझौता करना पड़ता है

बदले का भाव छोड़कर, चल आगे बढ़ जि़न्‍दगी

अपना ही साथ हो

उम्र के इस पड़ाव पर

अनजान सुनसान राहों पर

जब नहीं पाती हूं

किसी को अपने आस पास

तब अपनी ही प्रतिकृति तराशती हूं ।

मन का कोना कोना खोलती हूं उसके साथ।

बालपन से अब तक की

कितनी ही यादें और कितनी ही बातें

सब सांझा करती हूं इसके साथ।

लौट आता है मेरा बचपना

वह अल्हड़पन और खुशनुमा यादें

वो बेवजह की खिलखिलाहटें

वो क्लास में सोना

कंचे और गोटियां, सड़क पर बजाई सीटियां

छत की पतंग

आमपापड़ और खट्टे का स्वाद

पुरानी कापियां देकर  

चूरन और रेती खाने की उमंग

गुल्लक से चुराए पैसे

फिल्में देखीं कैसे कैसे

टीचर की नकल, उनके नाम

और पता नहीं क्या क्या

अब सब तो बताया नहीं जा सकता।

यूं ही

खुलता है मन का कोना कोना।

बांटती हूं सब अपने ही साथ।

जिन्हें किसी से बांटने के लिए तरसता था मन

अपना ही हाथ पकड़कर आगे बढ़ जाती हूं

नये सिरे से।

यूं ही डरती थी, सहमी थी।

अब जानी हूं

ज़िन्दगी को पहचानी हूं।

जीवन कोई विवाद नहीं

जीवन में डर का भाव

कभी-कभी ज़रूरी  होता है,

शेर के पिंजरे के आगे

शान दिखाना तो ठीक है,

किन्तु खुले शेर को ललकारना

पता नहीं क्या होता है!

 

जीवन में दो कदम

पीछे लेना

सदा डर नहीं होता।

 

 

जीवन कोई विवाद नहीं

कि हम हर बात का मुद्दा बनाएं,

कभी-कभी उलझने से

बेहतर होता है

पीछे हट जाना,

चाहे कोई हमें डरपोक बताए।

 

जीवन कोई तर्क भी नहीं

कि हम सदा

वाद-विवाद में उलझे रहें

और जीवन

वितण्डावाद बनकर रह जाये।

 

शत्रु से बचकर मैदान छोड़ना

सदा डर नहीं होता,

जान बचाकर भागना

सदा कायरता नहीं होती,

नयी सोच के लिए,

राहें उन्मुक्त करने के लिए,

बचाना पड़ता है जीवन,

छोड़नी पड़ती हैं राहें,

किसी अपने के लिए,

किसी सपने के लिए,

किन्हीं चाहतों के लिए।

फिर आप इसे डर समझें,

या कायरता

आपकी समझ।

हमें भी मुस्‍काराना आ गया

फूलों को खिलते देख हमें भी मुस्‍काराना आ गया

गरजते बादलों को सुन हमें भी जताना आ गया

बहती नदी की धार ने सिखाया हमें चलते जाना

उंचे पर्वतों को देख हमें भी पांव जमाना आ गया

 

 

डर ज़िन्दगी से नहीं लगता

डर ज़िन्दगी से नहीं लगता

ज़िन्दगी जीने के

तरीके से लगता है।

 

एहसास मिटने लगे हैं

रिश्ते बिखरने लगे हैं

कौन अपना,

कौन पराया,

समझ से बाहर होने लगे हैं।

सड़कों पर खून बहता है

हाथ फिर भी साफ़ दिखने लगे हैं।

कहने को हम हाथ जोड़ते हैं,

पर कहां खुलते हैं,

कहां बांटते हैं,

कहां हाथ साफ़ करते हैं,

अनजाने से रहने लगे हैं।

क्या खोया , क्या पाया

इसी असमंजस में रहने लगे हैं।

पत्थरों को चिनने के लिए

अरबों-खरबों लुटाने के लिए

तैयार बैठे हैं,

पर भीतर जाने से कतराने लगे हैं।

पिछले रास्ते से प्रवेश कर,

ईश्वर में आस्था जताने लगे हैं।

प्रसाद की भी

कीमत लगती है आजकल

हम तो, यूं ही

आपका स्वाद

कड़वा करने में लगे हैं।

नदिया की धार के सँग

चल आज नदिया की धार के सँग तन मन सँवारकर देखें

राहों में आते कंकड़- पत्थरों से घर आँगन सँवारकर देखें

कभी गहराती, कभी धीमी, कभी भागती, कभी बिखरती

चल आज नदिया की लय पर अपना जीवन सँवारकर देखें।

 

सरस-सरस लगती है ज़िन्दगी।

जल सी भीगी-भीगी है ज़िन्दगी।

कहीं सरल, कहीं धीमे-धीमे

आगे बढ़ती है ज़िन्दगी।

तरल-तरल भाव सी

बहकती है ज़िन्दगी।

राहों में धार-सी बहती है ज़िन्दगी।

चलें हिल-मिल

कितनी सुहावनी लगती है ज़िन्दगी।

किसी और से क्या लेना, 

जब आप हैं हमारे साथ ज़िन्दगी।

आज भीग ले अन्तर्मन,

कदम-दर-कदम

मिलाकर चलना सिखाती है ज़िन्दगी।

राहें सूनी हैं तो क्या,

तुम साथ हो

तब सरस-सरस लगती है ज़िन्दगी।

आगे बढ़ते रहें

तो आप ही खुलने लगती हैं मंजिलें ज़िन्दगी।

कुछ कह रही ओस की बूंदे

रंग-बिरंगी आभाओं से सजकर रवि हुआ उदित

चिड़ियां चहकीं, फूल खिले, पल्लव हुए मुदित

देखो भाग-भागकर कुछ कह रही ओस की बूंदे

इस मधुर भाव में मन क्यों न हो जाये प्रफुल्लित

अपनी हिम्मत से जीते हैं

बस एक दृढ़ निश्चय हो तो राहें उन्मुक्त हो ही जाती हैं
लक्ष्य पर दृष्टि हो तो बाधाएं स्वयं ही हट जाती हैं
कौन रोक पाता है उन्हें जो अपनी हिम्मत से जीते हैं
प्रयास करते रहने वालों को मंज़िल मिल ही जाती है

