सोचते हैं दिल बदल लें

मायूस दिल को मनाने अब किसे, क्यों यहां आना है
दिल की दर्दे-दवा लगाने अब किसे, क्यों यहां आना है
ज़माना  बहुत निष्ठुर हो गया है, बस तमाशा देख रहा
सोचते हैं दिल बदल लें, देखें किसे यहां घर बसाने आना है।

द्वार पर सांकल लगने लगी है

उत्‍सवों की चहल-पहल अब भीड़ लगने लगी है

अपनों की आहट अब गमगीन करने लगी है

हवाओं को घोटकर बैठते हैं सिकुड़कर हम

कोई हमें बुला न ले, द्वार पर सांकल लगने लगी है

ज़रा-ज़रा-सी बात पर

ज़रा-ज़रा-सी बात पर यूं ही विश्‍वास चला गया

फूलों को रौंदते, कांटों को सहेजते चला गया

काश, कुछ ठहर कर कही-अनकही सुनी होती

हम रूके नहीं,सिखाते-सिखाते ज़माना चला गया

ठेस लगती है कभी

ठेस लगती है कभी, टूटता है कुछ, बता पाते नहीं।

आंख में आंसू आते हैं, किससे कहें, बह पाते नहीं।

कभी किसी को दिखावा लगे, कोई कहे निर्बलता ।

बार-बार का यह टकराव कई बार सह पाते नहीं।

अकारण क्यों हारें

राहों में आते हैं कंकड़-पत्थर, मार ठोकर कर किनारे।

न डर किसी से, बोल दे सबको, मेरी मर्ज़ी, हटो सारे।

जो मन चाहेगा, करें हम, कौन, क्यों रोके हमें यहां।

कर्म का पथ कभी छोड़ा नहीं, फिर अकारण क्यों हारें।

 

सहज भाव से जीना है जीवन

कल क्या था,बीत गया,कुछ रीत गया,छोड़ उन्हें

खट्टी थीं या मीठी थीं या रिसती थीं,अब छोड़ उन्हें

कुछ तो लेख मिटाने होंगे बीते,नया आज लिखने को

सहज भाव से जीना है जीवन,कल की गांठें,खोल उन्हें

हिम्मत लेकर जायेगी शिखर तक

किसी के कदमों के छूटे निशान न कभी देखना

अपने कदम बढ़ाना अपनी राह आप ही देखना

शिखर तक पहुंचने के लिए बस चाहत ज़रूरी है

अपनी हिम्मत लेकर जायेगी शिखर तक देखना

कोहरे का कोहराम है

कोहरे का कोहराम है, हमें तो आराम है

छुट्टी मना रहे, घर में कहां कोई जाम है

आग तापते, जब मन चाहे सोते-जागते

कौन पूछने वाला, मनमर्जी से करते काम हैं

विनाश प्रकृति का नियम है

ह्रास से न डर, उत्पत्ति प्रकृति का नियम है

पीत पत्र झड़ गये, नवपल्लव आना नियम है

गर विनाश लीला तूने मचाई अपने लाभ के लिए

तो समझ ले तेरा विनाश भी प्रकृति का नियम है

सही-गलत को मापने का साहस रखना चाहिए

विनाश के लिए न बम चाहिए न हथियार चाहिए

विनाश के लिए बस मन में नकारात्मक भाव चाहिए

सोच-समझ कुंद हो गई, सच समझने से डरने लगे

सही-गलत को मापने का तो साहस रखना चाहिए

गहरे सागर में डूबे थे

सपनों की सुहानी दुनिया नयनों में तुमने ही बसाई थी

उन सपनों के लिए हमने अपनी हस्ती तक मिटाई थी

गहरे सागर में डूबे थे उतरे थे माणिक मोती के लिए

कब विप्लव आया और कब तुमने मेरी हस्ती मिटाई थी

रंगों की चाहत में बीती जिन्दगी

रंगों की भी अब रंगत बदलने लगी है
सुबह भी अब शाम सी ढलने लगी है
इ्द्र्षधनुषी रंगों की चाहत में बीती जिन्दगी
अब इस मोड़ पर आकर क्यों दरकने लगी है।

होंठों ने चुप्पी साधी थी

आंखों ने मन की बात कही

आंखों ने मन की बात सुनी

होंठों ने चुप्पी साधी थी

जाने, कैसे सब जान गये।

रोशनी का बस एक तीर

रोशनी का बस एक तीर निकलना चाहिए

छल-कपट और  पाप का घट फूटना चाहिए

तुम राम हो या रावण, कर्ण हो या अर्जुन

बस दुराचारियों का साहस तार-तार होना चाहिए

हर घड़ी सुख बाँटती है ज़िंदगी

शून्य से सौ तक निरंतर दौड़ती है ज़िंदगी !

