जब तक जीवन है मस्ती से जिये जाते हैं

कितना अद्भुत है यह गंगा में पाप धोने, डुबकी लगाने जाते हैं।

कितना अद्भुत है यह मृत्योपरान्त वहीं राख बनकर बह जाते हैं।

कितने सत्कर्म किये, कितने दुष्कर्म, कहां कर पाता गणना कोई।

पाप-पुण्य की चिन्ता छोड़, जब तक जीवन है, मस्ती से जिये जाते हैं।

मैंने तो बस यूं बात की

न मिलन की आस की , न विरह की बात की

जब भी मिले बस यूं ही ज़रा-सी बात ही बात की

ये अच्‍छा रहा, न चिन्‍ता बनी, न मन रमा कहीं

कुछ और न समझ लेना मैंने तो बस यूं बात की

हंस-हंसकर बीते जीवन क्‍या घट जायेगा

 

यह मन अद्भुत है, छोटी-छोटी बातों पर रोता है

ज़रा-ज़रा-सी बात पर यूं ही शोकाकुल होता है

हंस-हंसकर बीते जीवन तो तेरा क्‍या घट जायेगा

गाल फुलाकर जीने से जीवन न बेहतर होता है

बिन मौसम ही कलियां फूल बनीं हैं

मन के मौसम ने करवट सी-ली है

बासन्ती रंगों ने आहट सी-ली है

बिन मौसम ही कलियां फूल बनीं हैं

उनकी नज़रों ने एक चाहत सी-ली है

प्रलोभनों के पीछे भागता मन

सर्वाधिकार की चाह में बहुत कुछ खो बैठते हैं

और-और की चाह में हर सीमा तोड़ बैठते हैं

प्रलोभनों के पीछे भागता मन, वश कहां रहा

अच्‍छे-बुरे की पहचान भूल, अपकर्म कर बैठते हैं

मन भटकता है यहां-वहां

अपने मन पर भी एकाधिकार कहां

हर पल भटकता है देखो यहां-वहां

दिशाहीन हो, इसकी-उसकी सुनता

लेखन में बिखराव है तभी तो यहां

ठिठुरी ठिठुरी धूप है कुहासे से है लड़ रही

ठिठुरी ठिठुरी धूप है, कुहासे से है लड़ रही

भाव भी हैं सो रहे, कलम हाथ से खिसक रही

दिन-रात का भाव एकमेक हो रहा यहां देखो

कौन करे अब काम, इस बात पर चर्चा हो रही

अतिथि तुम तिथि देकर आना

शीत बहुत है, अतिथि तुम तिथि देकर आना

रेवड़ी, मूगफ़ली, गचक अच्‍छे से लेकर आना

लोहड़ी आने वाली है, खिचड़ी भी पकनी है

पकाकर हम ही खिलाएंगे, जल्‍दी-जल्‍दी जाना

कौन हैं अपने कौन पराये

कुछ मुखौटै चढ़े हैं, कुछ नकली बने हैं

किसे अपना मानें, कौन पराये बने हैं

मीठी-मीठी बातों पर मत जाना यारो

मानों खेत में खड़े बिजूका से सजे हैं

झूठ के आवरण चढ़े हैं

चेहरों पर चेहरे चढ़े हैं

असली तो नीचे गढ़े हैं

कैसे जानें हम किसी को

झूठ के आवरण चढ़े हैं

कभी कांटों को सहेजकर देखना

फूलों का सौन्दर्य तो बस क्षणिक होता है

रस रंग गंध सबका क्षरण होता है

कभी कांटों को सहेजकर देखना

जीवन भर का अक्षुण्ण साथ होता है

चाय सुबह मिले या शाम को

सुबह की चाय और मीठी नींद की बात ही कुछ और है।

एक से बात कहां बनती है, दो-चार का तो चले दौर है।

ठीक नशे का काम करती है चाय, सुबह मिले या शाम को,

कितनी भी मिल जाये तो भी मन पूछता है, और है? और है?

 

