हवाओं के रंग नहीं होते

हवाओं के रंग नहीं होते,

हवाओं में रंग होते हैं।

भाव होते हैं,

कभी गर्म , कभी सर्द

तो कभी नम होते हैं।

फूलों संग

हवाएं महकती हैं,

मन को दुलारती, सहलाती हैं।

खुली हवाएं

जीना सिखलाती हैं।

कभी हवाओं के संग

बह-बह जाते हैं भाव,

आकांक्षाएं बहकती हैं,

मन उदास हो तो

सर पर हाथ फेर जाती हैं,

आंसुओं को सोखकर

मुस्कान बना जाती हैं।

चेहरे को छूकर

शर्मा कर बिखर-बिखर जाती हैं।

कानों में सन-सन गूंजती

न जाने कितने संदेश दे जाती हैं।

कभी शरारती-सी,

लटें बिखेरती,

कभी उलझाकर चली जाती हैं।

मन की तरह

बदलते हैं हवाओं के रूख,

कभी-कभी

अपना प्रचण्ड रूप भी दिखलाती हैं।

सुना है,

हवाओं के रूख को

अपने हित में मोड़ना भी एक कला है,

कैसे, यही नहीं समझ पाती हूं।