मानव-मन की थाह कहां पाई

राग-द्वेष ! भाव भिन्न, अर्थ भिन्न, जीवन भर क्यों कर साथ-साथ चलें

मानव-मन की थाह कहां पाई जिससे प्रेम करें उसकी ही सफ़लता खले

हंस-बोलकर जी लें, सबसे हिल-मिल लें, क्या रखा है हेर-फ़ेर में, सोच तू

क्यों बात-बात पर सम्बन्धों की चिता सजायें, ले सबको साथ-साथ चलें