हरपल बदले अर्थ यहाँ
शब्दों के अब अर्थ कहाँ, सब कुछ लगता व्यर्थ यहाँ

कहते कुछ हैं, करते कुछ है, हरपल बदले अर्थ यहाँ

भाव खो गये, नेह नहीं, अपनेपन की बात नहीं अब

किसको मानें, किसे मनायें, इतनी अब सामर्थ्य कहाँ

कोई हमें क्यों रोक रहा
आँख बन्द कर सोने में मज़ा आने लगता है।

बन्द आँख से झांकने में मज़ा आने लगता है।

पकी-पकाई मिलती रहे, मुँह में ग्रास आता रहे

कोई हमें क्यों रोक रहा, यही खलने लगता है

सुन्दर-सुन्दर दुनियाd
परीलोक के सपने मन में 

झूला झूलें नील गगन में

सुन्दर-सुन्दर दुनिया सारी

चंदा-तारों संग मन मगन में

मानसून की आहट
मानसून की आहट डराने लगी है

गलियों में तालाब दिखाने लगी है

मेंढक टर्राते हैं रात भर नींद कहाँ

मच्छरों की भिन-भिन सताने लगी है।

पछताते लोग

झूठी शान जताते लोग

बातें खूब बनाते लोग

खुलती पोल सिर झुकता

तब देखो पछताते लोग

मन में भक्ति

कांवड़ियों की भीड़ बड़ी, शिव के जयकारे लगते

सावन माह में दूर-दूर से पग-पग आगे देखो बढ़ते

मन में भक्ति, धूप-छांव, झड़ी न रोके उनकी राह

गंगा से शुद्ध जल लाकर शिव का ये अभिषेक करते

जीवन संघर्ष
 प्रदर्शन नहीं, जीवन संघर्ष की विवशता है यह

रोज़ी-रोटी और परवरिश का दायित्व है यह

धूप की माया हो, या हो आँधी-बारिश, शिशिर

कठोर धरा पर निडर पग बढ़ाना, जीवन है यह

तेरा ख़याल
उदास कर जाता है तेरा ख़याल

यादों में ले जाता है तेरा ख़याल

यूँ लगता है मानों युग बीत गये

मिलन की आस है तेरा ख़याल

बेकरार दिल
दिल हो रहा बड़ा बेकरार

बारिश हो रही मूसलाधार

भीग लें जी भरकर आज

न रोक पाये हमें तेज़ बौछार

सखियाँ झूला झूलें
हिलमिल सखियाँ झूला झूलें 

कभी धरा, कभी गगन छू लें

फुहारें मन मुदित कर रहीं

खुशियों के भर-भर घूंट पी लें

कुछ सपने

भाव भी तो लौ-से दमकते हैं

कभी बुझते तो कभी चमकते हैं

मन की बात मन में रह जाती है

कुछ सपने आंखों में ही दरकते हैं

ज़िन्दगी में एक सबक

अंधेरे में भी रोशनी की एक चमक होती है

रोशनी में भी अंधेरे की एक लहर होती है

देखने वाली आंखें ही देख पाती हैं इन्हें

सहेज लें इन्हें, ज़िन्दगी में एक सबक होती है

 

 

 

