आदमी आदमी से पूछता है
कहां मिलेगा आदमी
आदमी आदमी से पूछता है
कहीं मिलेगा आदमी
आदमी आदमी से डरता है
कहीं मिल न जाये आदमी
आदमी आदमी से पूछता है
क्यों डर कर रहता है आदमी
आदमी आदमी से कहता है
हालात बिगाड़ गया है आदमी
आदमी आदमी को बताता है
कर्त्तव्यों से भागता है आदमी
आदमी आदमी को बताता है
अधिकार की बात करता है आदमी
आदमी आदमी को सताता है
यह बात जानता है हर आदमी
आदमी आदमी को बताता है
हरपल जीकर मरता है आदमी
आदमी आदमी को बताता है
सबसे बेकार जीव है तू आदमी
आदमी आदमी से पूछता है
ऐसा क्यों हो गया है आदमी
आदमी आदमी को समझाता है
आदमी से बचकर रहना हे आदमी
और आदमी, तू ही आदमी है
कैसे भूल गया, तू हे आदमी !
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चलो खिचड़ी पकाएॅं
वैसे तो
रोगियों का भोजन है
खिचड़ी,
स्वादहीन,
कोई खाना नहीं चाहता।
किन्तु जब
हमारे-तुम्हारे बीच पकती है
कोई खिचड़ी
तो सारी दुनिया के कान
खड़े हो जाते हैं,
मुहॅं का स्वाद
चटपटा हो जाता है
कहानियाॅं बनती हैं
मिर्च-मसाले से
जिह्वा जलने लगती है,
घूमने लगते हैं आस-पास
जाने-अनजाने लोग।
क्या पकाया, क्या पकाया?
अब क्या बताएॅं
तुम भी आ जाओ
हमारे गुट में
मिल-बैठ नई खिचड़ी पकायेंगे।
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जीवन का गणित
बालपन से ही
हमें सिखा दी जाती हैं
जीवन जीने के लिए
अलग-अलग तरह की
न जाने कितनी गणनाएं,
जिनका हल
किसी भी गणित में
नहीं मिलता।
.
लेकिन ज़िन्दगी की
अपनी गणनाएं होती हैं
जो अक्सर हमें
समझ ही नहीं आतीं।
यहां चलने वाला
जमा-घटाव, गुणा-भाग
और न जाने कितने फ़ार्मूले
समझ से बाहर रहते हैं।
.
ज़िन्दगी
हमारे जीवन में
कब क्या जमा कर देगी
और कब क्या घटा देगी,
हम सोच ही नहीं सकते।
.
क्या ऐसा हो सकता है
कि गणित के
विषय को
हम जीवन से ही निकाल दें,
यदि सम्भव हो
तो ज़रूर बताना मुझे।
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शंख-ध्वनि
तुम्हारी वंशी की धुन पर विश्व संगीत रचता है
तुम्हारे चक्र की गति पर जीवन चक्र चलता है
दूध-दहीं माखन, गैया-मैया, ग्वाल-बाल सब
तुम्हारी शंख-ध्वनि से मन में सब बसता है।
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आवरण से समस्याएं नहीं सुलझतीं
समझ नहीं आया मुझे,
किसके विरोध में
तीर-तलवार लिए खड़ी हो तुम।
या इंस्टा, फ़ेसबुक पर
लाईक लेने के लिए
सजी-धजी चली हो तुम।
साड़ी, कुंडल, करघनी, तीर
मैचिंग-वैचिंग पहन चली,
लगता है
किसी पार्लर से सीधी आ रही हो
कैट-वाॅक करती
अपने-आपको
रानी झांसी समझ रही हो तुम।
तिरछी कमान, नयनों के तीर से
किसे घायल करने के लिए
ये नौटंकी रूप धरकर
चली आ रही हो तुम।
.
लगता है
ज़िन्दगी से पाला नहीं पड़ा तुम्हारा।
तुम्हें बता दूं
ज़िन्दगी की लड़ाईयां
तीर-तलवार से नहीं लड़ी जातीं
क्या नहीं जानती हो तुम।
ज़िन्दगी तो आप ही दोधारी तलवार है
शायद आज तक चली नहीं हो तुम।
कभी झंझावात, कभी आंधी
कभी घाम तीखी,
शायद झेली नहीं हो तुम।
.
