डर ज़िन्दगी से नहीं लगता

डर ज़िन्दगी से नहीं लगता

ज़िन्दगी जीने के

तरीके से लगता है।

 

एहसास मिटने लगे हैं

रिश्ते बिखरने लगे हैं

कौन अपना,

कौन पराया,

समझ से बाहर होने लगे हैं।

सड़कों पर खून बहता है

हाथ फिर भी साफ़ दिखने लगे हैं।

कहने को हम हाथ जोड़ते हैं,

पर कहां खुलते हैं,

कहां बांटते हैं,

कहां हाथ साफ़ करते हैं,

अनजाने से रहने लगे हैं।

क्या खोया , क्या पाया

इसी असमंजस में रहने लगे हैं।

पत्थरों को चिनने के लिए

अरबों-खरबों लुटाने के लिए

तैयार बैठे हैं,

पर भीतर जाने से कतराने लगे हैं।

पिछले रास्ते से प्रवेश कर,

ईश्वर में आस्था जताने लगे हैं।

प्रसाद की भी

कीमत लगती है आजकल

हम तो, यूं ही

आपका स्वाद

कड़वा करने में लगे हैं।