टांके लगा नहीं रही हूं काट रही हूं
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न समझना हाथ चलते नहीं हैं
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नये सिरे से
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एहसास
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कैसा बिखराव है यह
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एक आदमी मरा
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अपनी इच्छाओं के कसीदे
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भविष्य
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युगे-युगे
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झूठे मुखौटे मत चढ़ा
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रोज़ की ही कहानी है
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अपने आकर्षण से बाहर निकल
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जीवन की नैया ऐसी भी होती है
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मुझको मेरी नज़रों से परखो
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औरत
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ज़िन्दगी आंसुओं के सैलाब में नहीं बीतती
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पंखों की उड़ान परख
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अपनी नज़र से देखने की एक कोशिश
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मुझे तो हर औरत दिखाई देती है
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स्वाभिमान हमारा सम्बल है

आत्मविश्वास की डोर लिए चलते हैं यह अभिमान नहीं है

स्वाभिमान हमारा सम्बल है यह दर्प का आधार नहीं है

साहस दिखलाया आत्मनिर्भरता का, मार्ग यह सुगम नहीं,

अस्तित्व बनाकर अपना, जीते हैं, यह अंहकार नहीं है।

नारी में भी चाहत होती है

ममता, नेह, मातृछाया बरसाने वाली नारी में भी चाहत होती है

कोई उसके मस्तक को भी सहला दे तो कितनी ही राहत होती है

पावनता के सारे मापदण्ड बने हैं बस एक नारी ही के लिए
कभी तुम भी अग्नि-परीक्षा में खरे उतरो यह भी चाहत होती है

ऐसा ही होता है हर युग में

अग्नि परीक्षा देने पर भी सीता तो बदनाम हुई थी

किया कुकर्म इन्द्र ने पर अहिल्या तो बलिदान हुई थी

पाषाण रूप पड़ी रही, सीता को बनवास मिला था

ऐसा ही होता है हर युग में नारी ही कुरबान हुई थी

अबला- सबला की बातें अब छोड़ क्‍यों नहीं देते

शूर्पनखा, सती-सीता-सावित्री, देवी, भवानी की बातें अब हम छोड़ क्यों नहीं देते

कभी आरोप, कभी स्तुति, कभी उपहास, अपने भावों को नया मोड़ क्यों नहीं देते

बातें करते अधिकारों  की, मानों बेडि़यों में जकड़ी कोई जन्‍मों की अपराधी हो

त्‍याग, तपस्‍या , बलिदान समर्पण अबला- सबला की बातें अब छोड़ क्‍यों नहीं देते

क्यों मैं नीर भरी दुख की बदरी
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नियति
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बहू ने दो रोटी खा ली
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विचलित करती है यह बात
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सूरज गुनगुनाया आज
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द्वार खुले हैं तेरे लिए

विदा तो करना बेटी को किन्तु कभी अलविदा न कहना

समाज की झूठी रीतियों के लिए बेटी को न पड़े कुछ सहना

खीलें फेंकी थीं पीठ पीछे छूट गया मेरा मायका सदा के लिए

हर घड़ी द्वार खुले हैं तेरे लिए,उसे कहना,इस विश्वास में रहना

आज भी वहीं के वहीं हैं हम

कहां छूटा ज़माना पीछे, आज भी वहीं के वहीं हैं हम

न बन्दूक है न तलवार दिहाड़ी पर जा रहे हैं हम

नज़र बदल सकते नहीं किसी की कितनी भी चाहें

ये आत्म रक्षा नहीं जीवन यापन का साधन लिए हैं हम