और आगे क्या , यही बस खोजती है ज़िंदगी !

चाह में कुछ और मिलने की सभी क्यों जी रहे –

 देखिये तो हर घड़ी सुख बाँटती है ज़िंदगी !

विश्वास के लायक कहीं कोई मिला नहीं था

जीवन में क्यों कोई हमारे हमराज़ नहीं था

यूं तो चैन था, हमें कोई एतराज़ नहीं था

मन चाहता है कि कोई मिले, पर क्या करें

विश्वास के लायक कहीं कोई मिला नहीं था

शायद प्यार से मन मिला नहीं था

यूं तो उनसे कोई गिला नहीं था

यादों का कोई सिला नहीं था

कभी-कभी मिल लेते थे यूं ही

शायद प्यार से मन मिला नहीं था

 

न स्वर्ण रहा न स्वर्णाभा रही

कुन्दन अब रहा किसका मन

बहके-बहके हैं यहां कदम

न स्वर्ण रहा न स्वर्णाभा रही

पारस पत्थर करता है क्रन्दन

पूजने के लिए बस एक इंसान चाहिए

न भगवान चाहिए न शैतान चाहिए

पूजने के लिए बस एक इंसान चाहिए

क्या करेगा किसी के गुण दोष देखकर

मान मिले तो मन से प्रतिदान चाहिए

मन तो घायल होये

मन की बात करें फिर भी भटकन होये

आस-पास जो घटे मन तो घायल होये

चिन्तन तो करना होगा क्यों हो रहा ये सब

आंखें बन्द करने से बिल्ली न गायब होये

हंसी जिन्दगी जीने की बात करते हैं

न सोचते हैं न समझते हैं, बस बवाल करते हैं

न पूछते हैं न बताते हैं बस बेहाल बात करते हैं

ज़रा ठहर कर सोच-समझ कर कदम उठायें ‘गर

आईये बैठकर हंसी जिन्दगी जीने की बात करते हैं

 

आगजनी में अपने ही घर जलते हैं

जाने क्यों नहीं समझते, आगजनी में अपने ही घर जलते हैं

न हाथ सेंकना कभी, इस आग में अपनों के ही भाव मरते हैं

आओ, मिल-बैठकर बात करें, हल खोजें ‘गर कोई बात है

जाने क्यों आजकल बिन सोचे-समझे हम फै़सले करते हैं

आदत हो गई है बुराईयां खोजने की

शब्दों में अब मिठास कहां रह गई

बातों में अब आस कहां रह गई

आदत हो गई है बुराईयां खोजने की

सम्बन्धों में अब वह बात कहां रह गई

हमारी सोच बिगड़ती है

न जाने कौन कह गया भलाई का ज़माना चला गया

किस राह चलें, क्यों चलें, हमें कहां कोई समझा गया

ज़माने का मिज़ाज़ न बदला है कभी, न बदलेगा कभी

हमारी सोच बिगड़ती है, यह समझने का ज़माना आ गया

मन में बजती थी रूनझुन पायल

मन ही मन में थे उनके कायल

मन में बजती थी रूनझुन पायल

मिलने की बात पर शर्मा जाते थे

सपनों में ही कर गये हमको घायल

 

याद आता है भूला बचपन

कहते हैं जीवन है इक उपवन

महका-महका-सा है जीवन

कभी कभी जब कांटे चुभते हैं

तब याद आता है भूला बचपन

मन करता है लौट आये बचपन

यूं ही चलता रहता है जीवन

कभी रोता कभी हंसता है मन

राहों में जब आती हैं बाधाएं

मन करता है लौट आये बचपन

नये नये की आस में

नये नये की आस में क्यों भटकता है मन

न जाने क्यों इधर-उधर अटकता है मन

जो मिला है उसे तो जी भर जी ले प्यारे

क्यों औरों के सुख देखकर भटकता है मन

कांटों की चुभन

बात पुरानी हो गई जब कांटों से हमें मुहब्बत न थी

एक कहानी हो गई जब फूलों की हमें चाहत तो थी

काल के साथ फूल खिल-खिल बिखर गये बदरंग

कांटों की चुभन आज भी हमारे दिल में बसी क्यों थी

कांटों से मुहब्बत हो गई

समय बदल गया हमें कांटों से मुहब्बत हो गई

रंग-बिरंगे फूलों से चाहत की बात पुरानी हो गई

कहां टिकते हैं अब फूलों के रंग और अदाएं यहां

सदाबहार हो गये अब कांटें, बस इतनी बात हो गई