बहके हैं रंग

रंगों की आहट से खिली खिली है जिन्दगी

अपनों की चाहत से मिली मिली है जिन्दगी

बहके हैं रंग, चहके हैं रंग, महके हैं रंग,

 रंगों की रंगीनियों से हंसी हंसी है जिन्दगी

जीवन में सदैव अमावस नहीं होता

जैसे इन्द्रधनुषी रंगों में स्याह रंग नहीं होता              

वैसे जीवन में सदैव अमावस ही नहीं होता
रिमझिम बूंदों को जब गुनगुनी धूप निखारती है
आशा के पुष्पों पर कभी तुषारापात नहीं होता। 

दौड़ बनकर रह गई है जिन्दगी

शून्य से शतक तक की दौड़ बनकर रह गई है जिन्दगी

इससे आगे और क्या इस सोच में बह रही है जिन्दगी

औरऔर  मिलने की चाह में डर डर कर जीते हैं हम

एक से निन्यानवे तक भी आनन्द ले, कह रही है जिन्दगी

है हौंसला बुलन्द

उन राहों पर निकले हैं जिनका आदि न कोई अन्त

न आगे है कोई न पीछे है, दिखता दूर कहीं दिगन्त

देखने में रंगीनियां हैं, सफ़र है, समां सुहाना लगता है

टेढ़ी-मेढ़ी राहें हैं, पथ दुर्गम है, पर है हौंसला बुलन्द

कांटों की बात जीवन भर साथ

रूप, रस, गंध, भाव, एहसास, कांटों में भी होते है
नज़र नज़र की बात है सबको कहां दिखाई देते है
कांटों की चुभन की ही बात क्यों करते हैं सदा हम
संजोकर देखना इन्हें, जीवन भर अक्षुण्ण साथ देते है

डगर कठिन है

बहती धार सी देखो लगती है जिन्दगी।

पहाड़ों पर बहार सी लगती है जिन्दगी।

किन्तु डगर कठिन है उंचाईयां हैं बहुत।

ख्वाबों को संवारने में लगती है जिन्दगी।

महके हैं रंग

रंगों की आहट से खिली खिली है जिन्दगी
अपनों की चाहत से मिली मिली है जिन्दगी
बहके हैं रंग, चहके हैं रंग, महके हैं रंग,
 रंगों की रंगीनियों से हंसी हंसी है जिन्दगी

उसकी लेखी पढ़ी नहीं

कुछ पन्ने कोरे छोड़े थे कुछ रंगीन किये थे

कुछ पर मीठी यादें थीं कुछ गमगीन किये थे

कहते हैं लिखता है उपर वाला सब स्याह सफ़ेद

उसकी लेखी पढ़ी नहीं यही जुर्म संगीन किये थे

जिन्दगी के अफ़साने

लहरों पर डूबेंगे उतरेंगे, फिर घाट पर मिलेंगे

झंझावात है, भंवर है सब पार कर चलेंगे

मत सोच मन कि साथ दे रहा है कोई या नहीं

बस चलाचल,जिन्दगी के अफ़साने यूं ही बनेंगे

जीवन की नश्वरता का सार

अंगुलियों से छूने की कोशिश में भागती हैं ये ओस की बूंदें

पत्तियों पर झिलमिलाती, झूला झूलती हैं ये ओस की बूंदें

जीवन की नश्वरता का सार समझा जाती हैं ये ओस की बूंदें

मौसम बदलते ही कहीं लुप्त होने लगती हैं ये ओस की बूंदे

वसुधैव कुटुम्बकम्

एक आस हो, विश्वास हो, बस अपनेपन का भास हो

न दूरियां हो, न संदेह की दीवार, रिश्तों में उजास हो

जीवन जीने का सलीका ही हम शायद भूलने लगे हैं

नि:स्वार्थ, वसुधैव कुटुम्बकम् का एक तो प्रयास हो

आदमी आदमी से पूछता

आदमी आदमी से पूछता है

कहां मिलेगा आदमी

आदमी आदमी से पूछता है

कहीं मिलेगा आदमी

आदमी आदमी से डरता है

कहीं मिल न जाये आदमी

आदमी आदमी से पूछता है

क्यों डर कर रहता है आदमी

आदमी आदमी से कहता है

हालात बिगाड़ गया है आदमी

आदमी आदमी को बताता है

कर्त्तव्यों से भागता है आदमी

आदमी आदमी को बताता है

अधिकार की बात करता है आदमी

आदमी आदमी को सताता है

यह बात जानता है हर आदमी

आदमी आदमी को बताता है

हरपल जीकर मरता है आदमी

आदमी आदमी को बताता है

सबसे बेकार जीव है तू आदमी

आदमी आदमी से पूछता है

ऐसा क्यों हो गया है आदमी

आदमी आदमी को समझाता है

आदमी से बचकर रहना हे आदमी

और आदमी, तू ही आदमी है

कैसे भूल गया, तू हे आदमी !

शुद्ध जल से आचमन कर ले मेरे मन

जल की धार सी बह रही है ज़िन्दगी

नित नई आस जगा रही है ज़िन्दगी

शुद्ध जल से आचमन कर ले मेरे मन

काल के गाल में समा रही है ज़िन्दगी