कल्पनाओं से ज़िन्दगी नहीं चलती।
आवरण से समस्याएं नहीं सुलझतीं।
भेष बदलने से पहचान नहीं छुपती।
अपनी पहचान से गरिमा नहीं घटती।
इतना समझ लो बस तुम।
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अच्छी नींद लेने के लिए
अच्छी नींद लेने के लिए बस एक सरकारी कुर्सी चाहिए
कुछ चाय-नाश्ता और कमरे में एक ए सी होना चाहिए
फ़ाईलों को बनाईये तकिया, पैर मेज़ पर ज़रा टिकाईये
काम तो होता रहेगा, टालने का तरीका आना चाहिए
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निर्माण के जंगल
हम जब मुख्य शहर से कुछ बाहर, कुछ दूर निकलते हैं तो आपको societies एवं उनमें निर्माणाधीन Flats /Towers दिखाई देने लगते हैं। एक-एक society में 100-200 टॉवर, और 22-25 मंजिल तक, सभी निमार्णाधीन। और एक दो नहीं, सैंकड़ों-सैंकड़ों, जिन्हें आप न तो गिन सकते हैं न ही अनुमान लगा सकते हैं। जैसे कोई बाढ़ आ गई हो, सुनामी हो Flats की, अथवा कोई पूरा जंगल। किन्तु इनकी सबसे बड़ी विशेषता यह कि ये सब अधबने Flats हैं, केवल ढांचा अथवा कहीं-कहीं बाहर से बने दिखाई देते हैं किन्तु भीतर से केवल दीवारें ही होती हैं जिन्हें उनकी शब्दावली में Raw कहा जाता है। मीलों तक, पूरे-पूरे शहर के समान। इनके आस-पास निर्माणाधीन मॉल, बिसनेस टॉवर, सिटी सैंटर, बड़ी-बड़ी कम्पनियों के बोर्ड। मॉल भी इतने बड़े और उंचे कि आप नज़र उठाकर न देख सकें, कहॉं से आरम्भ हो रहे हैं और कहॉं कितनी दूर समाप्त, दृष्टि बोध ही नहीं बन पाता।
अब आप यहॉं Flat खरीदने के लिए देखने जायेंगे तो आपको society एवं Flats की विशेषताएं बताई जायेंगी।
society में swimming pool, park, fountains, power back up, parking area, party hall, community hall, community centre, high level security, religious places, plumber, mechanic, electrician सबकी सुविधाएं मिलती रहेंगी, वगैरह-वगैरह।
फिर आप मूल्य पूछेंगे।
छोटे-छोटे 3 BHK Flats का मूल्य मात्र 2 से ढाई करोड़ से आरम्भ होता है और ये अभी निर्माणाधीन हैं। केवल ढांचे खड़े हैं। आप 25 प्रतिशत राशि देकर बुक करवा सकते हैं, ज्यों-ज्यों निर्माण होता जायेगा, आपसे शेष राशि किश्तों में ली जाती रहेगी। तीन, चार अथवा पांच वर्षों में आपको तैयार Flat मिल जायेगा। ये बैंक से भी आपका ऋण स्वीकृत करवा देंगे।
और उपर बताई गई सुविधाओं के लिए आपसे मात्र 2 अथवा 3 प्रतिशत मासिक लिया जायेगा।
इन Flats को देखकर मेरे मन में दो-तीन प्रश्न उठते हैं।
इन लाखों Flats में बसने वाले लोग किस ग्रह से आयेंगे।
दूसरा भारत में क्या सत्य में ही इतने धन-सम्पन्न लोग हैं?
तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण यह कि मुझे इन societies में दूर-दूर तक किसी स्कूल, कॉलेज, यूनिवर्सिटी, शिक्षण संस्थान, व्यावसायिक संस्थान, अस्पताल, डिस्पैंसरी, क्लिीनिक की परिकल्पना नहीं दिखाई दी।
आप क्या सोचते हैं।
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मां के आंचल की छांव
प्रकृति का नियम है
विशाल वट वृक्ष तले
नहीं पनपते छोटे पेड़ पौधे।
नहीं पुष्पित पल्लवित होतीं यूं ही लताएं।
और यदि कुछ पनप भी जाये
तो उसे नाम नहीं मिलता।
पहचान नहीं मिलती।
बस, वट वृक्ष की विशालता के सामने
खो जाते हैं सब।
लेकिन, एक ऐसा वट वृक्ष भी है
जिसका अपना कोई नाम नहीं होता
कोई पहचान नहीं होती।
बस एक दीर्घ आंचल होता है
जिसके साये तले, पलती बढ़ती है
एक पूरी की पूरी पीढ़ी,
एक पूरा का पूरा युग।
अपनी जड़ों से पोषण करती है उनका।
नये पौधों का रोपण करती है
अपने आपको खोकर।
उन्हें नाम देती है, पहचान देती है
आंचल की छांव देती है।
पूरी ज़मीन और पूरा आकाश देती है।
युग बदलते हैं, पर नहीं बदलती
नहीं छूटती आंचल की छांव।
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विश्वास का धागा
भाई-बहन का प्यार है राखी
रिश्तों की मधुर सौगात है राखी
विश्वास का एक धागा होता है
अनुपम रिश्तों का आधार है राखी
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यह ज़िन्दगी है
यह ज़िन्दगी है,
भीड़ है, रेल-पेल है ।
जाने-अनजाने लोगों के बीच ,
बीतता सफ़र है ।
कभी अपने पराये-से,
और कभी पराये
अपने-से हो जाते हैं।
दुख-सुख के ठहराव ,
कभी छोटे, कभी बड़े पड़ाव,
कभी धूप कभी बरसात ।
बोझे-सी लदी जि़न्दगी,
कभी जगह बन पाती है
कभी नहीं।
कभी छूटता सामान
कभी खुलती गठरियां ।
अन्तहीन पटरियों से सपनों का जाल ।
दूर कहीं दूर पटरियों पर
बेटिकट दौड़ती-सी ज़िन्दगी ।
मिल गई जगह तो ठीक,
नहीं तो खड़े-खड़े ही,
बीतती है ज़िन्दगी ।
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सुना है कोई भाग्य विधाता है
सुना है
कोई भाग्य विधाता है
जो सब जानता है।
हमारी होनी-अनहोनी
सब वही लिखता है ,
हम तो बस
उसके हाथ की कठपुतली हैं
जब जैसा चाहे वैसा नचाता है।
और यह भी सुना है
कि लेन-देन भी सब
इसी ऊपर वाले के हाथ में है।
जो चाहेगा वह, वही तुम्हें देगा।
बस आस लगाये रखना।
हाथ फैलाये रखना।
कटोरा उठाये रखना।
मुंह बाये रखना।
लेकिन मिलेगा तुम्हें वही
जो तुम्हारे भाग्य में होगा।
और यह भी सुना है
कर्म किये जा,
फल की चिन्ता मत कर।
ऊपर वाला सब देगा
जो तुम्हारे भाग्य में लिखा होगा।
और भाग्य उसके हाथ में है
जब चाहे बदल भी सकता है।
बस ध्यान लगाये रखना।
और यह भी सुना है
कि जो अपनी सहायता आप करता है
उसका भाग्य ऊपर वाला बनाता है।
इसलिए अपनी भी कमर कस कर रखना
उसके ही भरोसे मत बैठे रहना।
और यह भी सुना है
हाथ धोकर
इस ऊपर वाले के पीछे लगे रहना।
तन मन धन सब न्योछावर करना।
मन्दिर, मस्जिद, गुरूद्वारा कुछ न छोड़ना।
नाक कान आंख मुंह
सब उसके द्वार पर रगड़ना।
और फिर कुछ बचे
तो अपने लिए जी लेना
यदि भाग्य में होगा तो।
आपको नहीं लगता
हमने कुछ ज़्यादा ही सुन लिया है।
अरे यार !
अपनी मस्ती में जिये जा।
जो सामने आये अपना कर्म किये जा।
जो मिलना है मिले
और जो नहीं मिलना है न मिले
बस हंस बोलकर आनन्द में जिये जा।
और मुंह ढककर अच्छी नींद लिये जा।