मन आनन्दित होता है

लेन-देन में क्या बुराई

जितना चाहो देना भाई

मन आनन्दित होता है

खाकर पराई दूध-मलाई

तुम तो चांद से ही जलने लगीं

तुम्हें चांद क्या कह दिया मैंने, तुम तो चांद से ही जलने लगीं

सीढ़ियां तानकर गगन से चांद को उतारने की बात करने लगीं

अरे, चांद का तो हर रात आवागमन रहता है टिकता नहीं कभी

हमारे जीवन में बस पूर्णिमा है,इस बात को क्यों न समझने लगीं

अपमान-सम्मान की परिभाषा क्या करे कोई

बस दो अक्षर का फेर है और भाव बदल जाता है

दिल को छू जाये बात तो अंदाज़ बदल जाता है

अपमान-सम्मान की परिभाषा क्या करे कोई

साथ-साथ चलते हैं दोनों, कौन समझ पाता है

नाप-तोल के माप बदल गये

नाप-तोल के माप बदल गये, सवा सेर अब रहे नहीं

किसको नापें किसको तोलें, यह समझ तो रही नहीं

मील पत्थर सब टूट गये, तभी तो राहों से भटक रहे

किसको परखें किसको छोड़ें, अपना ही जब पता नहीं

वादों की फुलवारी

यादों का झुरमुट, वादों की फुलवारी

जीवन की बगिया , मुस्कानों की क्यारी

सुधि लेते रहना मेरी पल-पल, हर पल

मैं तुझ पर, तू मुझ पर हर पल बलिहारी

प्यार का रस घोला होता

दिल में झांक कर देखा होता तो आज यह हाल न होता

काट कर रख दिये सारे अरमान जग यह बेहाल न होता

यह मिठास तो चुक जायेगी मौसम बदलने के साथ ही

प्यार का रस घोला होता तो आज यह हाल न होता

कहना सबका काम है कहने दो

लोक लाज के भय से करो न कोई काम

जितनी चादर अपनी, उतने पसारो पांव

कहना सबका काम है कहने दो कुछ भी

जो जो मन को भाये वही करो तुम काम

बस बातों का यह युग है

हाथ में लतवार लेकर अमन की बात करते हैं

प्रगति के नाम पर विज्ञापनों में बात करते हैं

आश्वासनों, वादों, इरादों, हादसों का यह युग है

हवा-हवाई में नियमित मन की बात करते हैं

अधिकारों की बात करें

अधिकारों की बात करें, कर्त्तव्यों का बोध नहीं

झूठ का पलड़ा भारी है, सत्य का है बोध नहीं

औरों के कंधे पर रख बन्दूक चलानी आती है

संस्कारों की बात करें, व्यवहारों का बोध नहीं

मानव-मन की थाह कहां पाई

राग-द्वेष ! भाव भिन्न, अर्थ भिन्न, जीवन भर क्यों कर साथ-साथ चलें

मानव-मन की थाह कहां पाई जिससे प्रेम करें उसकी ही सफ़लता खले

हंस-बोलकर जी लें, सबसे हिल-मिल लें, क्या रखा है हेर-फ़ेर में, सोच तू

क्यों बात-बात पर सम्बन्धों की चिता सजायें, ले सबको साथ-साथ चलें

आवरण है जब तक आसानियां बहुत हैं

परेशानियां बहुत हैं, हैरानियां बहुत हैं

कमज़ोरियां बहुत हैं, खामियां बहुत हैं

न अपना-सा है यहां कोई, न पराया

आवरण है जब तक आसानियां बहुत हैं

अपने  विरूद्ध अपनी मौत का सामान लिए

उदार-अनुदार, सहिष्णुता-असहिष्णुता जैसे शब्दों का अब कोई अर्थ नहीं मिलता

हिंसा-अहिंसा, दया-दान, अपनत्व, धर्म, जैसे शब्दों को अब कोई भाव नहीं मिलता

जैसे सब अस्त्र-शस्त्र लिए खड़े हैं अपने ही विरूद्ध अपनी ही मौत का सामान लिए

घोटाले, झूठ, छल, फ़रेब, अपराध, लूट, करने वालों को अब तिरस्कार नहीं मिलता

 

कौन देता है आज मान

सादगी, सच्चाई, सीधेपन को कौन देता है आज मान

झूठी चमक, बनावट के पीछे भागे जग, यह ले मान

इस आपा धापी से बचकर रहना रे मन, सुख पायेगा

अमावस हो या ग्रहण लगे, तू ले, सुर में, लम्बी तान

जीने का एक नाम भी है साहित्य

मात्र धनार्जन, सम्मान कुछ पदकों का मोहताज नहीं है साहित्य

एक पूरी संस्कृति का संचालक, परिचायक, संवाहक है साहित्य

कुछ गीत, कविताएं, लिख लेने से कोई साहित्यकार नहीं बन जाता

ज़मीनी सच्चाईयों से जुड़कर जीने का एक नाम भी है साहित्य

असम्भव कुछ नहीं होता ‘गर ठान ली हो मन में

कहो तो आसमां के चांद तारे तोड़ लाउं तुम्हारे लिए

कहो तो सागर की धारा को मोड़ लाउं तुम्हारे लिए

असम्भव कुछ भी नहीं होता गर ठान ली हो मन में

शब्द भाव समझ लो तो जीवन समर्पित है तुम्हारे लिए

हर किसी में खोट ढूंढने में लगे हैं हम

अच्छाईयों से भी अब डरने लगे हैं हम

हर किसी में खोट ढूंढने में लगे हैं हम

अपने भीतर झांकने की तो आदत नहीं

औरों के पांव के नीचे से चादर खींचने में लगे हैं हम

सीधे-सादे भोले-भाले लोगों की खिल्ली उड़ती है

सीधे-सादे भोले-भाले लोगों की अब खिल्ली देखो उड़ती है

चतुर सुजान लोगों के नामों से अब यह दुनिया चलती है

अच्छे-अच्छे लोगों के अब नाम नहीं जाने कोई यहां पर

कपटी, चोर-उचक्कों के डर से कानूनों की धज्जियां उड़ती हैं

बेवजह जागने की आदत नहीं हमारी

झूठ, छल-कपट, मिथ्या-आचरण, भ्रष्टाचार में जीते हैं हम किसी को क्या

बेवजह जागने की आदत नहीं हमारी, जो भी हो रहा, होता रहे हमें क्या

आराम से खाते-पीते हैं, मज़े से जीते हैं, दुनिया लड़-मर रही, मरती रहे

लहर है तो, सत्य, अहिंसा, प्रेम पर लिखने को जी चाहता है तुम्हें क्या