सूरज गुनगुनाया आज

सूरज गुनगुनाया आज

मेरी हथेली में आकर,

कहने लगा

चल आज

इस तपिश को

अपने भीतर महसूस कर।

मैं न कहता कि आग उगल।

पर इतना तो कर

कि अपने भीतर के भावों को

आकाश दे,

प्रभात और रंगीनियां दे।

उत्सर्जित कर

अपने भीतर की आग

जिससे दुनिया चलती है।

मैं न कहता कि आग उगल

पर अपने भीतर की

तपिश को बाहर ला,

नहीं तो

भीतर-भीतर जलती यह आग

तुझे भस्म कर देगी किसी दिन,

देखे दुनिया

कि तेरे भीतर भी

इक रोशनी है

आस है, विश्वास है

अंधेरे को चीर कर

जीने की ललक है

गहराती परछाईयों को चीरकर

सामने आ,

अपने भीतर इक आग जला।