एहसास

किसी के भूलने के

एहसास की वह तीखी गंध,

उतरती चली जाती है,

गहरी, कहीं,अंदर ही अंदर,

और कचोटता रहता है मन,

कि वह भूल

सचमुच ही एक भूल थी,

या केवल एक अदा।

फिर

उस एक एहसास के साथ

जुड़ जाती हैं,

न जाने, कितनी

पुरानी यादें भी,

जो सभी मिलकर,

मन-मस्तिष्क पर ,

बुन जाती हैं,

नासमझी का

एक मोटा ताना-बाना,

जो गलत और ठीक को

समझने नहीं देता।

ये सब एहसास मिलकर

मन पर,

उदासी का,

एक पर्दा डाल जाते हैं,

जो आक्रोश, झुंझलाहट

और निरुत्साह की हवा लगते ही

नम हो उठता है ,

और यह नमी,

न चाहते हुए भी

आंखों में उतर आती है।

न जाने क्या है ये सब,

पर लोग, अक्सर इसे

भावुकता का नाम दे जाते हैं।