कड़वा-कड़वा देते रहना

नीम करेले का रस पी ले

हंस-बोलकर जीवन जी ले

कड़वा-कड़वा देते रहना

खट्टे की खुद चटनी पी ले

दाना डाला जाल बिछाया

नदी किनारे बैठे बैठे मन में आया चल डूब मरें

फिर देखा मीन बड़ी बड़ी, सोचा मस्ती खूब करें

दाना डाला, जाल बिछाया, सारे हथकंडे अपनाये

पकड़ी तो नकली निकली, आप न ऐसी भूल करें

अंदाज़ उनका

उलझा कर गया अंदाज़ उनका

बहका कर गया अंदाज़ उनका

अंधेरे में रोशनियाँ हैं चमक रही

पराया कर गया अंदाज़ उनका

इतिहास हमारा

इतिहास हमारा स्वर्णिम था, या था समस्याओं का काल

किसने देखा, किसने जाना, बस पढ़ा-सुना कुछ हाल

गल्प कथाओं से भरा, सत्य है या कल्पना कौन कहे

यूँ ही लड़ते-फिरते हैं, निकाल रहे बस बाल की खाल

झूठे रिश्तों की आड़ में
नदियाँ सूख जाती हैं सागर उफ़नते रहते हैं

मन कुंठित होता है, हम फिर भी हंसते रहते हैं

सूखे पत्ते उड़ते हैं, गिरते हैं, ठौर नहीं मिलता

झूठे रिश्तों की आड़ में हम मन बहलाये रहते हैं।

ठहरा-सा लगता है  जीवन

नदिया की धाराओं में टकराव नहीं है

हवाओं के रुख वह में झनकार नहीं है

ठहरा-ठहरा-सा लगता है अब जीवन

जब मन में ही अब कोई भाव नहीं हैं

आदान-प्रदान का युग है

जरूरी नहीं कि शिखर पर बैठा हर इंसान उत्थान का प्रतीक को

जाने कौन-सी सीढ़ियां चढ़ा, कहां पग धरा, अनुगमन की लीक हो

पद, पदक, सम्मान, उपाधियाँ सदा उपलब्धियों की प्रतीक नहीं होते

आदान-प्रदान का युग है, ले-देकर काम चल रहा, यही सीख हो

हंसते-हंसते जी लेना

हंसते-हंसते जी लेना

खुशियों के घूंट पी लेना

क्या होता है जग में

हमको क्या लेना-देना

 

 

 

 

आदान-प्रदान का युग है
जरूरी नहीं कि शिखर पर बैठा हर इंसान उत्थान का प्रतीक हो

जाने कौन-सी सीढ़ियां चढ़ा, कहां पग धरा, अनुगमन की लीक हो

पद, पदक, सम्मान, उपाधियाँ सदा उपलब्धियों की प्रतीक नहीं होते

आदान-प्रदान का युग है, ले-देकर काम चल रहा, यही सीख हो

जल की महिमा

बूंद-बूंद से घट भरे, बूंद-बूंद से न घटे सागर

जल की महिमा वो जाने, जिसके पास न गागर

पानी की बरबादी चुभती है, खड़़े पानी में कीट

अंजुरी-भर पानी ले, सोचिए कैसे रखें पानी बचाकर

जीवन के अनमोल पल
यादों की गठरियों में कुछ अनमोल रत्न हुआ करते हैं

कभी कभी कुछ रिसते-से जख्म भी हुआ करते हैं

इन सबके बीच झूलता है मन,क्‍या करे कोई

जीवन के पल जैसे भी हों,सब अनमोल हुआ करते है।

 

कौन किसी का होता है
पत्थर संग्रहालयों में सुरक्षित हैं जीवन सड़कों पर रोता है

अरबों-खरबों से खेल रहे हम रुपया हवा हो रहा होता है

किसकी मूरत, किसकी सूरत, न पहचानी, बस नाम दे रहे

बस शोर मचाए बैठे हैं, यहाँ अब कौन किसी का होता है

कोई बात ही नहीं

आज तो कोई बात ही नहीं है बताने के लिए

बस यूँ ही लिख रहे हैं कुछ जताने के लिए

दर्दे-दिल की बात तो अब हम करते ही नहीं

वे झट से आँसू बहाने लगते हैं दिखाने के लिए।

चाहतों की भूख

जीवन में आगे-पीछे, ऊपर-नीचे तो चलता रहता है

जो पाया, अनायास न जाने कभी कहाँ खो जाता है

बहुत-बहुत की चाह में धक्का-मुक्की में लगे हैं हम

चाहतों की भूख से मानव कहाँ कभी पार पा पाता है।

 

धन्यवाद देते रहना हमें Keep Thanking
आकाश को थाम कर खड़े हैं नहीं तो न जाने कब का गिर गया होता

पग हैं धरा पर अड़ाये, नहीं तो न जाने कब का भूकम्प आ गया होता

धन्यवाद देते रहना हमें, बहुत ध्यान रखते हैं हम आप सबका सदैव ही

पानी पीते हैं, नहा-धो लेते हैं नहीं तो न जाने कब का सुनामी आ गया होता।

 

ज्योति प्रज्वलित है
क्यों ढूंढते हो दीप तले अंधेरा जब ज्योति प्रज्वलित है

 क्यों देखते हो मुड़कर पीछे, जब सामने प्रशस्त पथ है

जीवन में अमा और पूर्णिमा का आवागमन नियत है

अंधेरे में भी आंख खुली रखें ज़रा, प्रकाश की दमक सरस है

 

ऐसा अक्सर होता है
ऐसा अक्सर होता है जब हम रोते हैं जग हंसता है

ऐसा अक्सर होता है हम हंसते हैं जग ताने कसता है

न हमारी हंसी देख सकते हो न दुख में साथ होते हो

दुनिया की बातों में आकर मन यूँ ही फ़ँसता है।

 

 

धर्म-कर्म के नाम

धर्म-कर्म के नाम पर पाखण्ड आज होय

मंत्र-तंत्र के नाम पर घृणा के बीज बोयें

परम्परा के नाम पर रूढ़ियां पाल रहे हम

किसकी मानें, किसकी छोड़ें, इसी सोच में खोय